Visitors

Wednesday, 30 July 2025

माता कैकेयी और राम का अद्भुत प्रेम

 माता कैकेयी और राम का अद्भुत प्रेम 

माता कैकेयी और राम के विषय में अधिकतर हमने जो जाना और सुना है पूरा सत्य नहीं है।राम का माता कैकेयी और कैकेयी का पुत्र राम के प्रति प्रेम अद्भुत था।कैकेयी का जो रूप हमने देखा और सुना है वो बाह्य है।

उन्होंने राम को वनवास दिया उसका पूरा सच ये है कि राजा बनने से एक दिन पहले राम घूमते हुए माता कैकेयी के पास पहुँचे और बोले-माँ कल मुझे पिता जी राजा बनाएँगे।माता कैकेयी बोली-हाँ मुझे मालूम है और मैं भी चाहती हूँ कि तुम राजा बनो पर मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे नाम के साथ राज्य शब्द जुड़ जाए।तुम्हारा राज्य ' रामराज्य ' कहलाये सर्वोत्तम राज्य "रामराज्य" कहा जाए।

राम ने कहा-माता इसके लिए मुझे क्या करना होगा।कैकेयी ने कहा-बेटा,इसके लिए तुम नंगे पाँव भारत में घूमो,प्रजाके दुःख को जानो,उसके दुःख और पीड़ा दूर करने के उपाय जानो।अगर सीधे राजा बनोगे तो असहाय का दर्द,दीनों का दुःख नहीं जान पाओगे,उनकी पीड़ा को नहीं समझ पाओगे।प्राथमिकता प्रजा के दुःख दूर करने की होनी चाहिए।इसलिए तुम पहले"वन जाओ"और फिर राजा "बन जाओ"। 

राम ने पूछा-कि इसके लिए मैं क्या कर्रूँ, माँ ने कहा बेटा,तुम्हें चौदह वर्ष वन में बिताने होंगे,वहाँ रहकर तुम्हें प्रजा के दुःख  को समझना होगा।राम ने कहा-माँ पिताजी नहीं मानेंगे।कैकेयी ने कहा-ये काम तुम मुझ पर छोड़ो।इसके लिए मैं सबकी गाली खाऊँगी,सबकी बुरी बनूँगी,मैं अपमान का विष पीऊँगी,बस तुम अपने मन में मेरे लिए कोई दुर्भाव मत लाना।राम ने कहा-माँ ये तो बहुत छोटी से चीज़ है।आप जानती हैं कि आपके कहने पर तो मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।अब मैं आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए शीघ्र ही वन जाने तैयारी करता हूँ।

इस प्रकार कैकेयी और मंथरा के षड्यंत्र ने दशरथजी को राम को वन जाने के लिए बाध्य किया।यानि कैकेयी और राम की मिली भगत से राम का वन-वास हुआ।तभी तो राम ने माता कैकेयी से कहा था,माँ अगर आप मुझे चौदह वर्ष का वनवास न देतीं तो मैं  दुनिया के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं जान पाता।और पूर्ण रामराज्य की स्थापना भी नहीं हो पाती।  

                                                 **




                                              *****

   






   


 

Sunday, 27 July 2025

राम के द्वारा माता सीता का त्याग

                                                                    

                     राम के द्वारा सीता का त्याग 

 एक धोबी के कहने से भगवान् राम ने सीता माँ का त्याग किया। ये कथन भ्रामक है। तथ्य ये है कि जब माता सीता गर्भवती थीं तब उन्होंने भगवान् से कहा-प्रभु,अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं कुछ दिन साधू संतों के मध्य रह कर उनके संत वचन सुनने का लाभ प्राप्त करूँ।भगवान् बोले-अति सुन्दर !होजायेगी इसकी व्यवस्था।  

 इस विषय में विचार कर ही रहे थे कि तभी धोबी का प्रसंग सुनाई दिया। धोबी के इस वृतांत ने भगवान् का काम आसान कर दिया।और तब भगवान् ने लक्ष्मण जी को आदेश दिया,कहा-लक्ष्मण,सीता को वन में जहां वाल्मीकि जी का आश्रम है वहाँ आदरपूर्वक छोड़ कर आओ ये वहां रह कर कुछ दिन संतों के साधु वचन सुनना चाहती हैं।

इस सन्दर्भ में ये प्रसंग भी जानना ज़रूरी है जो प्रायः सुनने में नहीं आता - कि राजा दशरथ की मृत्यु अकाल मृत्यु थी।उनकी शेष आयु राम को पूरी करनी थी।यही उपयुक्त समय था,जब राम अपने पिता की आयु जीते,ऐसे समय जब राम राजा दशरथ की आयु जीते तो माता सीता का राम के साथ रहना असंगत,अमर्यादित होता क्योंकि राम सीता माँ के ससुर की आयु जी रहे थे।

