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Friday, 13 December 2013

महँगाई का दर्द



महँगाई का दर्द

 होता था परिवार बड़ा , इसमें था आराम बड़ा पर
 बढ़ती महँगाई ने कर दिया इसे लघुकाय बड़ा --


        आँखों के तारे इकलौते पुत्र को  पिता ने पुकारा और -
        आह भरते हुए कहा  - बेटा ,जाओ अब   अलग करो ,
        अब इतनी सी आमदनी में हो नहीं पाता सबका ,
                                         पर आते-जाते रहना ,तुम्हारी बड़ी याद आएगी।
             
         बुढ़ापे के सहारे भाई को बुलाया और -----
         सिसकते हुएबोले - मेरे भाई ,बहू-बच्चों के साथ -
         अपना घर अलग कर लो ,खर्चा पूरा नहीं होता ---
                                           मैं मिलने आता रहूँगा,राजी-खुसी  देते रहना।
   
        रोते -रोते माँ ने दो-दिन पहले ही बच्चों के साथ आई -
       अपनी बेटी से दबी जवान में कहा -बेटी जा अब अगले-
       बरस आना ,जब बच्चों के स्कूल खुल रहे हों ,वह घर देख लेंगे -
                                        और जल्दी आना ,आने की  खबर कर देना।


"अति सर्वत्र वर्जयेत् "की उक्ति अगर सत्य नहीं होती -
तो ये प्राचीन बड़े परिवार ,टूट कर यूूँ  न बिखरते -----

                                     -------  

Friday, 29 November 2013

समानता का अधिकार ( 2 ) क्रमशः ---

समानता का अधिकार ( २ ) क्रमशः --

------और जब उस मानवी ने
 क्रांतिकारी कदम उठाया ,तो कहा गया-
औरत एक अबूझ "पहेली"  है।
वह "तिरिया-चरित्र" है।
उसे आज तक कोई नहीं समझ पाया। 
औरत
क्यों ? क्यों ?
क्योंकि मनुष्य कभी उसके 'लेवल"तक पहुँच ही नहीं पाया -
या पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता -
शायद करना चाहता भी नहीं है ,
पर  जबभी समझना चाहेगा -
तभी समझ में आजायेगा
कि वह एक "पहेली" है या
"तिरिया चरित्र" है या क्या है वह!
क्योंकि उसके सारे रूप इसी तिरिया चरित्र में ही समाये हैं।
तिरिया चरित्र का अर्थ है - स्त्री-चरित्र यानि -
समझ-बूझ रखने वाली ,उदारमना ,सुमुखी ,सुलक्षणा -
साथ ही एक दूसरा पक्ष भी है उसके चरित्र का -
उसे ही वह जान-बूझ कर  समझना ही नहीं चाहता।
यदि वह हिंसक है ,दानव है ,चालवाज़ है ,व्यसनी है ,क्रूर है ,जल्लाद है -
तो वही सारे रूप औरत  में भी हैं बल्कि इससे भी अधिक -
उसके क्रांतिकारी रूप को समझें और
पहिचानें ,जानें कि नारी क्या है !
स्वयं परमेश्वर बनो उससे पहले नारी को देवी नहीं "सम - मान  देना सीखो।
"सब समझ आजायेगा।"

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मेरे बच्चे


बच्चे होते बड़े -----

मेरे बच्चे  बड़े सयाने ,      कष्टों के हैं बड़े दीवाने 
जितना मिलता  कष्ट उन्हें, आनन्द उसी में पाते हैं ,
घबराहट का काम नहीं ,  संतुलन बनाये रखते  हैं
इसीलिये हर मुश्किल का डटकर मुकाबला करते हैं
मुश्किल और कष्ट-कठिनाई,घुटने टेक खड़े रहते ,
सबका दिल खुश करते हैं , संतोष इसी में पाते हैं।
कोई नदी-पहाड़ों में खुश,कोई खुश देश-भ्रमण में है,
संघर्षों के बीच इसी में ,जीवन का सुख पाते हैं --
           जीवन का है सत्य यही फिर   क्या  घबराना
           ईश्वर  का आशीष ,कभी  पीछे मत हटना --
           माँ का है  अति -प्यार ,कभी इसको मत खोना।
                                -----------     

Tuesday, 26 November 2013

महा -प्रयाण



महा-प्रयाण !

