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Monday, 6 January 2014

अध्यापक की वेदना

अध्यापक की वेदना

एक समय था ,शिष्यों की  याद आते ही -
फ़क्र से सर ऊँचा होजाता था ;
अभिमान होने लगता था ,अपने रोज़गार पर-
इतना मान-सम्मान ,स्नेह मिलता था।
पर आज तो समय के चक्रव्यूह में वह सब कुछ मानो स्वाहा ही होगया।
आज तो वस्तु -स्थिति यह है -
कि वह बेचारा है,मास्टर है ,व्यवसायी है

नहीं जानते कि विश्व के बड़े -बड़े
वैज्ञानिकों,चिकित्सकों ,और शिक्षाशास्त्रियोँ की -
नींव डालने वाला -
वह बेचारा अध्यापक ही होता है।

नहीं जानते कि कुछ घंटे पढाने वाला अध्यापक -
कितने घंटे उसकी तैयारी करता है ?
अपने परिवार की कितनी उपेक्षा करता है ?
मनोविनोद से कितनी दूर रहता है ?
किन्तु -
इन प्रश्नों का जवाब आज केवल -

"महीने  की  पगार  पर आकर   रुक जाता  है "और -
वह बेचारा सदा बेचारा का बेचारा ही रह जाता है।
   
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1 comment:

  1. Aapke anubhav bahut ache lage dill ko chhoo gaye ...
    Bahut apnne se lage .....
    Par phir bhi gar khuda mujh se kahe kuchh maang bande mere mein yahi mangungi ki mean phir adhyapika hi banu ......Jo pyar aura respect hum ko milti hen wo koi kharid nahi sakta ....

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