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Monday 6 January 2014

अध्यापक की वेदना

अध्यापक की वेदना

एक समय था ,शिष्यों की  याद आते ही -
फ़क्र से सर ऊँचा होजाता था ;
अभिमान होने लगता था ,अपने रोज़गार पर-
इतना मान-सम्मान ,स्नेह मिलता था।
पर आज तो समय के चक्रव्यूह में वह सब कुछ मानो स्वाहा ही होगया।
आज तो वस्तु -स्थिति यह है -
कि वह बेचारा है,मास्टर है ,व्यवसायी है

नहीं जानते कि विश्व के बड़े -बड़े
वैज्ञानिकों,चिकित्सकों ,और शिक्षाशास्त्रियोँ की -
नींव डालने वाला -
वह बेचारा अध्यापक ही होता है।

नहीं जानते कि कुछ घंटे पढाने वाला अध्यापक -
कितने घंटे उसकी तैयारी करता है ?
अपने परिवार की कितनी उपेक्षा करता है ?
मनोविनोद से कितनी दूर रहता है ?
किन्तु -
इन प्रश्नों का जवाब आज केवल -

"महीने  की  पगार  पर आकर   रुक जाता  है "और -
वह बेचारा सदा बेचारा का बेचारा ही रह जाता है।
   
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Friday 13 December 2013

महँगाई का दर्द



महँगाई का दर्द

 होता था परिवार बड़ा , इसमें था आराम बड़ा पर
 बढ़ती महँगाई ने कर दिया इसे लघुकाय बड़ा --


        आँखों के तारे इकलौते पुत्र को  पिता ने पुकारा और -
        आह भरते हुए कहा  - बेटा ,जाओ अब   अलग करो ,
        अब इतनी सी आमदनी में हो नहीं पाता सबका ,
                                         पर आते-जाते रहना ,तुम्हारी बड़ी याद आएगी।
             
         बुढ़ापे के सहारे भाई को बुलाया और -----
         सिसकते हुएबोले - मेरे भाई ,बहू-बच्चों के साथ -
         अपना घर अलग कर लो ,खर्चा पूरा नहीं होता ---
                                           मैं मिलने आता रहूँगा,राजी-खुसी  देते रहना।
   
        रोते -रोते माँ ने दो-दिन पहले ही बच्चों के साथ आई -
       अपनी बेटी से दबी जवान में कहा -बेटी जा अब अगले-
       बरस आना ,जब बच्चों के स्कूल खुल रहे हों ,वह घर देख लेंगे -
                                        और जल्दी आना ,आने की  खबर कर देना।


"अति सर्वत्र वर्जयेत् "की उक्ति अगर सत्य नहीं होती -
तो ये प्राचीन बड़े परिवार ,टूट कर यूूँ  न बिखरते -----

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Friday 29 November 2013

समानता का अधिकार ( 2 ) क्रमशः ---

समानता का अधिकार ( २ ) क्रमशः --

------और जब उस मानवी ने
 क्रांतिकारी कदम उठाया ,तो कहा गया-
औरत एक अबूझ "पहेली"  है।
वह "तिरिया-चरित्र" है।
उसे आज तक कोई नहीं समझ पाया। 
औरत
क्यों ? क्यों ?
क्योंकि मनुष्य कभी उसके 'लेवल"तक पहुँच ही नहीं पाया -
या पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता -
शायद करना चाहता भी नहीं है ,
पर  जबभी समझना चाहेगा -
तभी समझ में आजायेगा
कि वह एक "पहेली" है या
"तिरिया चरित्र" है या क्या है वह!
क्योंकि उसके सारे रूप इसी तिरिया चरित्र में ही समाये हैं।
तिरिया चरित्र का अर्थ है - स्त्री-चरित्र यानि -
समझ-बूझ रखने वाली ,उदारमना ,सुमुखी ,सुलक्षणा -
साथ ही एक दूसरा पक्ष भी है उसके चरित्र का -
उसे ही वह जान-बूझ कर  समझना ही नहीं चाहता।
यदि वह हिंसक है ,दानव है ,चालवाज़ है ,व्यसनी है ,क्रूर है ,जल्लाद है -
तो वही सारे रूप औरत  में भी हैं बल्कि इससे भी अधिक -
उसके क्रांतिकारी रूप को समझें और
पहिचानें ,जानें कि नारी क्या है !
स्वयं परमेश्वर बनो उससे पहले नारी को देवी नहीं "सम - मान  देना सीखो।
"सब समझ आजायेगा।"

