कुम्भ का फल
एक दिन भगवान के पास पहुँचे एक बड़े ही धर्मात्मा सन्त
पूछा - इस बार कुम्भ का फल किसे मिला है ,भगवन !
भगवान ने कहा -"एक रत्तू चर्मकार को ,
बहुत दूर के गाँव में रहता है,
जूते गाँठता है -
जनता की सेवा करता है
हृदय का उदार है "
सुनकर महात्मा संत चले उसे खोजने ,
सोचा -
पूरे महीने मैंने व्रत,उपवास किया
गंगा स्नान किया -
जो मिला ,खाया और
कुम्भ का फल लेगया एक चमार !
और पहुँचे रत्तू चमार के पास -
पूछा -"तुमने कुम्भ -स्नान किया ?"
नहीं ,महाराज !
एक साल जूते गाँठे,
पैसा इकट्ठा किया -जाही रहा था
कि पड़ोसी महिला की आवाज़ सुनीं
जो रो-रोकर चिल्ला रही थी
कह रही थी "उसके बच्चे चार दिनों से भूखे हैं,-
आज बाप भी मर गया -
अब कौंन है इनका ?"
सुनकर वापिस आगया ,
सालभर की जमा -पूँजी उठाई'और राशन लिया ,
और जाकर बोला-"लो बहिन अभी इन बच्चों को
कुछ खिला-पिलादो"
महाराज -यही मेरा गंगा -स्नान है -
संत के नेत्र आंसुओंसे भरगए
सोचा -सच ,यही है "कुम्भ का सुफल । "
(पढ़ी हुई कहानी का काव्य रूप )
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