एक महात्मा का प्रभाव ( कहानी )
मनोरम वातावरण ! उन्मुक्त प्रकृति विलास ! चिड़ियों की चहचहाहट !मेमनों की मिमियाहट !कल- कल बहती नदी और झर- झर झरते प्रपात !इन सबके बीच घाटी में बसा एक गाँव !बहुत ही कम आबादी किन्तु लूट-मार, ईर्ष्या-द्वेष ,लड़ाई -झगड़ा ! पूरी तरह आतंक के साये में जी रहा गाँव !!
कि अचानक एक प्रातः स्वोद्भूत गुफा में एक महात्मा के दर्शन ने पूरे गाँव को चकित कर दिया। अद्भुत अपूर्व तेज ,आकर्षक व्यक्तित्व ,न जाने कैसा था जादुई प्रभाव ! कि आपसी द्वेष ,मार-काट सब भूल गए। गाँव में कोलाहल ! "एक महात्माजी आये हैं गाँव में, समाधि ग्रस्त हैं।" उमड़ पड़ा सारा गाँव। आकर महात्माजी के चरणों में बैठ गया। समाधि टूटी तो श्रद्धालुओं ने नत मस्तक हो प्रणाम किया। धीरे-धीरे भक्त जनों की भीड़ बढ़ने लगी। उपहारों के ढेर; भोजन,वस्त्र,ओढन,बिछावन सब कुछ महात्माजी की सेवा में समर्पित !शांत और प्रसन्न मुद्रा। महात्मा जी प्रवचन करने लगे। ध्यान मग्न श्रद्धालु विभोर होगये। नित्य ही का यह क्रम बनगया। जनता आती,भगवत-चर्चा ,भजन-कीर्तन,संस्कार जनित बातें होती। गाँव अब एक आध्यात्मिक -नगरी बन चुका था।प्रभाव इतना गंभीर कि एकदिन ग्राम-वासी एक विस्मयकारी प्रस्ताव लेकर महात्माजी के पास आये। हाथ जोड़ कर विनम्र स्वर में बोले -" इस पुण्य -भूमि में एक मंदिर बनाने का प्रस्ताव !मुग्ध हो गए महात्माजी,तुरंत बोले -उत्तम विचार ,कल एकादशी है कल का दिन श्रेष्ठ है।
प्रसन्न-चित्त गाँव वाले दूसरे ही दिन राज-मजूर और अन्य सामग्री लेकर गन्तव्य पर पहुँच गए। किन्तु ये क्या महात्माजी की कुटिया खाली ! कहाँ गए महात्माजी !सभी स्तब्ध !हतप्रभ कौन थे ,क्यों आये ,कहाँ गए वे सन्त ? लेकिन मंदिर बना आस्था का ! लोग पूर्व-वत आते रहे ,भगवत-चर्चा होती रही, भजन-कीर्तन चलता रहा। लोग पूरी तरह धार्मिक होगये।
एकदिन जब सत्संग,चलरहा था,तभी एक आवाज़ ने चौंकाया,अरे महात्माजी आगये -----और महात्माजी अपने समाधि स्थल पर आखड़े हुए,आभा-मण्डित,सर झुकाये।अपना नकाब हटाया--और बोले -सारे गाँव के हालात देखकर मन बहुत व्यथित था,उद्विग्न था यही सोचकर ये नकाब--- इतना कहते-कहते वहीं गिर गए
और चिर समाधि लेली। आत्मा परमात्मा में विलीन होगई----------
सभी हकबके से,
सर्वत्र सन्नाटा ,
कोई हलचल नहीं ,
विस्फारित नेत्रों से एक दूसरे को देखने लगे। तभी एक आवाज़ आयी ,अरे ये ए ए ए तो ओ ओ ओ नुक्कड़ पर बैठने वा आ आ ला आ आ दीन-हीन,उपेक्षित मोची --
भक्त-जनों की आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होनेलगी।उन्हीं में से एक और आवाज़ ----एक मोची सारे गाँव का सुधार करगया।
महात्माजी की जय ,महात्माजी की जय ----समस्त दिशाओं से एक ही ध्वनि गूँज उठी --
अब मंदिर के साथ साधु महात्मा का स्मारक भी बना। न कोई झगड़ा न कोई फसाद !!केवल और केवल
भजन-कीर्तन ,सुख-शान्ति की नगरी बना गाँव !!