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मेरे बच्चे


बच्चे होते बड़े -----

मेरे बच्चे  बड़े सयाने ,      कष्टों के हैं बड़े दीवाने 
जितना मिलता  कष्ट उन्हें, आनन्द उसी में पाते हैं ,
घबराहट का काम नहीं ,  संतुलन बनाये रखते  हैं
इसीलिये हर मुश्किल का डटकर मुकाबला करते हैं
मुश्किल और कष्ट-कठिनाई,घुटने टेक खड़े रहते ,
सबका दिल खुश करते हैं , संतोष इसी में पाते हैं।
कोई नदी-पहाड़ों में खुश,कोई खुश देश-भ्रमण में है,
संघर्षों के बीच इसी में ,जीवन का सुख पाते हैं --
           जीवन का है सत्य यही फिर   क्या  घबराना
           ईश्वर  का आशीष ,कभी  पीछे मत हटना --
           माँ का है  अति -प्यार ,कभी इसको मत खोना।
                                -----------     

Tuesday 26 November 2013

महा -प्रयाण



महा-प्रयाण !

यह तो एकदिन होना ही है क्योंकि -
मृत्यु और जीवन तो शाश्वत सत्य है 
न बचपन रहता है,न जवानी रहती है और 

न वृद्धावस्था रहेगी :
किन्तु यह अवस्था बड़ी लम्बी और भयावह होगी ,
कानों से सुनाई कम देगा  
आँखों  से दिखाई कम देगा -
जबान लड़खड़ाने लगेगी -
कोई समझने वाला नहीं होगा ,
दौड़ - भाग की दुनिया में 
पास भी बैठने वाला नहीं होगा कोई -
इसलिए अभी से सोचना होगा ----

क्रोध,लोभ, मोह व्यसन को भूलना होगा 
भक्ति,ज्ञान,सत्कर्म में ही मन लगाना होगा 
जब तक शरीर सशक्त है ,यही  श्रेष्ठ होगा -  
इसी में सच्चा आनंद मिलेगा 
चित्त को पूर्ण शांत जीवन मिलेगा। 

परमात्मा का आश्रय लेकर 
जीवन की डोर उनके हाथों सौंप कर 
उन्हें पुकारना होगा 
और तब वह स्वयं हाथ पकड़ कर 
अपने धाम लेजाएंगे 
और यह सच्चा प्रयाण ही नहीं : "महा प्रयाण होगा" !!

             ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ----

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सवाल


  सवाल ??

ये अचानक मेरी लेखनी में लड़खड़ाहट!!!
हठात हाथों में कम्पन !
विचारों की अविच्छिन्न धारा -प्रवाह में अवरोध !
होता है ,होता है साहब !-
ऐसा ही होता है-
जब आपकी  ज़िंदगी ही -
सवाल बन कर आपसे जवाब माँगे और -
आप निस्तब्ध होजाएं तब
होता है ,होता है  -------ऐसा ही हो ता है।
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Sunday 24 November 2013

कविता- कामिनी


 कविता कामिनी

एक लम्बे समय से                     
मेरा कवि  -हृदय सोया हुआ था -
मरुस्थल ,रेगिस्तान और वीरानगी का 
तांडव मचा हुआ था ,न कोई प्रश्न,न जिज्ञासा ,
किन्तु ,आशा-रत,प्रयत्न-शील 
ज़िन्दगी जैसे कुछ थमगई हो-
एक रस ज़िंदगी किन्तु उमंग और उत्साह भरपूर -
अचानक सब कुछ ख़त्म 
हृदय में हाहाकार -चीत्कार और जड़ता -
जीवन की गति अवरुद्ध तभी 
अचानक मेरा कवि-हृदय जाग पड़ा -
निष्प्राण लेखनी में मानो जान आगई हो -
यूँ हुई ,मेरी कविता -कामिनी की पुनः शुरुवात। 
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