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Saturday 18 August 2018

best half प्रकाशित nbt


बेस्ट हाफ ( nbt की माँग पर )

जन्म पत्री नहीं मिली कोई बात नहीं ,
राहु - शनि की दशा आती रही कोई बात नहीं,
लड़ाई-झगड़े होते रहे कोई बात नहीं ,
बात-चीत बंद होगई  कोई बात नहीं,
पर कुछ तो है
जो ३६ साल के बाद भी हम साथ-साथ हैं।
क्योंकि हम बेस्ट-हाफ़ हैं।

 इत्तिफाक से मिले इस -शीर्षक बेस्ट-हाफ के अलावा अन्येतर इतने कम शब्दों में जीवन को सिमेट कर रख देना मुश्किल था।

 धन्यवाद nbt !!

       ( २०१० में प्रकाशित )

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Wednesday 1 August 2018

कहानी एक राजा की


कहानी एक राजा की --

बहुत ही परिश्रमी,न्यायी,प्रजा का परम हितैषी
लेकिन परेशान !
एक राजा, पहुँचा अपने गुरु के पास,और
निवेदन किया -गुरु देव !-
समस्याएँ नित्य पैदा हो रही हैं, राज-कार्य से थक गया हूँ,
कोई समाधान दीजिये ;
बड़ा सरल है, गुरु बोले -"राज्य छोड़ो,अपने पुत्र को देदो।"
" पुत्र तो अभी बहुत छोटा है।"
गुरु ने कहा -" तो फिर राज्य मुझे देदो,राज्य मैं सँभालूँगा।"
राजा बहुत खुश,ठीक है कह कर चल दिया,
गुरु बोले-कहाँ चले ??
ख़जाने से कुछ कमाई के लिए पैसा लेने, राजा बोला -
गुरु ने अट्टहास किया,बोले -
अरे राज्य मेरा,कोष मेरा,उसमें अब तुम्हारा कुछ नहीं।
राजा परेशान ;
गुरु बोले - क्या हुआ,तुम्हें नौकरी चाहिए ,मेरी करो ,
मुझे भी राज्य चलाने के लिए अनुभवी सेवक चाहिए।
राजा तैयार।
गुरु ने कहा ; तो जाओ, राज-कार्य सँभालो,हर महीने
तुम्हें तुम्हारा वेतन मिल जायेगा।
राजा ख़ुशी-ख़ुशी राज कार्य  में व्यस्त होगया।
कुछ  समय बीतने पर एक दिन,गुरु पहुँचे राजा के पास -
बोले -  कहो अब कैसा लग रहा है  ?
राजा बोला- बहुत अच्छा ! दिन-भर काम करता हूँ -
परिवार के साथ समय व्यतीत करता हूँ और
निश्चिन्त रात को चैन की नींद सोता हूँ।
गुरु बोले-कुछ आया समझ ?
"सेवक बन कर्म करो,स्वामी बनोगे तो समस्याएँ -
आएँगी,कर्म करो और ईश्वर को समर्पित करो।"
कैसा रहा समाधान !
          राजा हँसा और बोला - धन्यवाद !!
  ( पठित नीति-परक कहानी की भाषा और अभिवक्ति मेरी निजी है।)
 
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Sunday 24 June 2018

जब से होश सँभाला




मुझे आपत्ति  है -----

जब से होश  सम्भाला है -
तब से दो असहनीय शब्दों का सामना कर रही हूँ -
वे दो शब्द ; पढ़कर स्वयं समझ पाएँगे।
सोचिये --
क्या महिला के विगत होने पर
पुरुष के लिए " विधुर " शब्द का प्रयोग किसी ने किया है ?
किन्तु महिला को कितनी उपेक्षा व बेरुखी से " विधवा" कह कर
बेचारगी का बोध करा दिया जाता है,यानि
पुरुष कुँवारा होगया,और महिला लाचार,असहाय और बेचारी ;
जिसका मन चाहा शोषण किया जा सके।
लेकिन ऐसा नहीं है वो तो -
और अधिक मजबूत,हिम्मती,सक्षम और समर्थ होजाती है क्योंकि -
इस बिगड़ैल समाज में उसे सम्मान से जीना है।

        ("जब-तब इन्हीं महिलाओं की सहायता व सम्मान हेतु आयोजन भी किये
जाते हैं,वहाँ भी इस उपेक्षित शब्द के बिना विषय का विस्तार किया जाय तो -
अधिक वाञ्छनीय होगा।"जैसे विधवा-पेंशन योजना" के स्थान पर --
"विशिष्ट महिला पेंशन योजना"वाक्यांश का प्रयोग अधिक सम्मान जनक होगा।)
   
