Visitors

Sunday 23 May 2021

सुलझ गयी --------


      सात दशकों से उलझी औत्सुक्य भरी अनबूझ पहेली को यकायक एक मनहूस खबर ने एक ही झटके में सुलझा दिया। 

       दिसम्बर 16.12.2020 उसके दिवंगत होने से तसवीर एकदम दर्पण की तरह  साफ़ होगयी। लगा जैसे समुद्र की गहराई को चीर कर सारे रहस्य उजागर होगये हों। सब कुछ चल-चित्र की भाँति स्पष्ट होगया।उम्र के सात दशक तक इस पहेली ने मन को उलझाए रखा था;अनेकों प्रश्न, क्या सत्य,क्या असत्य। उलझनों के जाल में फँसा मन उम्र के दशकों पार करता रहा और देखता रहा अपने बिखरते हुए  परिवार को ; पर अब  सब कुछ साफ़ !! कोई प्रश्न नहीं,कोई जिज्ञासा नहीं,कोई पहेली नहीं ! सुन्दर चेहरे में छुपी विद्रूपता अचानक स्पष्टतः गोचर होगयी।

         लगा ये संपत्ति,दौलत इंसान को इतना गिरा देती है कि वो भूल जाता है कि वो कितना जघन्य पाप करने जारहा है।इस दौलत का नशा माँ को भी इतना स्तर हीन कार्य करने पर विवश कर देता है कि वो भी ये भूल जाती है कि वो इन्सान है, भगवान नहीं है।  विश्वास न होने पर भी करना पड़ा अब ! सुना था पापा को उनकी सौतेली माँ ने कुछ खिला दिया था जिसका उनके मनो-मस्तिष्क पर ऐसा  प्रभाव पड़ा कि उन्होंने काम पर भी जाना  बंद कर दिया था। माँ ने बताया था मेरी छोटी बहिन को भी अफ़ीम खिलवा कर सुलवा देतीं थीं।

      ये सब कही सुनी बातें थीं। पर माँ को तो दादी ने ही कहा था कि तीन-तीन लड़कियों का बोझ हम कैसे संभालेंगे। जब ये बात नानाजी ने सुनी तो उन्होंने माँ सहित हम सबको अपने  पास ही बुला लिया।(कुछ समय बीतने पर माँ ने भाई को जन्म दिया) पर हमारा परिवार बुरी तरह बिखर गया। लेकिन अब लगता है जैसे भगवान की मानो ये भी कोई सुनियोजित योजना थी,क्योंकि नानाजी ने माँ और हम चारों बच्चों को पढ़ा लिखा कर इस योग्य बना दिया कि आज हम पास्ट भूल गए। पापा की दशा और स्थिति पर सब्र किया और कर्मों का भोग्य मान कर नानाजी के दिशा-निर्देश पर आगे बढ़ते गए। 

             तभी नानाजी ने सख़्त आदेश देकर कहा था कि भाई को दादी के घर कभी नहीं भेजना है जिसको माँ ने दृढ़ता-पूर्वक मजबूती से निभाया भी। लेकिन विधि का विधान ; आगे चल कर निभाना मुश्किल होगया और माँ की इच्छा न होते हुए भी भाई का दादी के घर जाने का क्रम शुरू होगया। अच्छे से संपर्क साधा गया,विवाह आदि अवसरों पर भी नियमतः जाने-आने का क्रम चलता रहा।भाई ने तो यह भी लिख कर दे दिया कि हमें आपकी प्रॉपर्टी से भी कुछ नहीं चाहिए।

    और इस सबका परिणाम यह हुआ कि हमारा इकलौता छोटा भाई १६ दिसंबर २०२० को हम सबको छोड़ कर चला गया। यानि कि जब तक नाना जी का आशीर्वाद रहा,भाई का परिवार खूब फला-फूला लेकिन उनका आशीर्वाद का समय पूरा हुआ और लगा भाई का भी समय पूरा होगया। स्तब्ध परिवार बिलखता हुआ रह गया। लेकिन अब सारे प्रश्नों के उत्तर साफ़ होगये,तस्वीर शीशे की तरह बिल्कुल स्पष्ट होगयी।उपरोक्त विवरण की प्रमाणिकता के लिए इतना और काफी है कि भाई के जाने के बाद आज तक उधर से चाचा-बुआ किसी का भी परिवार के लिए एक सान्त्वना सन्देश नहीं मिला।  जीवन-चक्र रुक गया। अब कुछ भी न कहने को बचा,न सुनने को बचा,न सोचने को रहा। 

