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Sunday 24 November 2013

कविता- कामिनी


 कविता कामिनी

एक लम्बे समय से                     
मेरा कवि  -हृदय सोया हुआ था -
मरुस्थल ,रेगिस्तान और वीरानगी का 
तांडव मचा हुआ था ,न कोई प्रश्न,न जिज्ञासा ,
किन्तु ,आशा-रत,प्रयत्न-शील 
ज़िन्दगी जैसे कुछ थमगई हो-
एक रस ज़िंदगी किन्तु उमंग और उत्साह भरपूर -
अचानक सब कुछ ख़त्म 
हृदय में हाहाकार -चीत्कार और जड़ता -
जीवन की गति अवरुद्ध तभी 
अचानक मेरा कवि-हृदय जाग पड़ा -
निष्प्राण लेखनी में मानो जान आगई हो -
यूँ हुई ,मेरी कविता -कामिनी की पुनः शुरुवात। 
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