मरणासन्न व्यक्ति और उसकी मुस्कराहट में छिपा दर्द !!
वह व्यथित है,मरणासन्न है,
परिवार में मातम छाया हुआ है,
प्रस्तुत है एक परिदृश्य;
पास में डॉक्टर है,निराश है,हताश है,वह कुछ कर नहीं पा रहा।
एक पत्रकार खड़ा है,नंबर १ खबरी बनना है।समाचार-पत्र में मृत्यु का सही समय सबसे पहले प्रकाशित करबाना है।
एक चित्रकार भी खड़ा है,मृत व्यक्ति का स्केच बनाने के लिए।
परिवार अवसन्न है,भविष्य की योजना में मग्न।
यानि घटना एक ;
मनःस्थितियाँ चार !!
सबकी सोच अलग; चारों मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न विचार !
हर कोई अपने स्वार्थ में संलग्न !
ग्राह्य है ,रिश्तों के मायने बदल गए हैं।
मतलब साफ़ है-
" आज के परिवेश में रिश्ता अपने आप से जोड़ें ; जीवन के आखिरी पड़ाव पर जीवन का अर्थ स्पष्टतः दिखाई देता है,मरणासन्न व्यक्ति की मुस्कराहट का यही अर्थ है। "
हम सब भी तो मरणासन्न हैं,देखें अपने चारों ओर भी यही दृश्य है !!!
ये विवरण (ओशो की कहानी )मैंने समाचार-पत्र में पढ़ा था,मर्म-स्पर्शी था तो कलम हाथ में आगयी। शब्द और अभिव्यक्ति मेरी निजी है।
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