इस प्रकार सीता के मन की इच्छा पूरी करना,धोबी की शिकायत को लेकर समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करना,और पिता की आयु पूरी करना, इन तीन उद्देश्यों पूर्ति हेतु राम ने उपयुक्त समय सोच कर माता सीता का वन में प्रस्थान कराया।

इसीलिए राम ने लक्ष्मण से कहा था कि सीता को विश्वामित्र के आश्रम में छोड़ कर आओ जिससे वो संतों के साथ रहकर गर्भावस्था में उनके साधू वचन सुन कर आदर्शमय जीवन व्यतीत कर समय का सही प्रयोग करें।    


                                                ****




  




एक         

Wednesday, 23 July 2025

नारद मोह भंग

 नारद मोह भंग 

एक बार नारद मुनि को हिमालय पर घूँमते हुए एक गुफा दिखाई दी,उसे देख वो वहीं तपस्या करने बैठ गए,अखण्ड समाधि लगाली।उनकी तपस्या देख इंद्र डर गए उन्हें लगा कि नारदजी मेरे पद को लेने के लिए ही तपस्या कर रहे होंगे। इसलिए उन्होंने नारद जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा। कामदेव अपने पूरे परिकर के साथ पहुँच गए नारद जी की तपस्या भंग करने।अनेक प्रकार के प्रयत्न किये,पूरा ताण्डव किया लेकिन नारद जी की तपस्या पर कोई असर नहीं हुआ तो कामदेव घबरा कर बोले-ऋषिवर,मुझे माँफ करें मुझसे गलती होगयी,मैं हार गया ये कहकर नारद जी के चरणों में समर्पण कर दिया।नारद जी हँसे, बोले-जाओ कामदेव,मैंने तुम्हें माँफ किया। 

पर नारद जी के मन में  घमंड आगया,सोचा कि मुझ पर काम का भी प्रभाव नहीं पड़ा और उस पर क्रोध भी नहीं आया और पहुंचे शिव जी के पास सोचा उन्हें बताएँगे कि आप ने काम को जीत लिया आप कामारि हैं लेकिन मैने तो काम और क्रोध दोनों को जीत लिया।राम भक्त शिव जी ने नारद जी को आते हुए देखा तो सोचा कि नारद जी आगये हैं,वो राम कथा कहेंगे,राम चरित्र सुनाएंगे तो समय सानंद व्यतीत होगा।लेकिन हुआ सब उल्टा,उन्होंने तो राम चरित्र नहीं काम-चरित्र सुनाया दिया।शिव जी समझ गए,बोले-मुनिदेव यहॉं तो आपने ये चर्चा कहदी पर और कहीं मत सुनाना,कोई पूछे तो भी नहीं कहना।भगवान् हरि के सामने तो बिलकुल नहीं।

पर नारद जी कहाँ रुकने वाले थे सीधे पहुँचे भगवान् के पास भगवान तो लीला कर रहे थे।जान गए कि नारद को अभिमान होगया है  इसे ठीक करना पड़ेगा क्योंकि  भगवान् अपने भक्त में घमण्ड नहीं देख सकते जैसे ही नारद जी भगवान् के पास पहुँचे उन्होंने अपनी माया का जाल फैला दिया और वे तुरंत उनके स्वागत में खड़े होकर बोले-आइये मुनिवर; आइये और अपने पास ही सिंहासन पर बिठाया,बोले आपने बड़ी कृपा की जो दर्शन दिए।इतना सुनते ही नारद जी तो फूल गए। सोचने लगे,अब तो मेरी भी कृपा का महत्व होगया। भगवान् भी मेरी कृपा के इच्छुक होगये।भगवान् ने पूछा, कहो मुनिवर कैसे आना हुआ।

