Visitors

22,130

Saturday, 15 February 2014

६ फरवरी २०१३ की वो काली भयावह रात

६फरवरी २०१३ की वो काली भयावह रात !

देखते -देखते चले गए 
मैं देखती रह गयी
मैं बातें करती रह  गयी ,चिल्लाती रह गयी
फटी हुई आँखें  बंद करती रह गई -
और तुम विदा लेगये !
डॉक्टर की टीम आगई --
कृत्रिम साँसें देते  रहे  लेकिन --
तुम नहीं लौटे और तभी एक आवाज़ ने -
"माताजी धड़कनें बंद हो चुकी हैं."मुझे
स्तब्ध कर दिया ,मैं जड़वत हो गई ---
मैं ठगी सी ज़मीन पर बैठ  गयी-
गले की आवाज़ बंद ,रोना बंद ,
पैर चलने को तैयार नहीं,पर चली -
लिफ्ट चलाना भूल गई -
सीढ़ी से उतरी ,उतरा न जाए -
बैठ गयी -
फिर बढ़ी,उतरी -
जैसे-तैसे ट्रौमा-सेंटर तक पहुँची -
हत-प्रभ ,हत-प्रभ ,हत -प्रभ !!!

       एक पल में सब कुछ ख़तम
       रह गया  तो एक काली भयावह रात का सन्नाटा ------!!!

                                  ---------

No comments:

Post a Comment