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Wednesday 22 November 2023

धन्यवाद प्रभु !!


प्रभु ; आपने तो सब कुछ दिया ,

जीने के समुचित साधन उपलब्ध कराये ,

शान्त्योचित उपकरण भी ! 

फिर भी अशांति !!

प्रभु हर समय यही उलझन ;

ये नहीं,

वो नहीं,

ऐसा क्यों ?

वैसा क्यों ?

उत्तर ----

अरे ! ये कारण तो मैंने नहीं दिए, 

ये तो मन के अंदर से भी नहीं, 

तो क्या बाहर से ?

शायद !

तो इन्हें बाहर करो 

घुसने ही नहीं दो तो 

क्या बचा ?

शांति !!

बस !यही कारण है अशांति का 

बाहर से आने वाली परेशानियों को छोड़ो

शांति का ही वास होने दो !

            ॐ शान्ति शान्ति शान्ति !! 

















 


 

Wednesday 11 October 2023

गाथा : एक कर्मठ योगी की

 

जन्म तो माता की गोद में ही हुआ ;

चार वर्ष के बाद वह छोड़ गयीं ;

पिता के संरक्षण ने पाला ;

बहुत ही प्यार भरा जीवन !

पिता की सरकारी नौकरी से प्राप्त,पर्याप्त था। 

कि एक अनपेक्षित मोड़ ने -

जीवन की दिशा-दशा ही बदल दी !

छूट गया सब !

पिता का दूसरा विवाह !!

सौतेली माँ का आगमन !

अनचाहे आगमन और उपेक्षित व्यवहार से 

उसका जीवन बिखर गया। 

घर पराया होगया। 

14 वर्ष की आयु में मानसिक आघात था ,

4-5 बार घर छोड़ा,

पहले एक माँ ने छोड़ा 

फिर घर छूटा ,

मिथ्या सम्बधों में भी 3-3 माँओं के आश्रय में 

हायर सेकंडरी तक शिक्षा प्राप्त की,

फिर वे भी छूट गयीं।  

पिता के सहयोग से सरकारी नौकरी भी मिली ,

और अब एक नयी ज़िम्मेदारी !

परिवार ! विवाह हुआ ,

परिवार की ज़िम्मेदारी,और फिर -

केवल ज़िम्मेदारी का अहसास 

मोह रहित जीवन !

कर्म-निर्वाह में रत ,

कहीं भी कोई उपेक्षा ,अवहेलना नहीं,

संतान के अनपेक्षित दुःख !

40 वर्ष का अनवरत कर्तव्य-निर्वाह

किन्तु- 

जब संतान के सुख देखने का समय आया; 

तो सब कुछ बिना देखे ही योगी ने 

इस दुनिया से विदा लेली  !

एक कर्तव्यपरायण कर्म-योगी !

निरंतर कर्तव्य-पथ पर सवार 

अंतहीन दिशा की ओर बढ़ चला ;

दुखों को भी छोड़ा ,

सुखों को भी छोड़ा 

कर्तव्य और अधिकार

सबसे मुँहु मोड़ कर विरक्त-भाव से। 

कोई ग़म नहीं;कोई सुख नहीं;कोई दुःख नहीं। 

और चला गया अपने  मुक्ति-पथ पर !!

      (अनु और श्वेता के पिता )

                             **** 



 




 



 






 













   





 









 



मेरी नायिका - मेरी पुत्र-वधु 

कर्तव्य और उत्तरदायित्व,दायित्व,ड्यूटी,मान-सम्मान,अधिकार और स्वाभिमान के बीच झूलती वो वृद्धा !!

आज बच्चे ही उसका जीवन हैं। यानि आज असहाय होने की स्थिति में वे उसकी देख-भाल करते हैं। तो लगता है वो स्वयं उनके लिए बोझ है। स्वाभिमान को चोट तो लगती है,लाचारगी,विवशता जैसी स्थिति होजाती है। जो स्वाभाविक भी है।

घुटने का ऑप्रेशन  

वो नायिका सुबह जल्दी उठती है,अलार्म लगाकर केवल अपने घर में रहने वाली उस वृद्धा को चाय बनाने के लिए। और तब वो वृद्धा महसूस करती है कि केवल उस के ही लिए तो उठी है। फिर ९-१० बजे नाश्ता सर्व करती,मध्याह्न दोपहर भोजन की व्यवस्था सिर्फ उसी के लिए करती,क्योंकि वो स्वयं दोपहर में नहीं खाती । और फिर रात्रि ---

