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Sunday, 16 February 2025

idpl से दिल्ली रावानगी

आई डीपी एल से (१९७७) में दिल्ली रवानगी 

१९७३ में विवाहोपरांत मैं वीरभद्र ही आयी थी, कम्पनी में उन दिनों लॉक आउट का खतरा बना रहता था तो कहीं और नौकरी की तलाश करते रहते थे।लगभग तीन वर्ष रहे हम। इस बीच हम एक बेटा और एक बेटी के माता-पिता बन चुके थे।  बेटा लगभग ३ वर्ष का और बेटी २महीने की थी।  तभी एच पी सी दिल्ली से इन्हें नियुक्ति पत्र मिला साक्षात्कार हो चुका था प्रतीक्षा थी कहीं से नियुक्ति पत्र की।वह भी आगया। 

चूँकि इनके माता-पिता दिल्ली में ही थे,इनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई थी इसलिए इनका मन भी दिल्ली में ही था। उस समय मैं सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी किन्तु बेटी को रखने की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। कोई क्रेच नहीं था इसलिए मेरी नौकरी भी नहीं संभव नहीं थी। बहुत सोच विचार के बाद वीरभद्र छोड़ने का निश्चय किया। इनका अपना घर शाहदरा दिल्ली में था। इनकी अपनी माँ पहले ही जब ये चार वर्ष के थे गुजर चुकी थीं। अब तक पिता भी नहीं रहे थे।अब सौतेली माँ के पास रहने के लिए पत्र लिख कर बताया अपने जॉब के बारे में और बताया कि हमें घर में रहना होगा, घर में एक कमरा है पीछे उसमें रह लेंगे पर शाहदरा घर से कोई जबाव नहीं आया इसलिए इन्होंने कम्पनी से त्यागपत्र दे दिया कम्पनी ने भी स्वीकार कर लिया। 

लेकिन जैसे ही स्तीफे की स्वीकृति मिली कि घर से पत्र मिला कि घर में जगह नहीं है कमरे में किरायेदार रहता है यानि अब अपना प्रबंध कहीं और करना है किन्तु कुछ समय तो घर में ही रहना होगा, कुछ सामान भी घर भेजा जा चुका था। वीरभद्र छोड़ कर हम घर पहुँच गए। सब कुछ माँ को बताया। इन्हें ऑफिस भी ज्वाइन करना था। 

इस तरह १८-१९ दिन हम रहे लेकिन माँ का हठ यही था कि अपना इंतजाम करो और एक दिन उन्होंने हमारा सामान भी आँगन में फेंक दिया, बेटे को भी हाथ पकड़ कर बाहर आँगन में बिठा  दिया कि "चल बेटा तू भी चल" अब रहना अधिक मुश्किल होगया। शाम को जब ये  घर आये तब इन्हें ज्ञात हुआ। पर अब क्या करते घर से तो हम चारों बाहर  आगये। यानि घर छोड़ दिया।  लेकिन चलते चलते सोच रहे थे कि जाएँ कहाँ, बोले कुछ दिन तुम माँ के पास चली जाओ लेकिन ये मेरे लिए और मुश्किल लगा। तो बोले अच्छा अभी वीरभद्र ही चलते हैं। क्वॉटर तो ३ महीने हमारे पास ही है चाभी भी हमारे पास है ये विचार कर हम वीरभद्र ही पहुँच गए। 

वहाँ रह कर अपने मित्रों बात चीत की थोड़ी हिम्मत आयी और घर शाहदरा आगये तब तक माँ ने विहार कॉलोनी में किसी के साथ जॉइंट रहने के लिए एक कमरा किराये पर देख रखा था। इसके बाद कुछ ज़रूरी सामान के साथ हम वहीं आगये। दो कमरे थे उसमें एक में मकान मालिक अपने दो बच्चों के साथ रह रहे थे। एक हमें दे दिया था। क्वाटर में एक बाथ रूम,एक टॉयलेट कम्बाइंड था। किचिन उन्हीं के पास थी। 

हमारे कमरे में एक बड़ी अलवारी थी उसमें हमने अपने भगवान् जी को स्थापित किया। बाकी में अपना सामान रखा। पर अभी हमारा सामान जैसे एक बड़ा बॉक्स, एक स्टील एलमिरा, बैड और ड्रेसिंग वॉल मिरर वहीं थे। एक कमरे में लाना मुश्किल लग रहा था, पर माँ ने कहा- अपना सामान यहाँ से ले जाओ नहीं तो किसी को बेच देंगी। सामान की ज़रुरत भी थी इसलिए बहुत कहने पर ये वहाँ से बॉक्स और अलवारी ले आये बाकी वहीं छोड़ दिया। 