 नारद जी समझ गए कि अब तो मेरा भी स्थान बड़ा होगया और सारा काम-चरित्र सुना दिया। यद्यपि शिवजी ने मना किया था तथापि नारद जी तो अभिमान में चूर थे।भगवान् मुस्कराये यही भगवान् की माया है।बोले-ऋषिवर काम आपका क्या बिगाड़ सकता है। आपके तो स्मरण मात्र से सब का काम-क्रोध मिट जायेगा।  नारद जी ने सोचा-वाह !अब तो मैं भगवान् के बराबर हो गया। पहले भगवान् का नाम लेने से काम-क्रोध मिटता था,अब मेरा भी नाम लेने से काम क्रोध मिट जायेगा।  ये सोचते हुए अभिमान में चूर नारद जी चले गए।रास्ते में भगवान् ने माया नगर प्रकट कर दिया।उस नगर के राजा थे,शीलनिधि। उन्हें अपनी पुत्री विश्वमोहिनी का विवाह करना था।नारदजी से मिले तो अपनी पुत्री का हाथ दिखाया।हाथ देख कर नारद जी ने कहा इसका पति विश्व विजयी होगा,समादरणीय सारे ब्रह्माण्ड का स्वामी होगा और ये कहते-कहते नारदजी के हृदय में काम का प्रवेश होगया।सोचने लगे इस कन्या से तो मेरा ही विवाह होजाय तो अच्छा लेकिन मेरे इस रूप को देख तो कन्या मुझे अपना पति नहीं चुनेगी।और उन्होंने भगवान् का स्मरण किया और  भगवान् प्रकट होगये,नारदजी  बोले-प्रभु आप अपना रूप मुझे दे दो जिससे वो कन्या मेरा वरण करले,इस के लिए जिसमें मेरा हित हो वही करना।भगवान् ने कहा-बिल्कुल वही करूँगा, जिस में आपका हित होगा।  

और भगवान ने सुन्दर बनाने के बजाय उनका चेहरा बन्दर जैसा बना दिया।नारद जी चले गए स्वयंवर में।स्वयंवर शुरू हुआ तो नारद जी बार-बार उचक-उचक कर देख रहे थे उन्हें तो विश्वास था कि कन्या उनके ही गले में वरमाला डालेगी। उन्हें तो लग रहा था कि उनसे अधिक खूबसूरत और कौन होगा। लेकिन इसी बीच ऐसा हुआ कि उनकी आशा के विपरीत भगवान् राजकुमार के वेश में आये और विश्वमोहिनी के गले में वरमाला डाल कर लेगये। उधर शंकर जी के गण घूंम रहे थे,वो नारद जी की हालत देख रहे थे।जाकर हँसते हुए बोले-नारद जी,जाकर अपना चेहरा तो देखिये,आपका चेहरा देख कर कौन कन्या चुनेगी आपको अपना पति । नारद जी ने  जाकर पानी में अपना बन्दर का  चेहरा देखा तो आग बबूला होगये। 

तमतमाते हुए भगवान जी के पास जा रहे थे कि आज तो मैं भगवान् को श्राप दूँगा,कहूँगा कि मैने आपसे सुन्दर रूप माँगा और मुझे आपने बंदर बना दिया,मेरा इतना अपमान किया, मेरा उपहास कराया कि तभी रास्ते में उन्हें लक्ष्मी जी और राजकुमारी जी के साथ भगवान् मिल गये।देखते ही नारदजी तो बरस पड़े बोले-आप तो परम स्वतंत्र हैं।मैंने अपने एक विवाह के लिए आपसे सुन्दर रूप माँगा था और आपने मुझे बन्दर का चेहरा दे दिया।आप दो-दो के साथ घूँम रहे हैं।आज मैं आपको श्राप देता हूँ जाओ आपको भी नारी विरह सताएगा।भविष्य में बन्दर ही आपकी सहायता करेंगे।इतना कह कर जब नारदजी चुप होगये तो भगवान् ने अपनी माया हटा दी।

अब न वहाँ लक्ष्मीजी थीं न राजकुमारी।भगवान् ने उनका श्राप स्वीकार किया और मुस्करा कर बोले-नारद अब आप मुझे परम स्वतंत्र नहीं कह सकते।आपका श्राप मैंने शिरोधार्य किया।नारदजी समझ गए उनको लगा,ये तो बड़ा अपराध होगया और भगवान् के चरणों में गिर पड़े और बोले-भगवन-मुझे माँफ करें,मेरी वाणी झूठी हो जाय,मेरा श्राप झूठा हो जाय। भगवान् मुस्कराये और बोले-उठो नारद तुम्हारे अंदर काम-क्रोध देख कर ये सब मैंने ही किया।मैं अपने भक्त में कोई दोष नहीं देख सकता।नारद जी  बोले-पर मुझे शांति कैसे मिलेगी। भगवान् बोले जाओ,भगवान् शंकर के सतनाम का जप करो।  

और इस प्रकार नारद जी का मोह भंग हुआ और नारद जी पुनः तपस्या के लिए चले गए। 

                                           ***     






 







    







   






   

