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Sunday 24 June 2018

जब से होश सँभाला




मुझे आपत्ति  है -----

जब से होश  सम्भाला है -
तब से दो असहनीय शब्दों का सामना कर रही हूँ -
वे दो शब्द ; पढ़कर स्वयं समझ पाएँगे।
सोचिये --
क्या महिला के विगत होने पर
पुरुष के लिए " विधुर " शब्द का प्रयोग किसी ने किया है ?
किन्तु महिला को कितनी उपेक्षा व बेरुखी से " विधवा" कह कर
बेचारगी का बोध करा दिया जाता है,यानि
पुरुष कुँवारा होगया,और महिला लाचार,असहाय और बेचारी ;
जिसका मन चाहा शोषण किया जा सके।
लेकिन ऐसा नहीं है वो तो -
और अधिक मजबूत,हिम्मती,सक्षम और समर्थ होजाती है क्योंकि -
इस बिगड़ैल समाज में उसे सम्मान से जीना है।

        ("जब-तब इन्हीं महिलाओं की सहायता व सम्मान हेतु आयोजन भी किये
जाते हैं,वहाँ भी इस उपेक्षित शब्द के बिना विषय का विस्तार किया जाय तो -
अधिक वाञ्छनीय होगा।"जैसे विधवा-पेंशन योजना" के स्थान पर --
"विशिष्ट महिला पेंशन योजना"वाक्यांश का प्रयोग अधिक सम्मान जनक होगा।)
   
बात यही नहीं  -
तलाक-शुदा,डिवोर्सी या परित्यक्ता -
इनका भी प्रयोग महिला के लिए ही होता है
पर उसे तो ऊपर वाला संभालता है तब,
वो कभी नहीं छोड़ता उसे !
पुरुष का तो  पता भी नहीं चलता,-
उसका सही परिचय क्या है !! तो
समझदारी इस बात में है कि -
आवश्यकतानुसार "वो नहीं रहे।"
या" पति नहीं रहे।"या "वो अलग रहते हैं"कहकर
सूक्ष्म परिचय दिया सकता है।
जो सम्मानजनक भी होगा और
उपेक्षा जैसा भाव भी नहीं होगा।
     
महिलाओं के सशक्तिकरण पर अक्सर सरल शब्दों में -
    अपने विचार व्यक्त करती रही हूँ उन्ही में एक ये भी "एडिशन"है।

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