इस सबके इतर वो वृद्धा अपने स्वाभिमान को भूल कर,शांत रहकर निश्चिन्त होकर समय व्यतीत करती। सब कुछ प्राप्य किन्तु उदास,असहाय,पराश्रित !!इस जीवन को कैसे पारिभाषित किया जाय। असहाय विवश होने की पीड़ा तो नहीं भूलती। मानसिक अंतर्द्वंद्व तो बहुत सालता। किंतु दूसरा कोई विकल्प भी  नहीं। उत्तरदायित्व पूरे करना दायित्व निभाना ही तो उस वृद्धा के लिए पर्याप्त नहीं होता। उसका मन भी बहुत कुछ अभाव महसूस करता है । 

 ज़िंदगी के सफर में व्यक्ति औफिस जाता है,ड्यूटी निभाता है,वेतन पाता है बस ! इस बीच और कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता। वही उस वृद्धा को महसूस होने लगा है। इस अपरिहार्य परिस्थिति से मुक्ति कैसे संभव है। प्यार,सम्मान,आदर व समर्पण को स्थान कहाँ है ! बहुत कुछ विचार करते हुए वो वृद्धा शांत और गम्भीर बने रहने का प्रयास करती है। 

पर कभी-कभी इस सबके बीच संतुलन डगमगाता सा प्रतीत होता है। हर पल, हर क्षण  दूभर -------!!


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अप्रेल 2024 

मेरे नी (आँतों)का ऑपरेशन 


पर अभी कुछ और भी बाकी था या अभी है नहीं पता। क्या-क्या इसे अभी और  झेलना बाकी है मेरे लिए,ये तो ईश्वर ही जाने। मेरी इस बीमारी में तो मेरी इस नायिका ने अपनी गहन परीक्षा दी और अविश्वसनीय त्याग तपस्या ने तो उसे बहुत बड़ा कद प्रदान कर दिया। मुझे नहीं पता इसने मेरे लिए क्या-क्या किया,प्रायः मैं  बेहोश ही रही,बाद में इसने और मेरी बेटी और बहिन ने बताया कि किस प्रकार दिन-रात दौड़-भाग कर  मुझे मौत के घर से खींच कर बाहर लेआई। क्या नहीं किया इसने यानि सब बेहोशी की अवस्था में जो करना था सब किया। भगवान की दया इस पर सदैव बनी रहे। 

                                              **

 



 

      





 




 



    

Saturday 23 September 2023

मुग्धा अहीरन 

उपाय सुनकर वह भोली-भाली,सरल चित्त महिला-
बड़ी प्रसन्न हुई अब वो समय पर दूध लाती,
ब्राह्मण की डाँट से भी बच गयी। 
ब्राह्मण भी प्रसन्न। 

एक दिन बोला - अम्मा,अब समय पर दूध कैसे लापाती हो ?
महिला बोली-
"आपने ही तो कहा था -
ईश्वर का नाम लेकर तो लोग समुद्र पार कर जाते हैं।"
तो बस,मैंने वही किया। 
अब मैं किसी यात्री,मल्लाह का इन्तज़ार नहीं करती -
ईश्वर का नाम लेती हूँ और नदी पार कर लेती हूँ।"
ब्राह्मण को आश्चर्य हुआ,
बोला - 
मुझे दिखाओ कैसे पार करती हो !

अहीरन ने उसे साथ लिया और उसके सामने 
भगवान का नाम लेकर नदी पर चलने लगी 
पीछे मुड़ कर देखा - 
बोली - महाराज, अब होगया विश्वास ?

उस मुग्धा अहीरन के आगे ब्राह्मण नतमस्तक-
हैरान-परेशान , चमत्कृत !! सोचा -
"मैं तो अपने कपड़े उठा कर भीगने के भय से दूर खड़ा था। 
और 
ये मेरी एक छोटी सी चेतावनी से नदी पार कर गयी। 
और कुछ नहीं बिगड़ा !!
 
