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Saturday 26 September 2020

अविस्मरणीय मधुर पल - पापा के साथ बिताये मधुर पल

अविस्मरणीय मधुर पल - पापा के साथ बिताये मधुर पल 

     

सौभाग्यशाली हूँ ,
मुझे जिन्दगी में वे पाँच वर्ष  मिले जब मैं पापा के साथ थी। मानस पटलपर अंकित कुछ यादें ऐसी हैं जो कभी धूमिल नहीं हो सकतीं। वे दृश्य जिन्हें आज मेरी लेखिनी लिखने को आतुर है ---एक शाम पापा मुझे घुमाने शहर लेगये -----

दृश्य - १

लिखते समय भी एक एक पल मेरी आँखों के सामने है। हुआ यों,एक दिन मेरे पापा बोले , राजे चलो , कहीं घुमाके लाते हैं ,कहाँ चलोगी ? मेरे बाल-मन ने कहा-दूर क्षितिज की ओर जहाँ अस्त होते हुए सूर्य की लालिमा है ,जहाँ धरती-आसमान मिलरहे हैं। और पापा ने उसी दिशा में अपनी साइकिल चलादी , पर जैसे ही साईकिल आगे बढ़ी , साइड के बड़े गेट से भैंसों का झुण्ड साइकिल के सामने , बचने के लिए पापा ने साइकिल को घुमाया तो मेरा पैर साइकिल के पहिये में आगया , मेरा पैर लहू-लुहान। एड़ी बुरी तरह कट गयी। एक हाथ से साइकिल दूसरे हाथ से मुझे सँभाला। घर लाकर बुआ को आवाज़ लगायी ,घुटने तक पैर की पट्टी की। आज भी एड़ी पर निशान है जो कभी भूलने नहीं देता। और मुझे भाग्यशाली होने का एहसास करता है।

दृश्य - २

शाम को भल्ले वाले को लाना,ठण्डाई घोटना , पीना - पिलाना , दूध से भरा ग्लास माँ के रोकने पर भी मेरे हाथ में देदेना,बचे हुए को खुद पीजाना ,ये वो यादें हैं जिन्हें भोगने का मात्र मुझे ही अवसर मिला।

                                                      ***




Friday 17 January 2020

जीवन का सार


               जीवन का सार

जीवन की ये कैसी बाध्यता !
क्या स्वीकार्यता ही जीवन है ?
क्या कृत्रिम भाव-शून्यता ही शेष रह गयी है?
क्या ज़िन्दगी के इस पड़ाव का ये भी आवश्यक पहलू है?
क्या यही ज़िन्दगी का सार है?
सब को आनंद देना ही जीवन है ?
यही सच्चा सुख या जीवन है ?
लगता तो ऐसा ही है !
किसी के कष्टों को दूर करने की कोशिश में ही सुख की " इति " है।
विश्वास नहीं होता,पर सत्य यही है।
जीवन का सार भी यही है।
"अपनी अच्छाइयों को समक्ष रखना दोष है और 
दूसरों की अच्छाइयों को समक्ष रखना ही सही है।"
यही जीवन का सार है।
जीवन की सोच बदल गयी है ,
इसी "बाध्यता" को समझना होगा।
इसकी अनिवार्यता समझनी होगी।
सबको सुखी देखना ही "परम-सुख" है।
असंभव है, पर सम्भाव्य में ही "परम-आनन्द"है।
मुस्कराते हुए स्वयं को भुला देना ही सही है।
क्योंकि यही जीवन का सार है।

                         ******



   




Sunday 6 October 2019

मेरी बिट्टू के साथ की मधुर यादें

       मेरी बिट्टू 

    ज़िन्दगी की शाम होती है आलीशान ,
    ना कोई  काम न कोई धाम,
    खाने और सोने का काम,
    मैं बुड्ढी होना चाहती हूँ।
तरह से शब्दों में पिरो कर आनन्द के काबिल बनाया है।

आज वो चौदह वर्ष की हैं अब कहती हैं , नहीं मैं बुड्ढी नहीं होना चाहती।

                             ****

   जब मेरी बिट्टू लगभग ढाई-तीन साल की होगी ,मेरे साथ एक मैगज़ीन के पेज पलट रही थी ,कि 
अचानक एक पेज , जिस पर एक मॉडल का चित्र , जिसमें वह पाश्चात्य वेश-भूषा के वस्त्र 
पहने हुए थी , देखते ही बोली -" देखो दादी, कैसे टूटे फूटे कपड़े  पहने हुई है।" सुन कर हंसी आयी। 
आज जब वो टीन एज में हैं , मैं याद दिलाती हूँ तो हँसती हुई कहती है , " मुझे तो टूटे-फूटे कपड़े अच्छे लगते हैं।"
मुझे भी हँसी आगयी  , सोचा ये है बदले हुए वातावरण या समाज का प्रभाव। समाज के साथ चलना ज़रूरी और 
ठीक भी है। उसने तो ठीक ही कहा। 

