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Tuesday, 27 October 2015

शिकायतें ( हास्य-व्यंग्य- एक छोटी सी सीख )


शिकायतें ( हास्य-व्यंग्य -एक छोटी  सीख )
   

   बहुत दिनों से यह चार वर्णीय " शिकायत " शब्द "भेजे" की परिक्रमा लगा रहा था। सोचा आखिर इस बहुआयामी शब्द के पोटले में है क्या !और मैंने अपनी मेज़ पर रखे हुए लेखनी के बक्से से लेखनी को निकाल कर उसीका प्रश्रय लिया। असल में इस शब्द का प्रयोग एक नहीं अनेक अर्थों में होता  रहा है। आप कभी दो व्यक्तियों का सम्वाद सुनें तो पायेंगे कि या तो वे किसी की टीका -टिप्पणी कर रहे होंगे ,या कभी किसी के उपहारों को लेकर कि वह ऐसा लाये वह वैसा लाये। और कभी किसी को प्रत्यक्ष ही कहेंगे अरे, ये सब करने की क्या ज़रुरत थी। यानि कोई करे तो क्या करे ,यहाँ तो शिकायतों का पहाड़ तैयार है।

          इसी प्रकार की शिकायतें प्रायः लोग करते ही रहते हैं ;बच्चे हैं कि पढ़ते ही नहीं हैं ,फोन पर ही लगे रहते हैं। बीवी की शिकायत कि उस पर ध्यान नहीं देता उसका पति ,घरवाली से शिकायत कि कभी समय पर तैयार नहीं होती हमेशा देर कर देती है। मतलब  कि ये "अदना" सा शब्द अपने अंदर कितना खजाना सँजोये हुए है।

                     सोचकर डब्बे से कलम निकाली ही थी कि दरवाज़े की घंटी बज गयी. अबे,अब कौन शिकायत लेकर आगया लेखनी को विराम देने। देखकर सन्तोष हुआ अपना पुराना मित्र है हँसी-ख़ुशी समय बीतेगा।पर हेलो-हाइ तो दूर खोल दिया अपना पिटारा। अरे बन्धू, तुम तो भूल ही गए, न आना न जाना न फोन, क्या करते रहते हो, कहाँ हो इतने व्यस्त ?सोचा, मौका दे तब तो बोलूँ। खैर सुनते-सुनाते दो घंटे बरबाद करके चला गया। और दिमाग तो ऐसा होगया कि कलम तो पूर्ण विराम के मूड में होगयी।

           मन किया किसी से फोन करके थोड़ा रिलैक्स फील करलूँ। और नम्बर दबा दिया, पर भैया, ये तोऔर भी बड़ी मुसीबत मोल लेली।  आवाज़ आई ओ भैया, कैसे याद आगयी इस गरीब की। मिलना-जुलना ही बन्द कर दिया तूने तो ,क्या बात है सब -ठीक -ठाक तो है किसी हैल्प की ज़रुरत हो तो बता। कोई गलती हो गयी हो तो हटा उन काले बादलों को। मिलते हैं गप-शप करते हैं ,अच्छा ऐसा कर कल आजा भाभीजी को लेकर। चल रखता हूँ देर भी बहुत होगयी है।हद होगयी, दिमाग झन-झना उठा,फोन मैंने किया और याद भी मैंने ही किया और शिकायत भी मुझीसे। कौनसे काले -पीले बादल। लगा जैसे किसी बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। पर फोन-वार्ता से तो राहत मिल गई।इतना सुकून तो मिला।

         इतनी परेशानी में तो बीवी ही याद आती है तो लगादी बड़े प्यार से आवाज़ "-मैडमजी, ज़रा मिलेगी एक कप गरम-गरम चाय।" इसबार तो और महान गलती होगयी।आवाज़ आई,केवल एक छुट्टी मिलती है।( सोचा कोई बात नहीं बीवी है आगया होगा गुस्सा किसी बात पर ,चाय तो पिला ही देगी। ) लेकिन नहीं,सुनिए आगे भी। खुद ही बनालो। हर छुट्टी ऐसे ही निकल जाती है। न बाजार न शॉपिंग,न घूमना - घुमाना ,मुझे नहीं करना आज कुछ। ठीक है ,ठीक है। और कर भी क्या सकता हूँ.ठीक ही तो कह रही है।मेल करता हूँ बॉस को,कल की लीव लेता हूँ।बीवी खुश हो जाएगी।

           तुरन्त बॉस का जवाब !अरे काहेकी छुट्टी,अभी पिछले हफ्ते ही तो ली थी, काम नहीं करना है तो कल आकर रिज़ायन करदो। होगयी छुट्टी,कमाल होगया,कोई मज़ाक है क्या ! एक छुट्टी पर रिज़ायन। कलम फेंका एक तरफ। सोचा,रात भी होगयी है,सो तो सकता हूँ चैन से।

          तकिये पर सर रखा,सोने के लिए आँखों का नर्तन चल ही रहा था कि बज गयी फोन की घण्टी,बहिन का फोन-भैया ! कल राखी थी आप आये नहीं,भूखी-प्यासी शाम तक राह देखती रही और आप हैं कि न आपाने का फोन भी नहीं किया,कम से कम फोन तो कर देते। सास-ससुर,आपके बहनोई सब ही उलाहना देते रहे और फोन पर ही उसकी सुबुकियाँ शुरू। खैर,किसी तरह मनाया,गलती मानी तो उसे शांति मिली,और सबसे भी क्षमा-याचना करली। और अन्त में लेखनी को उठाया और टेबल पर रखे कलम के बक्से में ज्यों का त्यों सजाकर रख दिया।

                  तो भैया, ये शिकायतों का पुलिंदा तो जिंदगी में बढ़ता ही रहता है। ध्यान इस बात का रहे कि शिकायतों का पोटला,पुलिंदा,खज़ाना कितना भी भारी क्यों न होजाये,पर संबंधों में दरार न आने पाये।
                  सुनते रहिये,सुनते रहिये,क्योंकि जहाँ आपने अपना मुँह खोला,लेखनी नहीं बन्धुओ आपकी जिन्दगी रुक जाएगी।

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