एकाकीपन
एकाकीपन जीवन की वह साधनावस्था है,जिसमें मानव एकाकी बैठ कर चिंतन करे कि अबतक उसने क्या किया और क्या करना शेष है। यह साधना कठिन नहीं होती ,केवल उसे भावी -जीवन का मार्ग दर्शन करेगी।
एकाकीपन !
यह जीवन का अटूट-सत्य है।
हर प्राणी अकेला ही है -
क्षणिक मिथ्या-सम्बन्धों को सही मानकर -
स्वयं को भ्रमित कर ,दुखी करता है।
वह भीड़ में भी अकेला होता है ,
समुदाय में भी अकेला होता है -
यहाँ तक कि परिवार में भी अकेला होता है।
जब भी कोई दुर्घटना घटित होती है तो -
सबको छोड़ कर अकेला ही चल देता है।
मानव केवल कर्त्तव्य निभाने के लिए जन्म लेता है-
और इसमें यदि कोई दूसरा मोह-ग्रसित होजाता है और
उससे वियुक्त होने पर दुखी होता है ,पछताता है -
ये तो उसीकी अज्ञानता है ,विमूढ़ता है
वह अकेला ही है ,जब तक जीवन है अकेला ही रहेगा।
अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार केवल ईश्वर से ही जुड़ा है
वह दुखी तब होता है जब स्वयं को ईश्वर से जुड़ा नहीं समझता।
अच्छा हो एकाकी रहकर अपने कर्मों का लेखा -जोखा खुद करें और आत्म-विश्लेषण करे।
------------
Beautiful lines....... Love sitting alone..time for introspection to be sensitized and empathize
ReplyDeleteNow i know that though i am alone i am nearer to god .....thanks...