Friday, 18 July 2025

रामचरित मानस के रोचक प्रसंग

 राम चरित मानस के रोचक प्रसंग 

दक्ष प्रजापति का यज्ञ :शिव को श्राप 

एक बार ब्रह्मा के पुत्र दक्ष ने यज्ञ करवाया जिस में सभी ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया गया । सबके आने के बाद अध्यक्ष दक्ष प्रजा पति का आगमन हुआ,सभी रिषि मुनि उनके सम्मान में खड़े हुए किन्तु ब्रह्मा जी और शिवजी नहीं खड़े हुए। ब्रह्मा जी तो दक्ष के पिता थे और शिव जी अपने इष्ट के ध्यान में तल्लीन थे इसलिए उन्हें उनके आने का आभास ही नहीं हुआ। राजा दक्ष जो सभी प्रजा पतियों के अध्यक्ष थे उन्हें घमंड था इस बात का।

 इस पर उन्हें शिव जी पर इतना क्रोध आया कि शिवजी को उन्होंने धृष्ट कहा,नीच कहा और कहा कि इसे यज्ञ की आहुति का भाग नहीं मिलेगा। इसने मेरा अपमान किया है मेरा उपकार भी नहीं माना कि मैंने इस बन्दर जैसी आँखों वाले के साथ अपनी मृगाक्षी जैसी आँखों वाली बेटी का विवाह किया। जो हड्डियों की माला पहनता है,चिता की भस्म लगता है।कौन देता इसे अपनी कन्या !

 इतना सुनने पर भी शिवजी तो शांत रहे लेकिन शिव जी के गणों को बहुत गुस्सा आया उन्होंने दक्ष को कहा- नीच तुम्हारा तत्व ज्ञान नष्ट हो जाय, तुम मूढ़ होजाओ। इस पर दक्ष के सेवकों ने श्राप दिया कि तुम भक्षाभक्ष खाने वाले हो जाओ।तब के शिवजी गण बोले-तुम पतित होजाओ,मार्ग-भ्र्ष्ट हो जाओ। इस प्रकार दोनों तरफ से एक दूसरे पर श्राप के बाण  चलते रहे। तब शिवजी ने इस उत्पात को समाप्त करने लिए सोचा कि अब चलना चाहिए। और वे उसी समय गणों के साथ  यज्ञ शाला से चले गए।और यज्ञ का कार्य वहीँ समाप्त होगया।    

                                                 **



 



 

Tuesday, 15 July 2025

सटी का शरीर त्याग !शिव का क्रोध

 सती का शरीर त्याग :शिव का क्रोध 

शिव जी गणों के श्राप से आहत दक्ष ने बदला लेने के उद्देश्य से बाजपेयी यज्ञ का आयोजन किया जिसमें विष्णु,शिव और ब्रह्माजी को छोड़ कर सभी देवता,ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया। सभी अपने-अपने विमानों से कैलाश पर्वत के ऊपर से गाते-बजाते जारहे थे।

 उधर शिवजी सती जी को भगवान् की कथा सुना रहे थे। सती जी का ध्यान भंग हुआ तो शिवजी से पूछा - प्रभु ये विमान कहाँ जारहे हैं ? शिव जी ने कहा देवी कथा सुनो इधर उधर मत देखो। लेकिन सती बार बार हठ करने लगीं तब शिव जी ने कहा आपके पिता यज्ञ करा रहे हैं वे सब वहीं जारहे हैं। सती ने कहा कि तब तो हमें भी वहां जाना चाहिए। शिवजी ने कहा विना  निमंत्रण के हमें नहीं जाना चाहिये चाहे वो कोई अपना ही हो। सती बोली पिता के घर जाने में तो कोई बुराई नहीं। शिव जी ने कहा-पर अगर कोई विरोध मानता हो तो वहां नहीं जाना चाहिए,कल्याण नहीं होगा। इतना सुनने पर भी सती का मन नहीं मान रहा था और वो इधर-उधर घूमने लगीं।

 शिवजी जान गए कि इनका मन यहाँ नहीं है,बोले-अगर तुम्हारा  इतना ही मन है तो जाओ पर मेरी अवहेलना करके जाओगी तो अमंगल होगा,तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती है। ये कहकर सती को अपने गणों के साथ यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए भेज दिया।घर जाकर सती जी ने देखा कि किसी ने उनका सम्मान नहीं किया । केवल माता ही प्रेम से मिली।ये देख कर सती ने पिता से कहा, पिताजी आपने सबको निमंत्रण दिया मेरे स्वामी को भी बुलाते तो अच्छा होता। सती को देख प्रजापति दक्ष को क्रोध आया बोले-उस अघोरी पाखंडी को,जो चिता  की भस्म लगाता है। उसके आने से तो मेरा यज्ञ अपवित्र होजाता और तुम्हें किसने बुलाया।

