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Monday 3 April 2017

बेटियाँ उपेक्षा के लिए नहीं !!


बेटियाँ उपेक्षा के लिए नहीं !!

मुसीबत आती है तो अपने भी पराये होजाते हैं ,
औरों की तो कहें क्या !
एक माँ ज़रूर साथ खड़ी होती है,
पर वो भी लाचार,
सुनती रहती है इस बेरहम समाज की ऊल-ज़ुलूल बातें !
दकियानूसी परम्पराओं में जकड़े रहना,
और बकबास रूढ़ियों को स्वीकारना ,
यही तो है आज के विकासशील समाज की सोच !
घुट रही थी वो अन्दर ही अन्दर !
सोच रही थी कैसे सबका मुँह बन्द करूँ?
कैसे इन दानवों से ख़ुद की रक्षा    करूँ?
पर वक्त बदलता है,वो साथ नहीं छोड़ता -
आवाज़ दी ,ज़ोर से कान में चिल्लाया-उठ
अचानक उसे कुछ चेतना हुई ,हिम्मत आयी ,
उठी ,फोन किया  ,बुलाया उसे और
सबके सामने लाकर उसे खड़ा कर दिया।
बोली -"ये है मेरा जीवन-साथी"-
कहना है किसी को कुछ?
है कोई शिकायत ,कोई शंका ?
सुनकर चोंके सब !
हक़-बके से हत -बुद्धि प्रायः !
और तब -(नीरवता को भंगकरते हुए)
सामने आयी माँ-बोली -
 कुछ पूछने की ज़रुरत नहीं  -
औरकोई कुछ नहीं बोलेगा -
दोनों के सर पर हाथ रखा,आशीष दिया
आवश्यक शुभ-शकुन दे -
विदाई उत्सव संपन्न किया।

 मित्रो,क्यों दबाई जाती है एक शिक्षित,सुयोग्य युवती की आवाज़-
    उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें।उन्हें  दिशा  दिखाएँ।
    वक्त से लड़ने में उनकी ताक़त बनें,उत्साहित करें।


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