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Tuesday 18 November 2014

स्वास्थ्य और सुरक्षा

            भारत के लिए यह विषय आज इतना गंभीर हैं कि स्वच्छता  के विषय पर ध्यान  दिलाने के लिए उत्साहवर्धन हेतु ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। विषय साधारण है पर  ध्यान न देने के कारण असाधारण और समस्यापरक बन गया है।  सुस्वास्थ्य के लिए आवश्यक है स्वच्छता। सुरक्षा के लिए आवश्यक है शौचालय। और इन दोनों की ही अवहेलना का परिणाम सामने है। बीमारियां,यानि नए-नए कीटाणुओं से पैदा होने वाले कितने रोग,दिमागी रोग, टी.बी. ,मलेरिया न जाने और रोग दिन प्रति दिन पनप रहे हैं कारण केवल अस्वस्छता।सफाईकी ओर कोई ध्यान न देना। अस्पताल,पाठशाला,कार्यालय, यानि कोई भी ऐसी जगह नहीं जहाँ व्यक्ति बिना नाक -भौं सकोड़े चला जाय। मजबूरी में जाना और बीमारी समेट  कर लाना।यत्र - तत्र शौचालयों की सर्वत्र यही दशा है।

    इसके अतिरिक्त इनका अभाव इससे भी अधिक गंभीर विषय है, घरों में  शौचालयों का न  होना। यह समस्या गाँवों  तक ही सीमित नहीं बड़े-बड़े शहरों के आस-पास के पिछड़े इलाकों में,शहरों में बसी झुग्गी -झोंपड़ियों में रहने वालों के लिए शौचालयों का अभाव देखा जा सकता है।मोबाइल टॉयलेट भी देखने में आते हैं किन्तु उनकी देख-भाल ,साफ -सफाई की ओर सर्वत्र उपेक्षा होती है। ऐसी स्थिति में  महिलाएँ शौच के लिए कहाँ जाएँ। प्रातः सूर्योदय होने से पूर्व भ्रमण के लिए निकले लोगों को खूब देखने  को मिल जायेगा कि महिलाएँ ,पुरुष गंदे नालों के पानी का प्रयोग कर अपनी प्रातः कालीन क्रिया संपन्न कर अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रण देते हैं। इसी सम्बन्ध में एक और बहुत ही शोचनीय और दुःखद परिणाम सुनाई और दिखाई दे जाता है।

    महिलाओं की मजबूरी और भ्रष्ट लोगों का दुराचरण अपनी चरम सीमा पार कर देता है। वे उनकी हविश का शिकार बनती हैं,उनकी दरिंदगी का निशाना बनती हैं -और परिणाम केवल शोर-शराव,बेज्जती,अपमान।और बस खत्म किस्सा! हर महिला  की सुरक्षा, सुस्वास्थ्य ,सम्मान को ध्यान में रखना है। हर घर में एक शौचालय की व्यवस्था होनी अनिवार्य है। डी.टी.ए.के कार्य को हमसब को मिलकर  बढ़ावा देना है।देश का विकास शौचालय की ओर ध्यान देने से होगा।हाल  ही में जो गाँव गोद लेने का कार्य प्रारम्भ हुआ है उसमें प्रगति सबसे पहले शौचालयों की वृद्धि से होनी चाहिए। डी.टी.ए.इस सम्बद्ध में सराहनीय कार्य कर रहा है। उसने ओड़िसा और महाराष्ट्र में यह कार्य शुरू कर दिया है और  २४००० शौचालय बनाने का संकल्प  लिया है ।
यदि शौचालय है तो सुरक्षा और सुस्वास्थ्य कोई समस्या ही नहीं रहेगी। 


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Monday 17 November 2014

कर्मयोगी "माँ"


कर्मयोगी "माँ "



कर्मयोगी " माँ "


निर्पेक्ष भाव से जुड़े सम्बन्ध को सार्थक करती हुई माँ ,माँ नहीं वह केवल कर्म-योगी होती है। आजतक जो पढ़ा, समझा और देखा उसे शब्द-मुक्ताओं में उतारने का प्रयास है ये मेरी रचना -

चेहरे पर तेज !
माथे पर चमकती लाल बिंदिया !
अति जीर्ण - शीर्ण लाल रंग की साड़ी में लिपटी ,
छोटे कद की वह -
नित्य प्रातः घर आती , कपड़े  धोती और -
उसी उमंग के साथ चली जाती।

एक दिन जिज्ञासु मन ने -
अनायास ही उसे रोक कर परिचय सम्बन्धी
अनेक प्रश्न कर डाले -

सुनकर ठिठकी वह ,
वहीं पास में पड़े पत्थर पर  बैठ   गयी ,
थैले  से बोतल निकाली , पानी पीया ,
बड़ी  ही आश्वस्त होकर बोली -

"साहब , मजदूरी करती हूँ ,
पास की कॉलोनी में घर- घर जाकर -
कहीं साफ-सफाई का
तो कहीं खाना बनाने का
तो कहीं किसी की मालिश करने का काम करलेती हूँ।
साहबजी, दिन भर में जो मिल जाता है,घर चल जाता है।"

घर में कौन-कौन है ?

"जुआरी  पति है,कोई काम नहीं करता। 
अब बीमार भी है,
एक बेटा है,
कार दुर्घटना में दोनों पैर गँवा चुका है
एक पोता है,
उसे स्कूल में डाला है,कुछ अच्छा करले।"
ईश्वर बड़ा दयालु है साहबजी,भूखा नहीं सुलाता।

सो तो है !
पर बाई सा,इतना सब कैसे करती हो! आराम कब करती हो?

"पति को जीवित रखना है,सुहाग है मेरा।
बेटे का इलाज कराना  है.जिगर का टुकड़ा है।
पोते को अच्छा नागरिक बनाना है।
वंशज है मेरा। "

मेरा क्या है ! और गहरी साँस लेकर चुप होगई।

सोचा -छोटे कदवाली का दिल कितना बड़ा !
न चेहरे पर थकान न कोई हताशा ! और

राम- राम कह कर -
योगिनी वह माँ
उसी उत्साह के साथ ,बढ़ गयी अपने "कर्म-पथ" पर--

मैं देखता रहा उसे दूर
पथरीली - काँटों  भरी राह पर जाते हुए जिसका कोई -----


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