 ये सुन सती का क्रोध फूटा-डाँटते हुए पति को याद करते हुए पिता को अपमानित करते हुए बोली - अरे मूढ़,मंदमति तू मेरे स्वामी की निंदा करता है।  ऐसे शिवद्रोही की तो मैं पुत्री नहीं कहलाना चाहती और उसी समय अपने योगबल से दिव्याग्नि प्रकट की और उसीमें अपना शरीर दग्ध दिया। मरते समय भगवान् को स्मरण किया और कहा कि जन्म-जन्म शिव के चरणों में मेरा अनुराग बना रहे।इसके बाद सती जी ने पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लिया और पार्वती कह लाईं।

ये सारा वृतांत नारद जी ने जाकर शिवजी को बताया। सुनकर उन्होंने वीरभद्र को आज्ञा दी की जाओ और जाकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करो। वीरभद्र ने अपने सभी सैनिकों साथ जाकर सभी देवताओं को मार पीट कर घायल कर दिया। दक्ष को पकड़ कर यज्ञाग्नि में डाल कर उनकी गर्दन को तोड़ दिया और उसके स्थान पर बलि के लिए लाये गए पशु का सर लगा दिया।  और यज्ञ मंडप में आग लगा कर वापस चले गए। 

                                             ****  







     






    

 

Tuesday, 29 April 2025

वो लाल बिंदिया

 वो लाल बिंदिया 


ज़रा देखो तो !
झुर्री पड़े माथे पर वो बड़ी लाल बिंदिया !
गड्ढे पड़े गालों पर आयी लालिमा !
चांदी से चमकते, झिलमिलाते बालों में लाल सिन्दूर !
सिकुड़े हुए ओठों पर लगी लाली,
!और लजीले ओठों पर लुभाती मंद-मंद मुस्कान !
कितनों का जी न चुरा लेती होगी!
चोरी-चोरी देखने को आतुर कितने जवान दिल !
और उस पर खूबी ये,
कि अपनी इस खूबी से ये मोहतरमा बेखबर नहीं हैं!
 (अज्ञात यौवना की तरह ) 
उन्हें सब पता है कि वो कहाँ-कहाँ,किस-किस पर बिजली गिरा रही हैं।
सारी धन-दौलत तो इस बिंदिया में ही बसी है !
हाय रे !
भारतीय संस्कारों का प्रदर्शन करती कितनों पर जुल्म ढाती बुढ़ापे की
 " ये लाल बिंदिया !"
अजर-अमर रहे ऐसी ये लाल बिंदिया।

                                     ***  

Wednesday, 9 April 2025

वो लाल बिंदिया

 वो लाल बिंदिया 

ज़रा देखो तो !

झुर्री पड़े माथे पर गजब ढाती वो लाल बिंदिया !

गड्ढे पड़े गालों पर छायी लालिमा !

चाँदी से चमकते बालों में लाल सिन्दूर 

सिकुड़े हुए ओठों पर लगी लाली और 

उस पर लुभाती मंद-मंद मुस्कान 

कितनों का जी न चुरा लेगी !

चोरी-चोरी देखने को आतुर हैं 

कितने जवां दिल !"

और और 

उस पर खूबी ये कि 

मोहतरमा अपनी इस खूबी से बेखबर नहीं। 

      (अज्ञात यौवना की तरह )

उसे सब ज्ञात है कि  

वे कहाँ-कहाँ किस-किस पर बिजली गिरा रहीं हैं। 

दुनिया का सारा खजाना तो इस बिंदिया में ही बसा है।

हाय रे !कितनों पर ज़ुल्म ढाती है 

भारतीय संस्कारों का प्रदर्शन करती ,

बुढ़ापे की ये "लाल बिंदिया !!"

"अजर-अमर रहे  ऐसी ये "लाल बिंदिया!" 

                      ******




  





 





Sunday, 16 February 2025

idpl से दिल्ली रावानगी

आई डीपी एल से (१९७७) में दिल्ली रवानगी 

१९७३ में विवाहोपरांत मैं वीरभद्र ही आयी थी, कम्पनी में उन दिनों लॉक आउट का खतरा बना रहता था तो कहीं और नौकरी की तलाश करते रहते थे।लगभग तीन वर्ष रहे हम। इस बीच हम एक बेटा और एक बेटी के माता-पिता बन चुके थे।  बेटा लगभग ३ वर्ष का और बेटी २महीने की थी।  तभी एच पी सी दिल्ली से इन्हें नियुक्ति पत्र मिला साक्षात्कार हो चुका था प्रतीक्षा थी कहीं से नियुक्ति पत्र की।वह भी आगया। 