इस बॉक्स और अलवारी के आने से बहुत सुविधा होगयी। एक टेबल एच पी सी के ऑक्शन से खरीद कर लाये तो गैस बर्नर रखने का आराम होगया। एक लकड़ी का तख़त था और एक फोल्डिंग बैड खरीद लिया तो फेमिली का काम नियमित रूप से चलने लगा।  इस तरह तरह २ वर्ष हम उसी क्वाटर के एक रूम में रहे। वहीँ बेटे का सरस्वती शिशु मंदिर में एडमीशन के जी में करा दिया। 

दोवर्ष के बाद इनके ऑफिस के एक वर्कर ने कहा कि उसका एक वन रूम सेट साकेत में रेंट के लिए खाली है आप चाहें तो ले सकते हैं। इस तरह हमने वहां शिफ्ट कर लिया था।  4-c साकेत तीन वर्ष हम उसमें रहे वहाँ अच्छा लगा। ३वर्ष वहाँ रहे किन्तु अब उसे भी खाली करना था क्योंकि जिसका मकान था सेवा राम, उसको खुद ही वहाँ  रहना था तो फिर दौड़-भाग हुई और भगवान की असीम कृपा से उसी घर के ठीक सामने वाला क्वाटर ४डी मिल गया यानि कि सामान भी उस घर से केवल खिसका के  ही ले गए कोई परेशानी नहीं हुई किन्तु उसे भी २ वर्ष बाद खाली करना पड़ा क्योंकि उसमें भी मकान मालिक को आना था। 

पर यहाँ एक और भी बड़ा चमत्कार हुआ हम मकान तो देख ही रहे थे,२ मकान हमारी पसंद में थे उनमें से एक मकान का मालिक हमसे एडवांस भी ले गया था। २-१ दिन में शिफ्ट करना था क़ि शाम को वो एडवांस का चैक वापस करने आया और बोला सॉरी मुझे खुद ही अपने किसी अर्जेन्ट काम के लिये घर चाहिए, ये तो ऑफिस में थे मुझे ही बात करनी पड़ी बहस की मैंने लेकिन दिमाग में दूसरा मकान भी था तो बहस छोड़ उसका चैक लिया और उसे विदा कर शीघ्र ही मालवीय नगर वाले मकान पर दोनों बच्चों को  लेकर पहुंची।

 अँधेरा होरहा था, जाकर मकान मालिक से चाभी मांगी वे बोले आपसे कहा था न कि चाभी ये लटक रही है आप जब चाहे ले जाना और मैं चाभी लेकर भगवान् को धन्यवाद देती हुयी बस पकड़ कर घर आगयी। शाम को ऑफिस से जब ये घर आये तो बोले कल सन्डे है शिफ्ट कर लेते हैं मैंने कहा वो तो चैक वापस देगया कह रहा था उसे खुद ही रहना है वो भी हैरान होगये कि अब - -----थोड़ी देर परेशान कर मैं हँसी और सारा मामला बताकर चाभी उन्हें पकडा दी तब चेंज कर चाय-वाय पीकर फ्रेश हुए। इस तरह वहीं साकेत में ८-बी क्वाटर मिला और हम वहाँ शिफ़्ट होगये। ३-४ साल यहाँ भी रहे,तब  बेटा सात वीं में और बेटी उस समय चौथी कक्षा में थी।

  पति हमेशा अपना मकान चाहते थे कोशिश करते रहते थे अपनी सामर्थ्य के अनुकूल मकान मिल जाय। कोशिश ये भी रहती थी कि मुझे भी कहीं जॉब मिलजाय इसलिए अक्सर जहाँ भी वेकेंसी देखते तो मुझसे ऐप्लीकेशन लिखवा कर एप्लाय करवाते रहते थे। तभी एक स्कूल की वेकेंसी जो पोस्ट बॉक्स के नम्बर से निकली थी मैंने एप्लाय किया और कुछ ही दिन में साक्षात्कार के लिए कॉल आगया तब तक मुझे ये नहीं मालूम था कि ये स्कूल इंग्लिश मीडियम है पता लगने पर मैं घबरा गयी, मैंने हिंदी मीडियम से ही पढ़ाई की थी पर कॉल आया था इन्होंने  हिम्मत दी तो चली गयी। 

इंटरव्यू दिया काफी टफ था। बोर्ड में भी काफी लोग थे पर होगया और घर आगये कुछ दिन बाद सैलरी डिस्कस करने के लिए फिर कॉल आया और फिर जाना हुआ।  मेरा नंबर आने पर जब मैं गयी तो मुझसे कहा अभी हम आपको  बारह सौ ही दे पाएँगे। स्कूल नया है सारी  फॉर्मेलिटी पूरी होने पर पूरा स्केल देंगे अगर आप एग्री हों तो ये अपॉइटमेंट लेटर है इस पर सिग्नेचर कीजिये और अमुक तारीख पर नॉएडा स्कूल ब्रांच पर आइये। मैंने कुछ सोचा मेरी पोस्ट हिंदी के लिए थी इंटरव्यू हिंदी इंग्लिश दोनों में ही हुआ था स्पीकिंग इंग्लिश नहीं थी पर थोड़ी बहुत बोलती थी इसलिए मैंने इंग्लिश में ही पूछा "शैल आइ कॉल माय हस्बैंड,ही इज़ वेटिंग आउट साइड " उन्होंने कहा श्योर प्लीज़ कॉल और तब मैने इन्हें बुलाया इनके आने पर सैलरी डिस्कस की बात इन्हें बतायी और इनके एग्री होने के बाद वहीँ सिग्नेचर कर नियुक्ति पत्र लेकर बहुत खुश होकर घर आये। 

