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Friday 20 August 2021

 अभूतपूर्व एक विचार :

    "क्या ही अच्छा हो कि बच्चे अपने जन्म दिवस पर अपने घर के सीनियर-सिटीजन यानि दादा-दादी,नाना-नानी,माता-पिता या जो भी हों - उन्हें उनके दैनिक प्रयोग की आवश्यक और उचित वस्तुएँ उपहार स्वरुप प्रदान कर,सम्मानित करें और उनसे उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपने आपको कृतज्ञ महसूस करें।"  


विचार थोड़ा अद्भुत है,विचित्र सा भी है,कुछ अटपटा भी लग सकता है और नापसंद या असहज भी लग सकता है। सोचा जाय तो इस विचार के कई आयाम हैं: आज हम देखते हैं कि बच्चे सर्व समर्थ हैं, आवश्यकता की हर वस्तु उनके पास इतनी संग्रहीत  हैं कि सीनियर्स को यह सोचना पड़ता है उन्हें क्या ऐसा दें जो उनके पास न हो या जिसकी उन्हें आवश्यकता महसूस हो रही हो।तो दिमाग ने एक नयी दिशा में सोचना शुरू किया                            और तब दिमाग में उक्त "अभूतपूर्व विचार" ने  जन्म लिया।    

      कई बार सीनियर्स को ही स्वयं के लिए कई आवश्यक वस्तुओं का अभाव महसूस होता है,जिसे वे अपने ही बच्चों से कहने में सकुचाते हैं।यहाँ उनकी आर्थिक तंगी की ओर संकेत बिलकुल नहीं है, संकेत है उनकी शारीरिक असमर्थता की ओर। इसलिए लगा क्यों न उक्त सुझाव देकर उनकी सोच को एक नयी दिशा प्रदान की जाये। 

         यहाँ बहुत संभव है प्रश्न कि घर में यदि ४-५ प्राणी या इस से इतर तो -----बिलकुल ठीक ; इतना ज्ञान तो अपने सीनियर्स के बारे में होता ही है कि उनकी मूल भूत आवश्यकताएँ क्या होती हैं तो बस उसीके अनुसार प्रति अवसर पर कुछ-कुछ परिवर्तन के साथ उन वस्तुओं को प्रदान करने की व्यवस्था कर लीजिये।समस्या ख़तम।

      वे पास रहते हों या दूर जन्म-दिवस के दिन एक निश्चित समय देकर सादर आमंत्रित करें,और उन्हें सम्मानजनक स्थान प्रदान कर उन्हें गौरवान्वित करें। क्या ही अच्छा हो कि उस दिन उनके मनपसंद भारतीय-शैली में बनाया,भोजन खिला  कर सादर,सस्नेह सरप्राइज़ देते हुए उनका उपहार प्रदान करें।और अपने जन्म दिवस के शुभ अवसर उनसे उनका आशीर्वचन प्राप्त कर स्वयं को अनुग्रहीत करें। 

              और अब पूर्व नियोजित कार्य-क्रम के अनुसार केक काट कर अपने जन्म दिन को मन चाहे तरीके से मनाएँ ।नाच-गाना जो भी आपने व्यवस्था की हो।देखिये आपके बड़े  इस प्रकार मनाये जाने वाले जन्मदिन पर वे कितने आल्हादित होते हैं।और इस प्रकार  जन्म-दिन को एक नया रूप प्रदान करें।           

    

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Monday 16 August 2021

 लीमाखोंग तुम बहुत याद आओगे -----


कुछ समय बेटे की पोस्टिंग पर मणिपुर के लीमाखोंग नगर में रहने का अवसर मिला। बहुत ही मनभावन शांत और दिलखुश जगह ! किन्तु अगली पोस्टिंग बीकानेर का नाम  सुन जो फील हुआ उसे शब्दों में उतारने का प्रयत्न है ये मेरी रचना -- 


"लीमाखोंग" तुम बहुत याद आओगे ----------


जब नीला आसमान धूल से आच्छादित हो जायेगा 

जब तप्त ज़मीन आग उगलेगी

जब हरे-हरे पत्ते गर्मी से झुलस कर 

पीले और मटमैले नज़र आयेंगे 

तब लीमाखोंग तुम बहुत याद आओगे -------


जब गर्मी की तीखी चुभन काँटों सी  चुभेगी 

जब एसी,कूलर,पंखा सब बंद होजायेंगे   

जब तप्त हवा के झोंकेशरीर को झुलसायेंगे 

तब लीमाखोंग तुम बहुत याद आओगे -------

 

जब फ्रिज भी मुँहु चिढ़ाने लगेगा 

नल का उबला  हुआ पानी देह को जलाएगा 

पसीने की गंध भी एक दूसरे को नहीं सुहाएगी  

तब लीमाखोंग तुम बहुत याद आओगे  ------


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जबान होते बच्चे ------


दादा-दादी,माता-पिता  के संरक्षण में पलते  बच्चे, 

अचानक ही जबानी की देहलीज़ पर पहुँचे बच्चे , 

सबको लुभाते-हर्षाते बच्चे कब बड़े हो जाते हैं !!


आँखों में अनेक प्रश्न लिए,कुछ घबराये से बच्चे ,

बुद्धि से "अपरिपक्व" समझदारी में कमज़ोर बच्चे ,

स्वयं को अति"बुद्धिमान"समझ कब बड़े हो जाते हैं। 


बात-बात पर हँसते-हँसाते ,  झगड़ते-झगड़ाते बच्चे ,

कब उन्हींकी समस्याओं का "समाधान" बन जाते हैं !!

कब दादा-दादी के "संरक्षक" भी  बन जाते हैं !! 

कब उन्हीं माता-पिता की  "गोदी" बन जाते हैं !!

कब वे अपनी बाहोंका "झूला" भी बना  देते हैं !!
 

                       जबान होते बच्चे कब "बड़े" होजाते हैं। 

                       जबान बच्चे कब "परिपक्व" होजाते हैं।      

   

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