चूँकि इनके माता-पिता दिल्ली में ही थे,इनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई थी इसलिए इनका मन भी दिल्ली में ही था। उस समय मैं सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी किन्तु बेटी को रखने की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। कोई क्रेच नहीं था इसलिए मेरी नौकरी भी नहीं संभव नहीं थी। बहुत सोच विचार के बाद वीरभद्र छोड़ने का निश्चय किया। इनका अपना घर शाहदरा दिल्ली में था। इनकी अपनी माँ पहले ही जब ये चार वर्ष के थे गुजर चुकी थीं। अब तक पिता भी नहीं रहे थे।अब सौतेली माँ के पास रहने के लिए पत्र लिख कर बताया अपने जॉब के बारे में और बताया कि हमें घर में रहना होगा, घर में एक कमरा है पीछे उसमें रह लेंगे पर शाहदरा घर से कोई जबाव नहीं आया इसलिए इन्होंने कम्पनी से त्यागपत्र दे दिया कम्पनी ने भी स्वीकार कर लिया। 

लेकिन जैसे ही स्तीफे की स्वीकृति मिली कि घर से पत्र मिला कि घर में जगह नहीं है कमरे में किरायेदार रहता है यानि अब अपना प्रबंध कहीं और करना है किन्तु कुछ समय तो घर में ही रहना होगा, कुछ सामान भी घर भेजा जा चुका था। वीरभद्र छोड़ कर हम घर पहुँच गए। सब कुछ माँ को बताया। इन्हें ऑफिस भी ज्वाइन करना था। 

इस तरह १८-१९ दिन हम रहे लेकिन माँ का हठ यही था कि अपना इंतजाम करो और एक दिन उन्होंने हमारा सामान भी आँगन में फेंक दिया, बेटे को भी हाथ पकड़ कर बाहर आँगन में बिठा  दिया कि "चल बेटा तू भी चल" अब रहना अधिक मुश्किल होगया। शाम को जब ये  घर आये तब इन्हें ज्ञात हुआ। पर अब क्या करते घर से तो हम चारों बाहर  आगये। यानि घर छोड़ दिया।  लेकिन चलते चलते सोच रहे थे कि जाएँ कहाँ, बोले कुछ दिन तुम माँ के पास चली जाओ लेकिन ये मेरे लिए और मुश्किल लगा। तो बोले अच्छा अभी वीरभद्र ही चलते हैं। क्वॉटर तो ३ महीने हमारे पास ही है चाभी भी हमारे पास है ये विचार कर हम वीरभद्र ही पहुँच गए। 

वहाँ रह कर अपने मित्रों बात चीत की थोड़ी हिम्मत आयी और घर शाहदरा आगये तब तक माँ ने विहार कॉलोनी में किसी के साथ जॉइंट रहने के लिए एक कमरा किराये पर देख रखा था। इसके बाद कुछ ज़रूरी सामान के साथ हम वहीं आगये। दो कमरे थे उसमें एक में मकान मालिक अपने दो बच्चों के साथ रह रहे थे। एक हमें दे दिया था। क्वाटर में एक बाथ रूम,एक टॉयलेट कम्बाइंड था। किचिन उन्हीं के पास थी। 

हमारे कमरे में एक बड़ी अलवारी थी उसमें हमने अपने भगवान् जी को स्थापित किया। बाकी में अपना सामान रखा। पर अभी हमारा सामान जैसे एक बड़ा बॉक्स, एक स्टील एलमिरा, बैड और ड्रेसिंग वॉल मिरर वहीं थे। एक कमरे में लाना मुश्किल लग रहा था, पर माँ ने कहा- अपना सामान यहाँ से ले जाओ नहीं तो किसी को बेच देंगी। सामान की ज़रुरत भी थी इसलिए बहुत कहने पर ये वहाँ से बॉक्स और अलवारी ले आये बाकी वहीं छोड़ दिया। 

इस बॉक्स और अलवारी के आने से बहुत सुविधा होगयी। एक टेबल एच पी सी के ऑक्शन से खरीद कर लाये तो गैस बर्नर रखने का आराम होगया। एक लकड़ी का तख़त था और एक फोल्डिंग बैड खरीद लिया तो फेमिली का काम नियमित रूप से चलने लगा।  इस तरह तरह २ वर्ष हम उसी क्वाटर के एक रूम में रहे। वहीँ बेटे का सरस्वती शिशु मंदिर में एडमीशन के जी में करा दिया। 