और तब आगे का प्लान किया नॉएडा जाना था, बच्चों का स्कूल चैंज करना होगा पर पहले अमुक डेट पर नॉएडा जाना था स्कूल की नयी बिल्डिंग देखनी थी अभी केवल १२ रूम ही थे बच्चों के एडमीशन टैस्ट होने थे इसके लिए २-३ दिन हमें (कुल ९ टीचर्स)को स्कूल आना था, पेपर बनाने थे। इसके बाद बच्चों को बुलाया गया उन्हीं में से एक दिन मैंने अपने बच्चों को भी टेस्ट दिलवाया रिज़ल्ट में पास होने पर बेटे का आठ वीं में और बेटी का पांचवीं में एडमीशन होगया। मई और जून में नेहरू प्लेस से बस से आती रही और नॉएडा में मकान भी देखते रहे और तब पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी पर २रूम सेट का एक मकान १९ सेक्टर में हमने खरीद लिया और अब जुलाई से पहले शिफ्टिंग करनी थी। 

उससे पहले एक किराये का मकान भी लिया क्योंकि अपने मकान में कुछ काम कराना था, अब बच्चों को स्कूल जाना था। तब तक हम उस मकान में रहे। दो महीने में हमारा मकान रहने लायक हो गया था। एक दिन उसका शुभारम्भ कराया। पंडित जी आये छोटा सा हवन  पूजा कराई अधिक कुछ नहीं किसी को बुलाया भी नहीं। न तो स्कूल से छुट्टी मिलनी थी और न हमारी इतनी सामर्थ्य थी, लेकिन मुझे याद है अपनी दोनों छोटी बहिनों को शायद रु १५१ /-के मनिआर्डर से भेजे थे और तब हम भगवान् की दया से अपने घर में शिफ्ट होगये। ३० अगस्त को शिफ्ट हुए। बेटे का जन्म दिन था उस दिन।  स्कूल से  टी जी टी ग्रेड का पहला  चेक मिला था बहुत अच्छा लगा था उस दिन।

 लाइफ में कुछ स्थिरता आरही थी कि तभी नॉएडा ऑथर्टी से एक मकान की एक स्कीम निकली जिसमें नॉएडा में ही काम करने वाले ही अप्लाई कर सकते थे। इनका जॉब दिल्ली में था इसलिए मेरे नाम से इन्होंने अप्लाई किया और दो साल में हमें लॉटरी से मकान भी मिल गया जो हमारे इस मकान से बड़ा था। हमारी छोटी सी फैमिली के लिए पर्याप्त था। हम सब बहुत खुश थे बच्चे बहुत खुश थे फिर इसका भी उद्घाटन कराया और सेशन ख़त्म होने पर उस घर से यहाँ शिफ्ट हुए। ये शिफ्टिंग आखिरी और संतोषमय रही। आज हम इसी घर में हैं। दोनोंबच्चों के विवाह होगये, बेटा आर्मी ऑफिसर है उसकी पोस्टिंग होती रहती है बेटी कोलकाता में है दोनों के एक- एक बच्चा है।  वे पढ़ रहे हैं  बेटी ऑन लाइन जॉब कर रही है। 

२०१३ में मेरे पति भगवान् के पास चले गए। तब से  मैं उनके अभाव के साथ कभी यहाँ कभी बच्चों के साथ समय व्यतीत कर रही हूँ। लिखने की मेरी आदत है। सामान्य से टॉपिक पर यदा-कदा कुछ लिखती रहती हूँ इसमें मेरे बेटे ने हैल्प की। मुझे कंप्यूटर पर लिखना सिखाया। मेरे लेखों की पुस्तक भी उसने  पब्लिस करवा दी है। इस तरह लिख कर और बहू बेटे के साथ जीवन यापन कर बहुत आराम से रह रही हूँ। भगवन का आशीर्वाद साथ है बस यही सहारा है। कोशिश करती हूँ, खुद भी खुश रहूँ, बच्चों को भी खुश रखूँ। घुटने की प्रॉब्लम के कारण थोड़ी असहाय सा अनुभव करती हूँ पर ये छोटे से कर्म हैं भगवान के आशीर्वाद से पूरे हो लेंगे। इसी तरह समय पर जीवन की एक दिन इतिश्री भी हो ही लेगी।  

जय श्री राम 

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