Visitors

Thursday 19 November 2015

जीवन दर्शन ( १९७३ -२०१३ )

जीवन दर्शन
 

केवल सच्चाई , ईमानदारी और ईश्वर पर विश्वास बस यही थी अपनी पूजा ! यही लेकर पति के घर में प्रवेश किया।न कभी अभाव महसूस किया न बहुत चाहना की न किसी के साथ की आवश्यकता समझी न कभी किसी से तुलना या समानता की. भगवान से हमेशा बुद्धि की याचना हर समय की। सिमट कर रह गयथा जीवन!  किन्तु संतोष था भरपूर !कठिनाइयाँ थी लेकिन कोई घबराहट नहीं थी ,सामना करने की ताकत थी। मालूम था घर में केवल पति ही हैं परिवार का साथ नहीं है इसलिए शिकायत या डर किसी बात का नहीं था। परंपरा -रीति-रिवाज़ के तौर पर कोई बंधन नहीं था क्योंकि घर में कोई बड़ा था ही नहीं दिशा दिखाने वाला।जो अपने घर में देखती आरही थी वो और भगवान का सच्चे दिल से स्मरण ,यही थे रीति-रिवाज़ !
            घर में हम दो थे फिर वरदान स्वरुप दो  बच्चे परिवार में दाखिल हुए। भगवान द्वारा दीगई सूझ-बूझ से और उनके आशीर्वाद से परिवार में संवर्धन होता रहा। बच्चे बड़े हुए ,आवश्यकताएँ बढ़ीं ,ईश्वर की कृपा से वे पूरी होती रहीं। बच्चों का भी पूर्ण सहयोग रहा उन्हें भी भगवान ने सही विवेक-बुद्धि दी। कभी अधिक उन्होंने माँगा नहीं। हमारी भी बच्चों के प्रति कुछ इच्छाएँ होतीं थीं पर न कभी कहा न कभी इस्रको लेकर दुखी ही हुए। भगवान ने ऐसा कभी होने नहीं दिया। लेकिन समय आने पर इतना दिया जिसको कभी सोचा न था। भगवान पर गर्व है कि  कमी को कभी महसूस नहीं होने दिया और उपलब्धि पर कभी घमण्ड नहीं होने दिया।सच्चाई-ईमानदारी व संतोष देकर शायद जीवन में की गई गलतियों को भी क्षमा कर दिया।मैंने महसूस यही किया है कि भगवान मेरे साथ सदैव रहे हैं और विश्वास के साथ कह सकती हूँ  कि मुझे उनका साक्षात्कार भी हुआ है।
          प्रार्थना है कि शेष जीवन में भी अपना वरद-हस्त  मेरे सर पर बनाये रखें। समय-समय पर सचेत करें,सहनशीलता, समर्पण,त्याग आदि सद्गुण प्रदान करें। साभार !!   

                                                  --------------------------