                                 ***

Sunday 29 September 2019

ऐसी थी वो ----

                      ऐसी थी वो --------
        

          अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी  है ,सकारात्मक होना।जीवन में जो कुछ मिलता  है,उसे सोचने के दो तरीके हैं नेगेटिव और पोज़िटिव।दोनों ही व्यक्तित्त्व के अंग हैं। अंतर यही है कि पॉज़िटिव सोच आपको संतुष्ट व प्रसन्न रखती है , शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से। ईश्वर ने उसे नकारात्मकता से बचाया है,इसका अर्थ ये नहीं कि वह कभी दुखी नहीं होती लेकिन कुछ ही समय के बाद वह फ्रेश होजाती ,भूल जाती,याद रहता कि उस समय साथ कौन थे। किसने सँभाला, किसने किस तरह सहायता की। कभी कभी तो लगता है मानो उसे किसी  एक देवदूत ने उठा लिया हो और  सारी ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारी लेली अपने ऊपर ।

    जिन परिस्थितियों में समय व्यतीत हुआ वे चाहे कैसी भी रही हों,पढ़ाई से जुड़ी या फिर खाने-पीने से जुड़ी या फिर घर के काम धाम से,कभी भी उपेक्षित महसूस नहीं किया उसने । सब का अहसान ही माना। सबके बीच खेलना-कूदना ,हँसना-बोलना और खुश रहना।वो कहती है  कि मुझे काम का आलस्य न था दूसरी बात वो कहती कि मुझे काम करने का शौक था इसलिए जीना बहुत आसान होगया था।  

यहां तक कि यदा-कदा अपने बचपने में उससे ही कुछ ग़लत व्यवहार हुआ जिसे आज भी याद कर वो दुखी होती है, पर कभी किसीने कुछ नहीं कहा ये भी उसे आज याद है. । आज जिस योग्यता व सम्मान के साथ वो जी रही है तो वो उन कठिनाइयों में व्यतीत किया समय ही इसका मुख्य कारण है।वो समय कष्ट या दुःख का नहीं वरन जीवन  को सुख पूर्वक जीने का मज़बूत आधार मानती है वह । बड़ा सम्बल मानती है उस समय को।परिवार में हर व्यक्ति से बहुत प्यार व सम्मान मिला और वो आज भी प्राप्त है।

    उस समय को व्यतीत करने में सकारात्मकता  लाने वाले परम परमेश्वर,भगवान ही थे जो आज भी हैं। न उसने कभी किसी में  बुरा देखा, न सोचा  भगवान  के बताये रास्ते पर चलती गयी। इसीलिए विगत जीवन की बहुत सारी कड़वी  बातें जब कोई कहता है,सुनाता है उसे तो " ईमानदारी से कहती है कि वे बातें मुझे याद ही नहीं हैं या उन्हें मैं अधिक महत्व ही नहीं देती।" वे परिस्थितियाँ आगामी यानि वर्तमान जीवन का  आधार  बनी और उसे जीने  की कुशलता ,जीने की कला  सिखाई। आज वो स्वयं को  सुखी,अनन्यतम सुखी  मानती है । कहती है कि "मुझ जैसा भाग्यशाली कोई नहीं क्योंकि भगवान की मुझ पर विशेष कृपा रही है मुझे सबसे सीखने को मिला,सबकी अच्छी बातें मुझे याद रहीं और कोशिश भी है,आज भी अनुसरण करने  की।"

                                                            ॐ नमः शिवाय -----

                                                                           ***

                                                 

            

Saturday 18 August 2018

best half प्रकाशित nbt


बेस्ट हाफ ( nbt की माँग पर )

जन्म पत्री नहीं मिली कोई बात नहीं ,
राहु - शनि की दशा आती रही कोई बात नहीं,
लड़ाई-झगड़े होते रहे कोई बात नहीं ,
बात-चीत बंद होगई  कोई बात नहीं,
पर कुछ तो है
जो ३६ साल के बाद भी हम साथ-साथ हैं।
क्योंकि हम बेस्ट-हाफ़ हैं।

 इत्तिफाक से मिले इस -शीर्षक बेस्ट-हाफ के अलावा अन्येतर इतने कम शब्दों में जीवन को सिमेट कर रख देना मुश्किल था।

 धन्यवाद nbt !!