बात यही नहीं  -
तलाक-शुदा,डिवोर्सी या परित्यक्ता -
इनका भी प्रयोग महिला के लिए ही होता है
पर उसे तो ऊपर वाला संभालता है तब,
वो कभी नहीं छोड़ता उसे !
पुरुष का तो  पता भी नहीं चलता,-
उसका सही परिचय क्या है !! तो
समझदारी इस बात में है कि -
आवश्यकतानुसार "वो नहीं रहे।"
या" पति नहीं रहे।"या "वो अलग रहते हैं"कहकर
सूक्ष्म परिचय दिया सकता है।
जो सम्मानजनक भी होगा और
उपेक्षा जैसा भाव भी नहीं होगा।
     
महिलाओं के सशक्तिकरण पर अक्सर सरल शब्दों में -
    अपने विचार व्यक्त करती रही हूँ उन्ही में एक ये भी "एडिशन"है।

                          *********





Saturday 19 May 2018

थकी थकी सी प्रकृति


   पहले ताण्डव और फिर बेसुधी की तन्द्रा --

१३ मई रविवार -
कुदरत का ऐसा रौद्र और विनाशकारी रूप -
उम्र के इतने दशक बीते नहीं देखा।
अचानक चारों तरफ से वायु का वेग -
जिसे तूफ़ान में बदलते देर नहीं लगी।
दरवाज़ों की खड़खड़ाहट से लगा -
मानो तूफ़ान स्वयं आश्रय ढूँढ रहा हो
ऐसा लगा कि आज कुछ अनहोनी होके रहेगी।
शाम ५ से १० बजे तक उसकी विकरालता मन को डरा रही थी
और मैं सहमी सी डरी सी सोगयी !लेकिन
जब उठी तो
सुबह के दृश्य ने तो आँखें ही नम करदीं
स्तब्ध रह गयी।
प्रकृति का वो भयावह रूप !
और अब !
इतनी शांत,इतनी थकी थकी सी प्रकृति
लगा जैसे " शिशु को जन्म देने के बाद ,
                महिला गहरी नींद में सो रही हो।"
कोई हल-चल नहीं ,बड़े-बड़े वृक्ष जो भयंकर झंझावात में उलझ गए थे
थके हारे से  निश्तब्ध खड़े थे
आच्छादित धूल के आगोश में निष्पन्द थे।
 ख़ैर अभी तो
प्रकृति का ताण्डव शान्त होगया, पर
मन विचारों में उलझ गया --
सच तो यह है कि विकास के नाम पर,स्वार्थ के लिए
हम जो प्रकृति के  साथ जो क्रूरता और निर्ममता कर रहे हैं  
उसका बदला प्रकृति स्वयं को दण्डित करके लेरही है।
अंततः तो भुगतान हमें ही करना है।

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Friday 20 April 2018

वक्त की करवट


वक्त की करवट

क्योंकि अब दादी दादी नहीं होतीं,नानी नानी नहीं होतीं
केवल एक वृद्धा,असमर्थ,ज़रूरतमंद,महिला होती है
हाँ घर में  एक महत्वपूर्ण,प्रतिष्ठित स्थान अवश्य है
जो केवल " गिफ्ट एक्सचेंज " के लिए निर्धारित रह गया है

वक्त के अचानक करवट लेने से -
एक बात अच्छी हुई है, इनके पक्ष में कि
कोई अब ये नहीं कह सकता कि
नानी-दादी ने बिगाड़ दिए
क्योंकि नाती-पोते न प्यार करने को मिलते हैं न
गलत बात पर डाँटने को मिलते हैं।
क्योंकि ये सारे काम माता-पिता ही करते हैं
वे ही सारे संबन्धों के पर्याय हैं
संबंधों का बोझ ढोना आसान नहीं
हर सम्बन्ध का अपना महत्व होता है जो अब महत्व विहीन है।
परिणाम प्रत्यक्ष है
संबंधों के प्रति बच्चों की अज्ञानता, कुसंस्कार, उनका मानसिक विकास,
सामाजिक विकास, उनका खालीपन उन्हें कहाँ लेजा रहा है !!
ये है विचारणीय पक्ष ! !
नियंत्रण नियंत्रण नियंत्रण !!
टीवी,मोबाइल,बाहर आना-जाना सब जगह पहरा
अति कठोरता !!इससे उनमें अविश्वास पैदा होरहा है।
ये सब बच्चों को असामान्य,हिंसक बनाने का ही कार्य कर रहे हैं।
चिन्तनीय विषय है !!
कारण कुछ भी माना जा सकता है,जो बहाना मात्र हैं।
चूक बहुत बड़ी होरही है --
पता नहीं किसके भले के लिए ??

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