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Wednesday, 25 January 2023

एक कमज़ोर,विवश अवस्था ऐसी भी ------------


एक कमज़ोर , विवश अवस्था  

ऐसी भी --------

समझ नहीं आता कि कौन गलत 

स्वयं खुद या कि सामने वाला  !!

अपनी मजबूरी का दोष भी दूसरों में देखना ,

कभी उसी के सहज भाव से किये कार्यों की प्रशंसा करना,

बड़ी ही अन्यमनस्क स्थिति !!

समीक्षा की ,विचार किया ;

किन्तु पशोपेश दूर नहीं हुआ ,

ऊहापोह की स्थिति जस की तस !

क्यों ??

क्योंकि मानव स्वयं में कम ,और 

सामने वाले में दोष अधिक देखना चाहता है। 

किन्तु फिर भी स्थिति तो यथावत -----

गम्भीर विचारों के सागर में डूबता रहा ,

सामने वाले पर ही प्रश्न उठाता रहा ,लेकिन 

नतीजा ------

किंकर्तव्यविमूढ़ !

आखिर में 

खोजते खोजते जिस बिंदु पर पहुँचा  तो -

घेराव में आया  ईश्वर !

सोचा इस अवस्था तक पहुँचाने में यही एकमात्र काऱण है। 

लो अब कल्लो बात !

जब कोई अनुकूल कारण नहीं मिला तो ,

पकड़ो इसे ही ,

पर सही पकड़ा ,सही पकड़ा ,

अन्ततः राह दिखाई उसने !

कोई गलत नहीं ,कोई दोषी नहीं ,

दोषी स्वयं खुद ही हैं हमारी सोच,हमारा स्वार्थ !

हमारे विचारों का संकुचित क्षेत्र ,

तब जाकर प्राप्त अन्यमनस्क अवस्था  में सुधार आया ,

लगा हम स्वयं ही अपनी हर समस्या,कष्ट तकलीफ के कारण हैं। 

आत्म निरीक्षण ,आत्म समीक्षा ,आत्म चिंतन बहुत आवश्यक है ;

अपनी इस अवस्था से मुक्ति पाने के लिए।।

    सकारात्मक " सोच "


                                     ****
















मतलब सबकुछ उसी का किया धरा है 









 

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