यह तो एकदिन होना ही है क्योंकि -
मृत्यु और जीवन तो शाश्वत सत्य है 
न बचपन रहता है,न जवानी रहती है और 

न वृद्धावस्था रहेगी :
किन्तु यह अवस्था बड़ी लम्बी और भयावह होगी ,
कानों से सुनाई कम देगा  
आँखों  से दिखाई कम देगा -
जबान लड़खड़ाने लगेगी -
कोई समझने वाला नहीं होगा ,
दौड़ - भाग की दुनिया में 
पास भी बैठने वाला नहीं होगा कोई -
इसलिए अभी से सोचना होगा ----

क्रोध,लोभ, मोह व्यसन को भूलना होगा 
भक्ति,ज्ञान,सत्कर्म में ही मन लगाना होगा 
जब तक शरीर सशक्त है ,यही  श्रेष्ठ होगा -  
इसी में सच्चा आनंद मिलेगा 
चित्त को पूर्ण शांत जीवन मिलेगा। 

परमात्मा का आश्रय लेकर 
जीवन की डोर उनके हाथों सौंप कर 
उन्हें पुकारना होगा 
और तब वह स्वयं हाथ पकड़ कर 
अपने धाम लेजाएंगे 
और यह सच्चा प्रयाण ही नहीं : "महा प्रयाण होगा" !!

             ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ----

                       ----------

सवाल


  सवाल ??

ये अचानक मेरी लेखनी में लड़खड़ाहट!!!
हठात हाथों में कम्पन !
विचारों की अविच्छिन्न धारा -प्रवाह में अवरोध !
होता है ,होता है साहब !-
ऐसा ही होता है-
जब आपकी  ज़िंदगी ही -
सवाल बन कर आपसे जवाब माँगे और -
आप निस्तब्ध होजाएं तब
होता है ,होता है  -------ऐसा ही हो ता है।
                         -----
                                                                  

Sunday, 24 November 2013

कविता- कामिनी


 कविता कामिनी

एक लम्बे समय से                     
मेरा कवि  -हृदय सोया हुआ था -
मरुस्थल ,रेगिस्तान और वीरानगी का 
तांडव मचा हुआ था ,न कोई प्रश्न,न जिज्ञासा ,
किन्तु ,आशा-रत,प्रयत्न-शील 
ज़िन्दगी जैसे कुछ थमगई हो-
एक रस ज़िंदगी किन्तु उमंग और उत्साह भरपूर -
अचानक सब कुछ ख़त्म 
हृदय में हाहाकार -चीत्कार और जड़ता -
जीवन की गति अवरुद्ध तभी 
अचानक मेरा कवि-हृदय जाग पड़ा -
निष्प्राण लेखनी में मानो जान आगई हो -
यूँ हुई ,मेरी कविता -कामिनी की पुनः शुरुवात। 
                           -----                                                   

Tuesday, 13 August 2013

वृद्धावस्था

वृद्धावस्था

कौन कहता है ,वृद्धावस्था में अपना कोई नहीं होता ,
वृद्धावस्था ,वृद्धावस्था की  बहिन होती है ,
वृद्धावस्था , वृद्धावस्था की मित्र होती है,
वह वृद्धावस्था की सहयोगिनी,सहचरी भी होती है -
और होती है उसकी पड़ोसन भी-
हाँ ,याद आया कि -
वह किसी की" माँ" नहीं होती -

क्योंकि माँ कहने वाला वृद्ध नहीं होता।
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Tuesday, 23 July 2013

समानता का अधिकार

समानता का अधिकार 

समाज ने  औरत को एक ओर समानता का दर्ज़ा देकर और
दूसरी ओर उसे 

सहिष्णुता की देवी कहकर,क्षमा का रूप देकर और 
देवी का अवतार कहकर -
उसके साथ जो चालाकी दिखाई,जो अन्याय किया तो लगा मानो
"इस हाथ से देकर ,उस हाथ से छीन लिया।"

अरे ,जब कष्ट आया तो वह "सम-भागी" है -
जब अत्याचार किया तो "सहिष्णुता" की देवी है और 
जब अपराध किया तो "देवी का अवतार" है- 
रे स्वार्थी मानव!
उसकी सहनशीलता की सीमा न तुड़वा -
जाग!अभी भी समय है,सँभल जा नहीं तो 
जब वह समानता का अधिकार लेगी-

तो सबसे पहले इन बहलाने वाले,फुसलाने वाले झूठे-   
सम्मान-जनक उपादानों को उखाड़ फेंकेगी और फिर  
"एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ में जाने नहीं देगी।"

