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Tuesday, 15 July 2025

सटी का शरीर त्याग !शिव का क्रोध

 सती का शरीर त्याग :शिव का क्रोध 

शिव जी गणों के श्राप से आहत दक्ष ने बदला लेने के उद्देश्य से बाजपेयी यज्ञ का आयोजन किया जिसमें विष्णु,शिव और ब्रह्माजी को छोड़ कर सभी देवता,ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया। सभी अपने-अपने विमानों से कैलाश पर्वत के ऊपर से गाते-बजाते जारहे थे।

 उधर शिवजी सती जी को भगवान् की कथा सुना रहे थे। सती जी का ध्यान भंग हुआ तो शिवजी से पूछा - प्रभु ये विमान कहाँ जारहे हैं ? शिव जी ने कहा देवी कथा सुनो इधर उधर मत देखो। लेकिन सती बार बार हठ करने लगीं तब शिव जी ने कहा आपके पिता यज्ञ करा रहे हैं वे सब वहीं जारहे हैं। सती ने कहा कि तब तो हमें भी वहां जाना चाहिए। शिवजी ने कहा विना  निमंत्रण के हमें नहीं जाना चाहिये चाहे वो कोई अपना ही हो। सती बोली पिता के घर जाने में तो कोई बुराई नहीं। शिव जी ने कहा-पर अगर कोई विरोध मानता हो तो वहां नहीं जाना चाहिए,कल्याण नहीं होगा। इतना सुनने पर भी सती का मन नहीं मान रहा था और वो इधर-उधर घूमने लगीं।

 शिवजी जान गए कि इनका मन यहाँ नहीं है,बोले-अगर तुम्हारा  इतना ही मन है तो जाओ पर मेरी अवहेलना करके जाओगी तो अमंगल होगा,तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती है। ये कहकर सती को अपने गणों के साथ यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए भेज दिया।घर जाकर सती जी ने देखा कि किसी ने उनका सम्मान नहीं किया । केवल माता ही प्रेम से मिली।ये देख कर सती ने पिता से कहा, पिताजी आपने सबको निमंत्रण दिया मेरे स्वामी को भी बुलाते तो अच्छा होता। सती को देख प्रजापति दक्ष को क्रोध आया बोले-उस अघोरी पाखंडी को,जो चिता  की भस्म लगाता है। उसके आने से तो मेरा यज्ञ अपवित्र होजाता और तुम्हें किसने बुलाया।

 ये सुन सती का क्रोध फूटा-डाँटते हुए पति को याद करते हुए पिता को अपमानित करते हुए बोली - अरे मूढ़,मंदमति तू मेरे स्वामी की निंदा करता है।  ऐसे शिवद्रोही की तो मैं पुत्री नहीं कहलाना चाहती और उसी समय अपने योगबल से दिव्याग्नि प्रकट की और उसीमें अपना शरीर दग्ध दिया। मरते समय भगवान् को स्मरण किया और कहा कि जन्म-जन्म शिव के चरणों में मेरा अनुराग बना रहे।इसके बाद सती जी ने पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लिया और पार्वती कह लाईं।

ये सारा वृतांत नारद जी ने जाकर शिवजी को बताया। सुनकर उन्होंने वीरभद्र को आज्ञा दी की जाओ और जाकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करो। वीरभद्र ने अपने सभी सैनिकों साथ जाकर सभी देवताओं को मार पीट कर घायल कर दिया। दक्ष को पकड़ कर यज्ञाग्नि में डाल कर उनकी गर्दन को तोड़ दिया और उसके स्थान पर बलि के लिए लाये गए पशु का सर लगा दिया।  और यज्ञ मंडप में आग लगा कर वापस चले गए। 

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