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Tuesday 11 March 2014

नारी उद्बोधन ----------२००४

नारी-उद्बोधन


दुनिया में नारी के प्रति अनाचार को देख कर मन कभी-कभी बहुत आहत होता है,इसीलिये समय पाकर यदा-कदा अपनी भावनाएँ व्यक्त  करती रहती हूँ। आज फिर सामाजिक दोष-पूर्ण परम्पराओं ने मुझे लिखने को प्रेरित किया है ---

त्याग ,तपस्या का पर्याय नारी --
समर्पण और बलिदान की प्रतिमूर्ति नारी --

किन्तु अचानक पति से वियुक्त होने पर -
ज़िन्दगी के हर कदम पर उसके आगे --
प्रश्न!!प्रश्न!!और प्रश्नों की एक लम्बी श्रंखला -
हाँ, यही देखा है मैंने -

पुनः विवाह का प्रश्न,करे या न करे?
नौकरी का प्रश्न,करे या न करे?
श्रृंगार का प्रश्न --
क्या करे, क्या न करे ?
क्या पहने ,क्या न पहने ?
कहाँ जाए ,कहाँ न जाए ?

अरे !ज़िंदगी उसकी ,
और दायित्व ---?
हाँ यही तो  होरहा है समाज में ---
ज़रा कोशिश करें और समझें ---

पुनर्विवाह समाज के दुराचारियों से बचने का साधन है -
"विषय-भोग का नहीं !"
नौकरी जीवन यापन का साधन है -
"किसी पर बोझ न  बनने का "-
और श्रृंगार वो तो पति का प्रतिरूप है
श्रृंगार के हर उपादान में उसे अपने "पति" का रूप  दिखाई देता है। 
सहारा है जीने का। 
फिर क्यों ये प्रश्नों की झड़ी ?

अपनी ज़िंदगी का दायित्व केवल और केवल --
सिर्फ नारी को ही है। -
यह याद रहे सदैव !!!

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