ईश्वर के प्रति अटूट आस्था ने -
अहीरन के प्रति ब्राह्मण को अति श्रद्धानत कर दिया।

(संकलित कथानक का काव्य रूप )


                                     ***  



Monday 21 August 2023

स्वाभिमान

 स्वाभिमान 

   ये शब्द जो आज बात-बात में अंग्रेजी के ईगो शब्द से जाना जाता है,अपने सही अर्थ में स्वाभिमान तो कतई नहीं है। जिस रूप में ये शब्द आज जीया जा रहा है मेरे लिए एक भ्रामकता प्रस्तुत करने वाला है क्योंकि आज जो मैं  देख रही हूँ और समझ पा रही  हूँ वो स्वाभिमान का सकारात्मक अर्थ नहीं है बल्कि इसकी आड़ में एक विकृत रूप है।अब स्वाभिमान अपने छद्म रूप में घमंड और अहं का रूप ले चुका है। 

 मैं झुकने वाला/वाली नहीं हूँ 'क्या ये स्वाभिमान है ? क्या विनत होना,विनम्र होना स्वाभिमान में नहीं आता। घमंडी,अभिमानी, ईगोपरस्त व्यक्ति ही ऐसा समझता है। स्वाभिमानी व्यक्ति तो दूसरे व्यक्ति के स्वाभिमान का भी ध्यान रखता है। किसी को दुःख पहुँचाकर वह क्षमा माँगने की हिम्मत भी रखता है और सम्बन्धों को कभी ख़राब नहीं होने देता। लेकिन ईगो में तो टकराव  की स्थिति पैदा होती है। ज़रा-ज़रा  सी बात पर ईगो हर्ट होना स्वाभिमान को चोटिल समझना एकदम गलत है। 

स्वाभिमान आत्मविश्वास जगाता है ,सभ्य समाज में बैठने योग्य अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता है। चतुर्दिक वातावरण को ओजमय बनाता है वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। इसके विपरीत ईगोइष्ट तो नकारात्मकता का ही प्रसार करता है।व्यक्तित्व नकारात्मक ऊर्जा से पूरित होकर अति आत्मविश्वास में आकर निरर्थक चीखना चिल्लाना शुरू कर देता है। सामने वाला भी उसकी उपेक्षा करने लगता है। अहंकार के आते ही व्यक्ति का धन-सम्पत्ति सब कुछ भगवान् छीन लेते हैं । 

अहंकार में व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा,यश सब कुछ गँवा देता है। धन-रूप,पद,बुद्धि, विद्या, जप-तप दान त्याग लोकप्रियता प्रशंसा आदि अहंकार के माध्यम हैं। इनमें से कोई एक भी गुण अभिमानी के लिया घातक होता है और व्यक्ति का विनाश निश्चित है । अच्छे कार्य करने का भी यदि अभिमान है तो वह भी विनाशक है। इससे सतर्क  रहने की हरपल हरक्षण आवश्यकता है।  


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Monday 31 July 2023

: मेरी नायिका : मेरी पुत्री

मेरी नायिका ---मेरी पुत्री  (आज के परिप्रेक्ष्य में)

वह भूल चुकी थी सब कुछ। गत-विगत होचुका था।अच्छे पद पर काम कर रही थी जिसे छोड़ना पड़ा।अब एक नए काम की तलाश थी काम भी मिल गया एक अच्छी कंपनी में।अच्छा समय नहीं रहता तो बुरा भी नहीं रहेगा यही सोच कर जुट गयी अपने काम में।अपने माता-पिता के साथ रहकर संतोष था किन्तु भारतीय संस्कार कभी-कभी उसे बेचैन करते थे।प्रतीक्षा थी अच्छे समय की उसे पूर्ण विश्वास था कि वो अवश्य कभी लौट कर आयेगा उसकी जिंदगी में।

 किन्तु अचानक एक दिन मिले एक अदालती फरमान के लिफाफे ने उसे हिला दिया,टूट गयी,धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ी बेहोश होगयी।उठी तत्काल,सँभाला  अपने आपको,लिफाफा खोला,पढ़ा आश्चर्य ! बिना ही हस्ताक्षर के सम्बन्ध विच्छेद!अब निश्चित तारीख पर कोर्ट में उपस्थित  होना था।इस तरह कोर्ट कचहरी का सिलसिला शुरू।लम्बा समय निकल गया चक्कर लगाते-लगाते, हैरान-परेशां !! समझ नहीं आया क्या करे कब तक ।