       ( २०१० में प्रकाशित )

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Wednesday 1 August 2018

कहानी एक राजा की


कहानी एक राजा की --

बहुत ही परिश्रमी,न्यायी,प्रजा का परम हितैषी
लेकिन परेशान !
एक राजा, पहुँचा अपने गुरु के पास,और
निवेदन किया -गुरु देव !-
समस्याएँ नित्य पैदा हो रही हैं, राज-कार्य से थक गया हूँ,
कोई समाधान दीजिये ;
बड़ा सरल है, गुरु बोले -"राज्य छोड़ो,अपने पुत्र को देदो।"
" पुत्र तो अभी बहुत छोटा है।"
गुरु ने कहा -" तो फिर राज्य मुझे देदो,राज्य मैं सँभालूँगा।"
राजा बहुत खुश,ठीक है कह कर चल दिया,
गुरु बोले-कहाँ चले ??
ख़जाने से कुछ कमाई के लिए पैसा लेने, राजा बोला -
गुरु ने अट्टहास किया,बोले -
अरे राज्य मेरा,कोष मेरा,उसमें अब तुम्हारा कुछ नहीं।
राजा परेशान ;
गुरु बोले - क्या हुआ,तुम्हें नौकरी चाहिए ,मेरी करो ,
मुझे भी राज्य चलाने के लिए अनुभवी सेवक चाहिए।
राजा तैयार।
गुरु ने कहा ; तो जाओ, राज-कार्य सँभालो,हर महीने
तुम्हें तुम्हारा वेतन मिल जायेगा।
राजा ख़ुशी-ख़ुशी राज कार्य  में व्यस्त होगया।
कुछ  समय बीतने पर एक दिन,गुरु पहुँचे राजा के पास -
बोले -  कहो अब कैसा लग रहा है  ?
राजा बोला- बहुत अच्छा ! दिन-भर काम करता हूँ -
परिवार के साथ समय व्यतीत करता हूँ और
निश्चिन्त रात को चैन की नींद सोता हूँ।
गुरु बोले-कुछ आया समझ ?
"सेवक बन कर्म करो,स्वामी बनोगे तो समस्याएँ -
आएँगी,कर्म करो और ईश्वर को समर्पित करो।"
कैसा रहा समाधान !
          राजा हँसा और बोला - धन्यवाद !!
  ( पठित नीति-परक कहानी की भाषा और अभिवक्ति मेरी निजी है।)
 
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Sunday 24 June 2018

जब से होश सँभाला




मुझे आपत्ति  है -----

जब से होश  सम्भाला है -
तब से दो असहनीय शब्दों का सामना कर रही हूँ -
वे दो शब्द ; पढ़कर स्वयं समझ पाएँगे।
सोचिये --
क्या महिला के विगत होने पर
पुरुष के लिए " विधुर " शब्द का प्रयोग किसी ने किया है ?
किन्तु महिला को कितनी उपेक्षा व बेरुखी से " विधवा" कह कर
बेचारगी का बोध करा दिया जाता है,यानि
पुरुष कुँवारा होगया,और महिला लाचार,असहाय और बेचारी ;
जिसका मन चाहा शोषण किया जा सके।
लेकिन ऐसा नहीं है वो तो -
और अधिक मजबूत,हिम्मती,सक्षम और समर्थ होजाती है क्योंकि -
इस बिगड़ैल समाज में उसे सम्मान से जीना है।

        ("जब-तब इन्हीं महिलाओं की सहायता व सम्मान हेतु आयोजन भी किये
जाते हैं,वहाँ भी इस उपेक्षित शब्द के बिना विषय का विस्तार किया जाय तो -
अधिक वाञ्छनीय होगा।"जैसे विधवा-पेंशन योजना" के स्थान पर --
"विशिष्ट महिला पेंशन योजना"वाक्यांश का प्रयोग अधिक सम्मान जनक होगा।)
   
बात यही नहीं  -
तलाक-शुदा,डिवोर्सी या परित्यक्ता -
इनका भी प्रयोग महिला के लिए ही होता है
पर उसे तो ऊपर वाला संभालता है तब,
वो कभी नहीं छोड़ता उसे !
पुरुष का तो  पता भी नहीं चलता,-
उसका सही परिचय क्या है !! तो
समझदारी इस बात में है कि -
आवश्यकतानुसार "वो नहीं रहे।"
या" पति नहीं रहे।"या "वो अलग रहते हैं"कहकर
सूक्ष्म परिचय दिया सकता है।
जो सम्मानजनक भी होगा और
उपेक्षा जैसा भाव भी नहीं होगा।
     
महिलाओं के सशक्तिकरण पर अक्सर सरल शब्दों में -
    अपने विचार व्यक्त करती रही हूँ उन्ही में एक ये भी "एडिशन"है।

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