समानता का अधिकार ( २ ) क्रमशः --
------और जब उस मानवी ने
------और जब उस मानवी ने
क्रांतिकारी कदम उठाया ,तो कहा गया-
औरत एक अबूझ "पहेली" है।
वह "तिरिया-चरित्र" है।
उसे आज तक कोई नहीं समझ पाया।
औरत एक अबूझ "पहेली" है।
वह "तिरिया-चरित्र" है।
उसे आज तक कोई नहीं समझ पाया।
औरत
क्यों ? क्यों ?
क्योंकि मनुष्य कभी उसके 'लेवल"तक पहुँच ही नहीं पाया -
या पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता -
शायद करना चाहता भी नहीं है ,
पर जबभी समझना चाहेगा -
तभी समझ में आजायेगा
कि वह एक "पहेली" है या
"तिरिया चरित्र" है या क्या है वह!
क्योंकि उसके सारे रूप इसी तिरिया चरित्र में ही समाये हैं।
तिरिया चरित्र का अर्थ है - स्त्री-चरित्र यानि -
समझ-बूझ रखने वाली ,उदारमना ,सुमुखी ,सुलक्षणा -
साथ ही एक दूसरा पक्ष भी है उसके चरित्र का -
उसे ही वह जान-बूझ कर समझना ही नहीं चाहता।
यदि वह हिंसक है ,दानव है ,चालवाज़ है ,व्यसनी है ,क्रूर है ,जल्लाद है -
तो वही सारे रूप औरत में भी हैं बल्कि इससे भी अधिक -
उसके क्रांतिकारी रूप को समझें और
पहिचानें ,जानें कि नारी क्या है !
स्वयं परमेश्वर बनो उससे पहले नारी को देवी नहीं "सम - मान देना सीखो।
"सब समझ आजायेगा।"
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क्यों ? क्यों ?
क्योंकि मनुष्य कभी उसके 'लेवल"तक पहुँच ही नहीं पाया -
या पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता -
शायद करना चाहता भी नहीं है ,
पर जबभी समझना चाहेगा -
तभी समझ में आजायेगा
कि वह एक "पहेली" है या
"तिरिया चरित्र" है या क्या है वह!
क्योंकि उसके सारे रूप इसी तिरिया चरित्र में ही समाये हैं।
तिरिया चरित्र का अर्थ है - स्त्री-चरित्र यानि -
समझ-बूझ रखने वाली ,उदारमना ,सुमुखी ,सुलक्षणा -
साथ ही एक दूसरा पक्ष भी है उसके चरित्र का -
उसे ही वह जान-बूझ कर समझना ही नहीं चाहता।
यदि वह हिंसक है ,दानव है ,चालवाज़ है ,व्यसनी है ,क्रूर है ,जल्लाद है -
तो वही सारे रूप औरत में भी हैं बल्कि इससे भी अधिक -
उसके क्रांतिकारी रूप को समझें और
पहिचानें ,जानें कि नारी क्या है !
स्वयं परमेश्वर बनो उससे पहले नारी को देवी नहीं "सम - मान देना सीखो।
"सब समझ आजायेगा।"
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