 अगली तारीख आने से पहले उसने कोर्ट में एक याचिका डाली थी जिसमें विवाह में दिए हुए सामान की लिस्ट के साथ उचित धन राशि की मांग की गयी थी।जिसके जबाव में एक तारीख मिली,जिस पर जाना था उसे।जाने के लिए तैयार थी ऑटो भी आगया कि अचानक उसमें एक नयी ऊर्जा उत्पन्न हुई,सोचा क्यों उसी शृंखला  में बंध कर समय, पैसा, दिमाग की शांति बर्बाद करूँ और ऑटोवाले  को कुछ पैसे देकर वापस कर दिया।

बैठ कर शांति पूर्वक सोचा,तलाक के पेपर तो उसके हाथ में थे,खड़ी हुई कमरे में और ज़ोरज़ोर से चीखी।हॉल के खिड़की दरवाज़े बंद कर ज़ोर ज़ोर से चीखी,नहीं चाहिए मुझे ऐसा कायर,बुज़दिल मर्द, नहीं लगाने मुझे कोर्ट कचहरी के चक्कर,नहीं चाहिए कोई सामान, नहीं चाहिए कोई एल्युमिनी ! और इस तरह  कोर्ट जाने का इरादा सदा-सदा के लिए छोड़ दिया।सोचा अब मैं आज़ाद होगयी,सब बंधनों से मुक्त,एक नया चमकता भविष्य है मेरे सामने।सोच लूँगी किसी जन्म का कर्ज़ा था चुका दिया,भगवान् की यही इच्छा थी।इस प्रकार उसके बिना हस्ताक्षर के उसे सारे झंझटों और परेशानियों से  मुक्ति मिल गयी। 

अपने मातापिता के साथ,उनकी देख भाल करते हुए अपने कार्यालय के काम में जुट गयी।काम करते हुए अपनी माँ के आग्रह से अब उसने मेट्रीमोनिअल के माध्यम से एक सुयोग्य जीवन साथी तलाशा,बात-चीत की,सब तरह से संतुष्ट होकर उसके माता-पिता से  संपर्क कर अपने माता पिता से संपर्क करवा कर उचित समय पर विधि पूर्वक अदालत में दोनों परिवारों के समक्ष कानूनी तौर से विवाह संपन्न किया। 

आज अपनी हिम्मत से,अपनी सूझ-बूझ से दकियानूसी परम्पराओं को तोड़ कर उसने एक नए सिरे से जीवन की शुरूवात की और अब अपने नए परिवार के साथ सुखी और प्रसन्न है।

ये है मेरी नायिका जिसने अपने जीवन को सँवारा बिना किसी लोक-लाज की चिंता किये।समय की आज यही पुकार है।


                                              ***       






  

Thursday 20 July 2023

क्योंकि मैं अपनी ही नहीं सुनती

 क्योंकि मैं अपनी ही नहीं सुनती 

          (आत्म-समीक्षा) 

 

हरबार मन को समझाती हूँ कि अपने को स्वस्थ रखना है तो भूल जा अपना पास्ट,भूल जा कि तू अब वही सब कर सकती है जो अब तक शौक से,बिना किसी परेशानी  के कर पायी ,अब भी कर सकती है। फिर एक तो स्वभाव और फिर शौक काम करने का ,मन नहीं मानता और -------।

कई बार सोचा कि काम करना छोड़ूँ यानि किसी का मुँह देखूँ,आदत ही नहीं किसी से कुछ भी काम के लिए कहने की, तो मुश्किल होती थी ,और फिर चल पड़ती।  सच तो ये है कि ये तो भगवान् भी नहीं चाहते  कि बिना काम किये बैठे रहो,कुछ तो करना होगा बड़ा करने की सामर्थ्य नहीं तो हल्का काम करो पर कुछ तो करना होगा,सोचा कैसे इस आदत से निवृत्ति पाऊँ ,क्या करूँ!पर समाधान नहीं मिला,बार बार मन कहता ,सब छोड़ो,सब हो जायेगा।जब मन कहता है मन को नियंत्रण में रखो,चिंता न करो,औरों को मौका दो,मोह ममता का ही तो रूप है ये कि मन चाहा काम करो, खर्चा करके नहीं,हाथ पैर चला कर लेकिन वो रास्ता नहीं सूझता।और फिर चल देती उसी राह पर !

लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ।मेरे मन की उलझन,परेशानी,समस्या से मुक्ति दिलाने भगवान् ने सख्त रास्ता दिखाकर मार्ग दर्शन किया।असल में घर में साफ़ सफाई का काम शुरू हुआ, उम्र और शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए मन तैयार नहीं था पर बच्चों का मन था,सफाई की आवश्यकता भी थी इसलिए काम शुरू हुआ।

भगवान  का यही मार्गदर्शन था,अवसर था थोड़ा सोचने समझने का लेकिन मनुष्य की यही कमी है कि ठीक से सोचता विचारता नहीं।बस स्वभाव के वशीभूत सामान को हटाना ,लगाना सब में दौड़ती भागती रही,और बस मेरे एक  घुटने ने अचानक साथ छोड़ दिया ,बहुत तकलीफ होगयी,असहाय महसूस करने लगी,बहुत परेशान होगयी,किसी से काम न लेने की आदत कमज़ोर होगयी। वाशरूम तक  के लिए दिन में ३-४ बार बहू को बुलाना पड़ा सहारे के लिए ,अंत में सोचा मेडिकल रिम्बरसमेंट तो होता ही है इसलिए होस्पिटलाइज़्ड होगयी ,एक वीक में सुधार हुआ चलने फिरने लायक हुई तो घर आगयी।(१७फरबरी से २३ फरबरी )

तब से आज तक भगवान ने केवल इस लायक रखा कि अपना काम कर पाऊँ। लेकिन तकलीफ है।समय आज ऐसा है कि अस्पताल,डॉ.पर विश्वास कर पाना मुश्किल होगया है। पर विवशता और मजबूरी अस्पताल और डॉ तक पहुँचा ही देती है। कुछ दिन और प्रतीक्षा की कि शायद अपने आप तकलीफ दूर हो,पर ऐसा हुआ नहीं।अंत में बेटे से कहा बेटा अब तो लगता है घुटने के लिए कुछ करना ही पड़ेगा। तब उसने अपने मित्र और अपने कुछ जानकारों से बात की।उनमें से एक मित्र ने एक डॉ का पता बताया।उसने कहा - अपनी मम्मी का उपचार कराया,अच्छा डॉ है कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं।बेटे ने नाम पता लेकर गूगल सर्च किया ,डॉ से बात हुई पता चला वह मेरा स्टूडेंट है,कहा वो मेरी मैंम हैं ,पढ़ाया है मुझे। बेटे ने जब बताया तो अटूट विश्वास के साथ उससे समय माँगा,मीटिंग की ,उससे मिलकर मुझे और अधिक संतोष हुआ।उसने बताया-45 मिनट की सर्जरी है एक दिन  एडमीशन टेस्ट,दूसरे दिन सर्जरी तीसरे दिन डिस्चार्ज भी हो सकते हैं.उसी समय अपॉइटमेंट लिया और 12 जुलाई को एडमिट हो गयी ,13 जुलाई को सर्जरी और 14जुलाई को  डिस्चार्ज कर दिया।

घर आने की हिम्मत न थी दर्द बहुत था चलने मैं बहुत तकलीफ थी,पर डॉ की हिम्मत देने से हिम्मत की और बच्चों के सहारे से झीना चढ़ कर घर आगयी।आज एक महीना होगया तकलीफ बहुत कम है पर अभी भी बहुत है। डॉ ने कहा है एज फैक्टर है और २-३ महीने का समय लगेगा।पर संतोष है।

बात वही कि "मैं अपनी ही नहीं सुनती"। आज अपनी नहीं,ज़रुरत की सुनी और मुझे सहायता के लिए बोलने,कहने की आदत स्वभाव में आगयी।आज जितना संभव है अपना काम स्वयं कर पाती हूँ बाकी बहू-बेटे का सहारा लेती हूँ।संकोच होता है पर कह पाती हूँ कोई परेशानी नहीं।

कभी-कभी स्वाभिमान इतना अधिक आड़े आता है कि फिर जिंदगी तकलीफ उठाने के बाद अपना रास्ता स्वतः ढूँढ लेती है।स्वाभिमान के स्थान पर इसे 'अहं' भी कहा जा सकता है।मुख्य रूप से परेशानी का कारण भी यही बनता है। 

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