  तब वह केवल और केवल "मानवी"बनकर 
बताएगी कि "समानता का अधिकार"क्या होता है।   
                          
                        क्रमशः ---पार्ट २  
 .           
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Thursday, 18 July 2013

बड़े हैं

                                                  बड़े   हैं
                                                                           
                        रीतियाँ बदली ,रिवाज़  बदले
                        समाज  बदला ,दुनिया  बदली
                        शब्दों के भी अर्थ  बदले  और -
                        अर्थों के भी  अर्थ      बदले   -इस तरह
                        माता-पिता का अर्थ   माता -पिता नहीं
                        केवल "बड़े  हैं " के तीन अक्षरों में बदल गया

              हर कोई  हर किसी को यही कहता  है -
              बेटा,कहना  माना करो ,आखिर  वे बड़े हैं.
     
                                      ---------

Friday, 12 July 2013

कुम्भ का सुफल -(पढ़ी हुई कहानी का काव्य रूप )

कुम्भ का फल 

एक दिन भगवान के पास पहुँचे एक बड़े ही धर्मात्मा सन्त
पूछा - इस बार कुम्भ का फल किसे मिला है ,भगवन !
भगवान ने कहा -"एक रत्तू चर्मकार को ,
बहुत दूर के गाँव में रहता है,
जूते गाँठता  है -
जनता की सेवा करता है           
हृदय का उदार है "
 सुनकर महात्मा संत चले उसे खोजने ,
सोचा - 
पूरे महीने मैंने व्रत,उपवास किया 
गंगा स्नान किया -
जो मिला ,खाया और 
कुम्भ का फल लेगया एक चमार !
और पहुँचे रत्तू चमार के पास -
पूछा -"तुमने कुम्भ -स्नान किया ?"
नहीं ,महाराज !
एक साल जूते गाँठे,
पैसा इकट्ठा किया -जाही रहा था 
कि पड़ोसी महिला की आवाज़ सुनीं 
जो रो-रोकर चिल्ला रही थी 
कह रही थी "उसके बच्चे चार दिनों से भूखे हैं,-
आज बाप भी मर गया -
अब कौंन है इनका ?"
सुनकर वापिस  आगया ,
सालभर की जमा -पूँजी उठाई'और राशन लिया ,
और जाकर बोला-"लो बहिन अभी इन बच्चों को 
कुछ खिला-पिलादो"
महाराज -यही मेरा गंगा -स्नान है -
संत के नेत्र आंसुओंसे    भरगए  
सोचा -सच ,यही है "कुम्भ का सुफल । "

(पढ़ी हुई कहानी का काव्य रूप )
                 
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Monday, 8 July 2013

गलतफहमियाँ


गलतफहमियाँ   ( हास्य )

अगर   सम्बन्धों में  दरार न  होती ,
  मित्रता में  ग़लतफ़हमी न    होती 
                  तो ज़िन्दगी    नीरस   हो जाती 
हृदय -कमल मुरझा जाते 
                 खुशियाँ      बासी   हो      जातीं 
  ये  भ्रांतियाँ     ही   हैं      जो 
  जीवन  में रस   घोलती   हैं , 
  ये  ग़लतफ़हमियाँ ही      हैं         
  जो जीवन  में फूल खिलातीं हैं 
  जीवन को मधुरतम बनातीं है
  इसलिए  खुश रहो  ,आबाद  रहो 
  क्योंकि जब भी कोई गलतफहमी  होती  है 
     तो सदैव  एक नयी जानकारी    होती   है 
  करते रहो ,करते रहो  खूब 
  गलतफहमियाँ करते रहो |
        
                   ****
                       
                         

Sunday, 7 July 2013

कैसे नमन करूँ


कैसे नमन करूँ 


कैसे नमन करूँ ,प्रभु तुझको
कैसे नमन करूँ।

जब जिसने जो कुछ भी चाहा,
तूने   दिया  उसे  अविलम्ब।
वैभव,पुत्र,मकान सभी कुछ,
देता रहा उसे जी भर,
फिर भी     वह रोता ही रहता। 
कैसे समझाऊँ उसको,   प्रभु। 
कैसे नमन   ------------

अपनी ही करनी का प्रतिफल,
उस  विमूढ़ के आगे   आता। 
नहीं  समझता  वह अज्ञानी,
दोष-बुद्धि  से  उसका नाता।
हर  दिन ,हरपल,रोता रहता,
कैसे समझाऊँ    उसको, प्रभु
कैसे नमन करूँ तुझको--
प्रभु ,कैसे नमन करूँ -------

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