स्वाभिमान
ये शब्द जो आज बात-बात में अंग्रेजी के ईगो शब्द से जाना जाता है,अपने सही अर्थ में स्वाभिमान तो कतई नहीं है। जिस रूप में ये शब्द आज जीया जा रहा है मेरे लिए एक भ्रामकता प्रस्तुत करने वाला है क्योंकि आज जो मैं देख रही हूँ और समझ पा रही हूँ वो स्वाभिमान का सकारात्मक अर्थ नहीं है बल्कि इसकी आड़ में एक विकृत रूप है।अब स्वाभिमान अपने छद्म रूप में घमंड और अहं का रूप ले चुका है।
मैं झुकने वाला/वाली नहीं हूँ 'क्या ये स्वाभिमान है ? क्या विनत होना,विनम्र होना स्वाभिमान में नहीं आता। घमंडी,अभिमानी, ईगोपरस्त व्यक्ति ही ऐसा समझता है। स्वाभिमानी व्यक्ति तो दूसरे व्यक्ति के स्वाभिमान का भी ध्यान रखता है। किसी को दुःख पहुँचाकर वह क्षमा माँगने की हिम्मत भी रखता है और सम्बन्धों को कभी ख़राब नहीं होने देता। लेकिन ईगो में तो टकराव की स्थिति पैदा होती है। ज़रा-ज़रा सी बात पर ईगो हर्ट होना स्वाभिमान को चोटिल समझना एकदम गलत है।
स्वाभिमान आत्मविश्वास जगाता है ,सभ्य समाज में बैठने योग्य अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता है। चतुर्दिक वातावरण को ओजमय बनाता है वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। इसके विपरीत ईगोइष्ट तो नकारात्मकता का ही प्रसार करता है।व्यक्तित्व नकारात्मक ऊर्जा से पूरित होकर अति आत्मविश्वास में आकर निरर्थक चीखना चिल्लाना शुरू कर देता है। सामने वाला भी उसकी उपेक्षा करने लगता है। अहंकार के आते ही व्यक्ति का धन-सम्पत्ति सब कुछ भगवान् छीन लेते हैं ।
अहंकार में व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा,यश सब कुछ गँवा देता है। धन-रूप,पद,बुद्धि, विद्या, जप-तप दान त्याग लोकप्रियता प्रशंसा आदि अहंकार के माध्यम हैं। इनमें से कोई एक भी गुण अभिमानी के लिया घातक होता है और व्यक्ति का विनाश निश्चित है । अच्छे कार्य करने का भी यदि अभिमान है तो वह भी विनाशक है। इससे सतर्क रहने की हरपल हरक्षण आवश्यकता है।
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