धन्यवाद प्रभु !!
प्रभु ; आपने तो सब कुछ दिया ,
जीने के समुचित साधन उपलब्ध कराये ,
शान्त्योचित उपकरण भी !
फिर भी अशांति !!
प्रभु हर समय यही उलझन ;
ये नहीं,
वो नहीं,
ऐसा क्यों ?
वैसा क्यों ?
उत्तर ----
अरे ! ये कारण तो मैंने नहीं दिए,
ये तो मन के अंदर से भी नहीं,
तो क्या बाहर से ?
शायद !
तो इन्हें बाहर करो
घुसने ही नहीं दो तो
क्या बचा ?
शांति !!
बस !यही कारण है अशांति का
बाहर से आने वाली परेशानियों को छोड़ो
शांति का ही वास होने दो !
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति !!
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