                  मानती हूँ जो होना है जैसे होना होता है वो सब हमारे कर्मों के अनुसार ही होता है ;पर भगवान किस प्रकार किसी को माध्यम बना कर कुछ संकेत अवश्य देते हैं। इस पर भी विचार करना आवश्यक है।संभव है कोई इसे मेरी कपोल-कल्पना समझे पर जो सात दशकों में हुआ वो उल्लेखनीय अवश्य है। 

                                     " जय श्री राम "


                                                             


 

एक सपना जो टूट कर पूरा हुआ ----------


         बी.एड करने की उठा-पटक मन में चल रही थी,बनस्थली विद्यापीठ में आवेदन किया था। यही डर था,पता नहीं कॉल आएगी या नहीं ;सपनों में खोई रहती थी। न जाने कहाँ कहाँ मन भागता रहता,उसी काल में ये रचना का जन्म हुआ जो प्रत्यक्ष है --- 

 उछल-कूद के बाद अवस्था वो  आयी ;

 करने  में भी  शर्म  , शर्म अब  शर्मायी।

 

 वाणी होगयी मौन ,नहीं कुछ कह पाती;पर 

 चपल नेत्र की चंचलता ,सब कह जाती। 


अधरों की मुस्कान , निमंत्रण देती है ; 

पर नेत्र मिलन होते ही ,धोखा देती हैं। 


लुका छिपी का खेल ;  चल रहा आँखों में ;

     (उठो-उठो आवाज़ लगायी मम्मी ने )

"अब जाकर  सपने कर पूरे बनस्थली में।" 

       और इस प्रकार स्वप्नान्तर से दूर माँसी-मौसाजी के संरक्षण में मेरा बी.एड. का -

सपना साकार हुआ। 

                          धन्यवाद मांसी-मोँसाजी  


                                  ---------------

      


 



  

Tuesday 4 May 2021

अप्रत्याशित अनूठी "साईं कृपा"----------

घर में थोड़ी समस्या तो चल रही थी पर समयान्तर जो अनुभव हुआ;उसका अनुमान बिलकुल न था। विवरण है इस प्रकार --

    किसी भी पूजा-स्थल से हमारा कोई विरोध नहीं है तथापि हम लोग प्रायः हनुमान- मन्दिर,राम-मन्दिर और शिव-मन्दिर ही जाते रहे हैं।अचानक एक घटना से लगा जैसे "साँई" हमारे इष्ट बन कर कुछ दिन के लिए घर आये और हमारी बेटी को  आशीर्वाद देकर अन्तर्धान  होगये।मेरे पति को किसी अज्ञात प्रेरणा ने साँई मन्दिर जाने के लिए प्रेरित किया;आश्चर्य तो हुआ पर उनकी आस्था और श्रद्धा का प्रश्न था।यदा-कदा मैं भी,बहू-बच्चे भी साथ जाने लगे।प्रति वृहस्पति वार को दोपहर मन्दिर जाना,भोग लगाना और घर आकर श्रद्धा पूर्वक प्रसाद पाना,सबको वितरित कर भोजन करना यह क्रम कुछ समय नियमतः चलता रहा।

      मन्दिर की परम्परा के अनुसार भक्तों के द्वारा चढ़ाई गयी चुनरी समय-समय पर भक्तों को ही बाँट दी जाती थीं।भक्तों की संख्या अधिक होती थी चुनरी कम होती थीं  इसलिए भाग्यशाली भक्त ही प्राप्त करपाते थे,मेरे पति उन्हीं भाग्यशालियों में से एक थे।पुजारी जी ने स्वयं लाकर उन्हें चुनरी दी।लाकर पति ने मुझे दिखाई,बहुत ख़ुशी हुई बेटी  के विवाह की तैयारी भी चल रही थी,सोचा ये उसी के लिए आयी है,विदा इसी से करेंगे।ऐसा किया भी।इत्तिफ़ाक़ से बिटिया को रिटायरमेंट में स्मृति-चिह्न के रूप में साँई की ही तसवीर मिली थी,अन्य विदाई के सामान के साथ भेंट स्वरुप उसे भी देकर बेटी का विदाई-समारोह सम्पन्न किया। 

      कुछ समय ये मन्दिर जाने का क्रम और चला पर कब ये नियम समाप्त होगया नहीं पता।सब कुछ सामान्य था किन्तु जब बेटी पुनः घर आयी और उसने जो बताया तब भगवान् की कृपा का रहस्य ज्ञात हुआ।उसने बताया कि उसके ससुराल में सब साँई के अनन्य भक्त हैं और उन पर अटूट श्रद्धा और विश्वास है।

    लगा भगवान् भी अपनी कृपा के लिए कोई माध्यम चुनते हैं।इस बार साँई को माध्यम  बनाकर बिटिया का घर बसाया।शतशः नमन के साथ भगवान् को धन्यवाद अर्पित किया। 


                                          " जय साँई राम "

                                           " ॐ साँई राम "

                                                 ****