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Wednesday 25 January 2023

रिटायरमेंट

 

         रिटायरमेंट  !!!

      

                    एक प्रश्न बार बार मेरे शांत मन को उद्विग्न करता है कि -

   " क्या रिटायरमेंट का दरवाज़ा मृत्यु की ओर जाता है ?"

   " क्या रिटायरमेंट कोई ' सांकेतिक दस्तक ' है ?"

                 ध्यान नहीं ; उक्त कथन कहीं पढ़े हैं या स्वयं मेरे मस्तिष्क की उपज, पर जो भी है ,मेरा मन इस ऊहापोह से उद्वेलित हो उठा कि यदि ये सच है तो फिर ये सिद्धांत या संकेत स्त्री- पुरुष दोनों पर लागू होना चाहिए।एक सुघड़ , सुशिक्षित विचारों से परिपक्व महिला रिटायरमेंट के पश्चात् कार्यकाल की ड्यूटी का निर्वाह कर एक तरह से अपने आशियाने में बापस आती है। बाह्य चिंताओं से मुक्त उन्मुक्तता का अनुभव करती है , अपने घर की बनायी दीवारों को निहारती है , खुश होती है लौट कर, विवाहित या अविवाहित अपने बच्चों और पति के साथ आनंदमय जीवन जीना चाहती है।अपने कार्य-काल यानि अपने व्यावसायिक कार्य के दायित्व से मुक्त हो बहुत ही सहज और सरल संतोषप्रद जीवन जीना चाहती है , परिवार के साथ नए उत्साह के साथ जीवन जीना चाहती है - पर कैसे ------!!

        प्रश्न यहीं खड़ा होता है !! पति तो रिटायरमेंट के पश्चात् बहुत ही असहज  बेरोजगार एक युवक की भाँति असन्तुलित हो जाता है। 

      महिला और पुरुष इस पड़ाव पर इतने भिन्न क्यों ? पुरुष इतने असहज इतने निर्बल क्यों महसूस करते हैं ! ओहदा कुछ भी हो कुछ आवश्यक बचत तो होती ही है , कहीं न कहीं निवेश भी करता है भविष्य के लिए। भविष्य भी ऐसा कि इस अवस्था तक आते-आते परिवार के महत्वपूर्ण दायित्वों से लगभग मुक्त हो चुका होता है। फिर इतनी असहजता क्यों !! 

     प्रयासरत होते हुए कोई काम अपनी रूचि के अनुकूल मिलजाय ,बहुत अच्छा किन्तु न मिलने पर किसी भी तरह के मानसिक दबाव में आजाना बहुत ही नासमझी और असंगत है भयंकर बीमारियों का कारण बन सकता है।

       प्रयास तो ये होना चाहिए जो इच्छाएँ कार्यरत रहते या बच्चों की देख-भाल में पूरी  नहीं कर पाए अब शुरू करें।कभी बच्चों के परिवार के साथ रह कर,कभी स्वयं कहीं घूमने हेतु प्रोग्राम बनायें कभी धार्मिक स्थलों पर दर्शन हेतु जाएँ।पर ये विचार इन पुरुषों के मस्तिष्क में क्यों नहीं आते। जिनको लेकर पत्नी सारा जीवन इसी प्रतीक्षा में व्यतीत कर देती है ! उसका जीवन तो नितांत एकांगी रह जाता है। 

      फिर से पति की देख-रेख , उनकी बीमारी की चिंता में अपनी युवावस्था से भी अधिक व्यस्त हो जाती है।बच्चे भी पास नहीं होते,उस पर पति की इस तरह की असहजता,व्यवसाय के लिए उत्तरोत्तर बेचैनी पत्नी को वास्तविक आयु से अधिक वृद्धावस्था की ओर धकेल देती है। 

      ऐसी ही स्थिति में प्रारम्भ में उठाये प्रश्न यहाँ खड़े होते हैं।यहाँ ये कहना आवश्यक है कि ऐसा  हर पुरुष के साथ नहीं होता वे भी समय और आवश्यकता  के अनुसार स्वयं को और अपने परिवार को खुश व सन्तुष्ट रख कर आनन्द व संतोष के साथ जीवन यापन करते हैं। 

      किन्तु अधिकतर मैंने ऐसा ही पाया है  " रिटायरमेंट सच में पुरुष वर्ग के लिए एक बोझिल और नाकारा अवस्था होती है।" 

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