महँगाई का दर्द
होता था परिवार बड़ा , इसमें था आराम बड़ा पर
बढ़ती महँगाई ने कर दिया इसे लघुकाय बड़ा --
आँखों के तारे इकलौते पुत्र को पिता ने पुकारा और -
आह भरते हुए कहा - बेटा ,जाओ अब अलग करो ,
अब इतनी सी आमदनी में हो नहीं पाता सबका ,
पर आते-जाते रहना ,तुम्हारी बड़ी याद आएगी।
बुढ़ापे के सहारे भाई को बुलाया और -----
सिसकते हुएबोले - मेरे भाई ,बहू-बच्चों के साथ -
अपना घर अलग कर लो ,खर्चा पूरा नहीं होता ---
मैं मिलने आता रहूँगा,राजी-खुसी देते रहना।
रोते -रोते माँ ने दो-दिन पहले ही बच्चों के साथ आई -
अपनी बेटी से दबी जवान में कहा -बेटी जा अब अगले-
बरस आना ,जब बच्चों के स्कूल खुल रहे हों ,वह घर देख लेंगे -
और जल्दी आना ,आने की खबर कर देना।
"अति सर्वत्र वर्जयेत् "की उक्ति अगर सत्य नहीं होती -
तो ये प्राचीन बड़े परिवार ,टूट कर यूूँ न बिखरते -----
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hmmmm.....sad but true....
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