दोवर्ष के बाद इनके ऑफिस के एक वर्कर ने कहा कि उसका एक वन रूम सेट साकेत में रेंट के लिए खाली है आप चाहें तो ले सकते हैं। इस तरह हमने वहां शिफ्ट कर लिया था।  4-c साकेत तीन वर्ष हम उसमें रहे वहाँ अच्छा लगा। ३वर्ष वहाँ रहे किन्तु अब उसे भी खाली करना था क्योंकि जिसका मकान था सेवा राम, उसको खुद ही वहाँ  रहना था तो फिर दौड़-भाग हुई और भगवान की असीम कृपा से उसी घर के ठीक सामने वाला क्वाटर ४डी मिल गया यानि कि सामान भी उस घर से केवल खिसका के  ही ले गए कोई परेशानी नहीं हुई किन्तु उसे भी २ वर्ष बाद खाली करना पड़ा क्योंकि उसमें भी मकान मालिक को आना था। 

पर यहाँ एक और भी बड़ा चमत्कार हुआ हम मकान तो देख ही रहे थे,२ मकान हमारी पसंद में थे उनमें से एक मकान का मालिक हमसे एडवांस भी ले गया था। २-१ दिन में शिफ्ट करना था क़ि शाम को वो एडवांस का चैक वापस करने आया और बोला सॉरी मुझे खुद ही अपने किसी अर्जेन्ट काम के लिये घर चाहिए, ये तो ऑफिस में थे मुझे ही बात करनी पड़ी बहस की मैंने लेकिन दिमाग में दूसरा मकान भी था तो बहस छोड़ उसका चैक लिया और उसे विदा कर शीघ्र ही मालवीय नगर वाले मकान पर दोनों बच्चों को  लेकर पहुंची।

 अँधेरा होरहा था, जाकर मकान मालिक से चाभी मांगी वे बोले आपसे कहा था न कि चाभी ये लटक रही है आप जब चाहे ले जाना और मैं चाभी लेकर भगवान् को धन्यवाद देती हुयी बस पकड़ कर घर आगयी। शाम को ऑफिस से जब ये घर आये तो बोले कल सन्डे है शिफ्ट कर लेते हैं मैंने कहा वो तो चैक वापस देगया कह रहा था उसे खुद ही रहना है वो भी हैरान होगये कि अब - -----थोड़ी देर परेशान कर मैं हँसी और सारा मामला बताकर चाभी उन्हें पकडा दी तब चेंज कर चाय-वाय पीकर फ्रेश हुए। इस तरह वहीं साकेत में ८-बी क्वाटर मिला और हम वहाँ शिफ़्ट होगये। ३-४ साल यहाँ भी रहे,तब  बेटा सात वीं में और बेटी उस समय चौथी कक्षा में थी।

  पति हमेशा अपना मकान चाहते थे कोशिश करते रहते थे अपनी सामर्थ्य के अनुकूल मकान मिल जाय। कोशिश ये भी रहती थी कि मुझे भी कहीं जॉब मिलजाय इसलिए अक्सर जहाँ भी वेकेंसी देखते तो मुझसे ऐप्लीकेशन लिखवा कर एप्लाय करवाते रहते थे। तभी एक स्कूल की वेकेंसी जो पोस्ट बॉक्स के नम्बर से निकली थी मैंने एप्लाय किया और कुछ ही दिन में साक्षात्कार के लिए कॉल आगया तब तक मुझे ये नहीं मालूम था कि ये स्कूल इंग्लिश मीडियम है पता लगने पर मैं घबरा गयी, मैंने हिंदी मीडियम से ही पढ़ाई की थी पर कॉल आया था इन्होंने  हिम्मत दी तो चली गयी। 

इंटरव्यू दिया काफी टफ था। बोर्ड में भी काफी लोग थे पर होगया और घर आगये कुछ दिन बाद सैलरी डिस्कस करने के लिए फिर कॉल आया और फिर जाना हुआ।  मेरा नंबर आने पर जब मैं गयी तो मुझसे कहा अभी हम आपको  बारह सौ ही दे पाएँगे। स्कूल नया है सारी  फॉर्मेलिटी पूरी होने पर पूरा स्केल देंगे अगर आप एग्री हों तो ये अपॉइटमेंट लेटर है इस पर सिग्नेचर कीजिये और अमुक तारीख पर नॉएडा स्कूल ब्रांच पर आइये। मैंने कुछ सोचा मेरी पोस्ट हिंदी के लिए थी इंटरव्यू हिंदी इंग्लिश दोनों में ही हुआ था स्पीकिंग इंग्लिश नहीं थी पर थोड़ी बहुत बोलती थी इसलिए मैंने इंग्लिश में ही पूछा "शैल आइ कॉल माय हस्बैंड,ही इज़ वेटिंग आउट साइड " उन्होंने कहा श्योर प्लीज़ कॉल और तब मैने इन्हें बुलाया इनके आने पर सैलरी डिस्कस की बात इन्हें बतायी और इनके एग्री होने के बाद वहीँ सिग्नेचर कर नियुक्ति पत्र लेकर बहुत खुश होकर घर आये। 

