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Tuesday 23 July 2013

समानता का अधिकार

समानता का अधिकार 

समाज ने  औरत को एक ओर समानता का दर्ज़ा देकर और
दूसरी ओर उसे 

सहिष्णुता की देवी कहकर,क्षमा का रूप देकर और 
देवी का अवतार कहकर -
उसके साथ जो चालाकी दिखाई,जो अन्याय किया तो लगा मानो
"इस हाथ से देकर ,उस हाथ से छीन लिया।"

अरे ,जब कष्ट आया तो वह "सम-भागी" है -
जब अत्याचार किया तो "सहिष्णुता" की देवी है और 
जब अपराध किया तो "देवी का अवतार" है- 
रे स्वार्थी मानव!
उसकी सहनशीलता की सीमा न तुड़वा -
जाग!अभी भी समय है,सँभल जा नहीं तो 
जब वह समानता का अधिकार लेगी-

तो सबसे पहले इन बहलाने वाले,फुसलाने वाले झूठे-   
सम्मान-जनक उपादानों को उखाड़ फेंकेगी और फिर  
"एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ में जाने नहीं देगी।"

  तब वह केवल और केवल "मानवी"बनकर 
बताएगी कि "समानता का अधिकार"क्या होता है।   
                          
                        क्रमशः ---पार्ट २  
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Thursday 18 July 2013

बड़े हैं

                                                  बड़े   हैं
                                                                           
                        रीतियाँ बदली ,रिवाज़  बदले
                        समाज  बदला ,दुनिया  बदली
                        शब्दों के भी अर्थ  बदले  और -
                        अर्थों के भी  अर्थ      बदले   -इस तरह
                        माता-पिता का अर्थ   माता -पिता नहीं
                        केवल "बड़े  हैं " के तीन अक्षरों में बदल गया

              हर कोई  हर किसी को यही कहता  है -
              बेटा,कहना  माना करो ,आखिर  वे बड़े हैं.
     
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Friday 12 July 2013

कुम्भ का सुफल -(पढ़ी हुई कहानी का काव्य रूप )

कुम्भ का फल 

एक दिन भगवान के पास पहुँचे एक बड़े ही धर्मात्मा सन्त
पूछा - इस बार कुम्भ का फल किसे मिला है ,भगवन !
भगवान ने कहा -"एक रत्तू चर्मकार को ,
बहुत दूर के गाँव में रहता है,
जूते गाँठता  है -
जनता की सेवा करता है           
हृदय का उदार है "
 सुनकर महात्मा संत चले उसे खोजने ,
सोचा - 
पूरे महीने मैंने व्रत,उपवास किया 
गंगा स्नान किया -
जो मिला ,खाया और 
कुम्भ का फल लेगया एक चमार !
और पहुँचे रत्तू चमार के पास -
पूछा -"तुमने कुम्भ -स्नान किया ?"
नहीं ,महाराज !
एक साल जूते गाँठे,
पैसा इकट्ठा किया -जाही रहा था 
कि पड़ोसी महिला की आवाज़ सुनीं 
जो रो-रोकर चिल्ला रही थी 
कह रही थी "उसके बच्चे चार दिनों से भूखे हैं,-
आज बाप भी मर गया -
अब कौंन है इनका ?"
सुनकर वापिस  आगया ,
सालभर की जमा -पूँजी उठाई'और राशन लिया ,
और जाकर बोला-"लो बहिन अभी इन बच्चों को 
कुछ खिला-पिलादो"
महाराज -यही मेरा गंगा -स्नान है -
संत के नेत्र आंसुओंसे    भरगए  
सोचा -सच ,यही है "कुम्भ का सुफल । "

(पढ़ी हुई कहानी का काव्य रूप )
                 
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Monday 8 July 2013

गलतफहमियाँ


गलतफहमियाँ   ( हास्य )

अगर   सम्बन्धों में  दरार न  होती ,
  मित्रता में  ग़लतफ़हमी न    होती 
                  तो ज़िन्दगी    नीरस   हो जाती 
हृदय -कमल मुरझा जाते 
                 खुशियाँ      बासी   हो      जातीं 
  ये  भ्रांतियाँ     ही   हैं      जो 
  जीवन  में रस   घोलती   हैं , 
  ये  ग़लतफ़हमियाँ ही      हैं         
  जो जीवन  में फूल खिलातीं हैं 
  जीवन को मधुरतम बनातीं है
  इसलिए  खुश रहो  ,आबाद  रहो 
  क्योंकि जब भी कोई गलतफहमी  होती  है 
     तो सदैव  एक नयी जानकारी    होती   है 
  करते रहो ,करते रहो  खूब 
  गलतफहमियाँ करते रहो |
        
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Sunday 7 July 2013

कैसे नमन करूँ


कैसे नमन करूँ 


कैसे नमन करूँ ,प्रभु तुझको
कैसे नमन करूँ।

जब जिसने जो कुछ भी चाहा,
तूने   दिया  उसे  अविलम्ब।
वैभव,पुत्र,मकान सभी कुछ,
देता रहा उसे जी भर,
फिर भी     वह रोता ही रहता। 
कैसे समझाऊँ उसको,   प्रभु। 
कैसे नमन   ------------

अपनी ही करनी का प्रतिफल,
उस  विमूढ़ के आगे   आता। 
नहीं  समझता  वह अज्ञानी,
दोष-बुद्धि  से  उसका नाता।
हर  दिन ,हरपल,रोता रहता,
कैसे समझाऊँ    उसको, प्रभु
कैसे नमन करूँ तुझको--
प्रभु ,कैसे नमन करूँ -------

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