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Saturday 23 December 2017

ये कैसी रिहाई !!


   ये कैसी रिहाई -------

संघर्ष के बाद महा संघर्ष !!
मस्तिष्क और अधिक अशान्त।
उलझे हुए प्रश्नों का मक्कड़जाल ,ये कैसी रिहाई !
चारों तरफ घूरती आँखें
बिना किसी भी एक उत्तर के
प्र्श्नों की बौछार !नहीं ये रिहाई नहीं
तब जैसा भी था, भोजन था
उसे खाना था खा लिया
कोई जुझारू प्रश्न  नहीं थे,रुच्यानुसार काम करना।
मान-सम्मान-सहानुभूति में निश्छलता,सरलता थी।
लेकिन अब खुद ही आँखें नहीं उठती
क्योंकि अब जो कुछ दिखेगा मिथ्या व व्यंग्यपूर्ण होगा
वेदना,संवेदना रुदन, कहीं सत्याभास नहींहोगा।
नेत्रों के तीर सीधे ह्रदय पर आघात करेंगे
नहीं ये रिहाई  नहीं
कुछ कहने को जिह्वा नहीं तैयार
कुछ सुनने को कर्ण -पटल  नहीं तैयार
अंदर ही अंदर घुटन चुभन अनकहे व्यंग्य बाण
अरे फिर ये कैसी रिहाई।
जो चाहा मिला,पर इस प्राप्ति में भी प्राप्य क्या ??
 वहाँ करने को कुछ था,कहने को कुछ था लेकिन
अब न ----है न ------कुछ है।
असंख्य उलझे हुए सवालों,शंकाओं का घेराव !
कोई सरल राह नहीं,कोई निष्कंटक पथ नहीं
ये किसी रिहाई !पर

सत्य यही है " जो दिखता है वो सदैव सत्य नहीं होता और
                    जो नहीं दिखता वो सदैव असत्य नहीं होता।"
(सामाजिक दर्दनाक दुर्घटना का दुर्दांत परिणाम।)

     फिर भी प्रश्न वहीँ का वहीँ,

ये कैसी रिहाई ,नहीं ये रिहाई हो ही नहीं सकती ???
ये तो  एक तलवार के ऊपर एक और तलवार लटकादी।

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