और तब आगे का प्लान किया नॉएडा जाना था, बच्चों का स्कूल चैंज करना होगा पर पहले अमुक डेट पर नॉएडा जाना था स्कूल की नयी बिल्डिंग देखनी थी अभी केवल १२ रूम ही थे बच्चों के एडमीशन टैस्ट होने थे इसके लिए २-३ दिन हमें (कुल ९ टीचर्स)को स्कूल आना था, पेपर बनाने थे। इसके बाद बच्चों को बुलाया गया उन्हीं में से एक दिन मैंने अपने बच्चों को भी टेस्ट दिलवाया रिज़ल्ट में पास होने पर बेटे का आठ वीं में और बेटी का पांचवीं में एडमीशन होगया। मई और जून में नेहरू प्लेस से बस से आती रही और नॉएडा में मकान भी देखते रहे और तब पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी पर २रूम सेट का एक मकान १९ सेक्टर में हमने खरीद लिया और अब जुलाई से पहले शिफ्टिंग करनी थी। 

उससे पहले एक किराये का मकान भी लिया क्योंकि अपने मकान में कुछ काम कराना था, अब बच्चों को स्कूल जाना था। तब तक हम उस मकान में रहे। दो महीने में हमारा मकान रहने लायक हो गया था। एक दिन उसका शुभारम्भ कराया। पंडित जी आये छोटा सा हवन  पूजा कराई अधिक कुछ नहीं किसी को बुलाया भी नहीं। न तो स्कूल से छुट्टी मिलनी थी और न हमारी इतनी सामर्थ्य थी, लेकिन मुझे याद है अपनी दोनों छोटी बहिनों को शायद रु १५१ /-के मनिआर्डर से भेजे थे और तब हम भगवान् की दया से अपने घर में शिफ्ट होगये। ३० अगस्त को शिफ्ट हुए। बेटे का जन्म दिन था उस दिन।  स्कूल से  टी जी टी ग्रेड का पहला  चेक मिला था बहुत अच्छा लगा था उस दिन।

 लाइफ में कुछ स्थिरता आरही थी कि तभी नॉएडा ऑथर्टी से एक मकान की एक स्कीम निकली जिसमें नॉएडा में ही काम करने वाले ही अप्लाई कर सकते थे। इनका जॉब दिल्ली में था इसलिए मेरे नाम से इन्होंने अप्लाई किया और दो साल में हमें लॉटरी से मकान भी मिल गया जो हमारे इस मकान से बड़ा था। हमारी छोटी सी फैमिली के लिए पर्याप्त था। हम सब बहुत खुश थे बच्चे बहुत खुश थे फिर इसका भी उद्घाटन कराया और सेशन ख़त्म होने पर उस घर से यहाँ शिफ्ट हुए। ये शिफ्टिंग आखिरी और संतोषमय रही। आज हम इसी घर में हैं। दोनोंबच्चों के विवाह होगये, बेटा आर्मी ऑफिसर है उसकी पोस्टिंग होती रहती है बेटी कोलकाता में है दोनों के एक- एक बच्चा है।  वे पढ़ रहे हैं  बेटी ऑन लाइन जॉब कर रही है। 

२०१३ में मेरे पति भगवान् के पास चले गए। तब से  मैं उनके अभाव के साथ कभी यहाँ कभी बच्चों के साथ समय व्यतीत कर रही हूँ। लिखने की मेरी आदत है। सामान्य से टॉपिक पर यदा-कदा कुछ लिखती रहती हूँ इसमें मेरे बेटे ने हैल्प की। मुझे कंप्यूटर पर लिखना सिखाया। मेरे लेखों की पुस्तक भी उसने  पब्लिस करवा दी है। इस तरह लिख कर और बहू बेटे के साथ जीवन यापन कर बहुत आराम से रह रही हूँ। भगवन का आशीर्वाद साथ है बस यही सहारा है। कोशिश करती हूँ, खुद भी खुश रहूँ, बच्चों को भी खुश रखूँ। घुटने की प्रॉब्लम के कारण थोड़ी असहाय सा अनुभव करती हूँ पर ये छोटे से कर्म हैं भगवान के आशीर्वाद से पूरे हो लेंगे। इसी तरह समय पर जीवन की एक दिन इतिश्री भी हो ही लेगी।  

जय श्री राम 

                                     *****