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मनोरम वातावरण ! उन्मुक्त प्रकृति विलास ! चिड़ियों की चहचहाहट !मेमनों की मिमियाहट !कल- कल बहती नदी और झर- झर झरते प्रपात !इन सबके बीच घाटी में बसा एक गाँव !बहुत ही कम आबादी किन्तु लूट-मार, ईर्ष्या-द्वेष ,लड़ाई -झगड़ा ! पूरी तरह आतंक के साये में जी रहा गाँव !!
कि अचानक एक प्रातः स्वोद्भूत गुफा में एक महात्मा के दर्शन ने पूरे गाँव को चकित कर दिया। अद्भुत अपूर्व तेज ,आकर्षक व्यक्तित्व ,न जाने कैसा था जादुई प्रभाव ! कि आपसी द्वेष ,मार-काट सब भूल गए। गाँव में कोलाहल ! "एक महात्माजी आये हैं गाँव में, समाधि ग्रस्त हैं।" उमड़ पड़ा सारा गाँव। आकर महात्माजी के चरणों में बैठ गया। समाधि टूटी तो श्रद्धालुओं ने नत मस्तक हो प्रणाम किया। धीरे-धीरे भक्त जनों की भीड़ बढ़ने लगी। उपहारों के ढेर; भोजन,वस्त्र,ओढन,बिछावन सब कुछ महात्माजी की सेवा में समर्पित !शांत और प्रसन्न मुद्रा। महात्मा जी प्रवचन करने लगे। ध्यान मग्न श्रद्धालु विभोर होगये। नित्य ही का यह क्रम बनगया। जनता आती,भगवत-चर्चा ,भजन-कीर्तन,संस्कार जनित बातें होती। गाँव अब एक आध्यात्मिक -नगरी बन चुका था।प्रभाव इतना गंभीर कि एकदिन ग्राम-वासी एक विस्मयकारी प्रस्ताव लेकर महात्माजी के पास आये। हाथ जोड़ कर विनम्र स्वर में बोले -" इस पुण्य -भूमि में एक मंदिर बनाने का प्रस्ताव !मुग्ध हो गए महात्माजी,तुरंत बोले -उत्तम विचार ,कल एकादशी है कल का दिन श्रेष्ठ है।
प्रसन्न-चित्त गाँव वाले दूसरे ही दिन राज-मजूर और अन्य सामग्री लेकर गन्तव्य पर पहुँच गए। किन्तु ये क्या महात्माजी की कुटिया खाली ! कहाँ गए महात्माजी !सभी स्तब्ध !हतप्रभ कौन थे ,क्यों आये ,कहाँ गए वे सन्त ? लेकिन मंदिर बना आस्था का ! लोग पूर्व-वत आते रहे ,भगवत-चर्चा होती रही, भजन-कीर्तन चलता रहा। लोग पूरी तरह धार्मिक होगये।
एकदिन जब सत्संग,चलरहा था,तभी एक आवाज़ ने चौंकाया,अरे महात्माजी आगये -----और महात्माजी अपने समाधि स्थल पर आखड़े हुए,आभा-मण्डित,सर झुकाये।अपना नकाब हटाया--और बोले -सारे गाँव के हालात देखकर मन बहुत व्यथित था,उद्विग्न था यही सोचकर ये नकाब--- इतना कहते-कहते वहीं गिर गए
और चिर समाधि लेली। आत्मा परमात्मा में विलीन होगई----------
सभी हकबके से,
सर्वत्र सन्नाटा ,
कोई हलचल नहीं ,
विस्फारित नेत्रों से एक दूसरे को देखने लगे। तभी एक आवाज़ आयी ,अरे ये ए ए ए तो ओ ओ ओ नुक्कड़ पर बैठने वा आ आ ला आ आ दीन-हीन,उपेक्षित मोची --
भक्त-जनों की आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होनेलगी।उन्हीं में से एक और आवाज़ ----एक मोची सारे गाँव का सुधार करगया।
महात्माजी की जय ,महात्माजी की जय ----समस्त दिशाओं से एक ही ध्वनि गूँज उठी --
अब मंदिर के साथ साधु महात्मा का स्मारक भी बना। न कोई झगड़ा न कोई फसाद !!केवल और केवल
भजन-कीर्तन ,सुख-शान्ति की नगरी बना गाँव !!
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