कहानी एक राजा की --
बहुत ही परिश्रमी,न्यायी,प्रजा का परम हितैषी
लेकिन परेशान !
एक राजा, पहुँचा अपने गुरु के पास,और
निवेदन किया -गुरु देव !-
समस्याएँ नित्य पैदा हो रही हैं, राज-कार्य से थक गया हूँ,
कोई समाधान दीजिये ;
बड़ा सरल है, गुरु बोले -"राज्य छोड़ो,अपने पुत्र को देदो।"
" पुत्र तो अभी बहुत छोटा है।"
गुरु ने कहा -" तो फिर राज्य मुझे देदो,राज्य मैं सँभालूँगा।"
राजा बहुत खुश,ठीक है कह कर चल दिया,
गुरु बोले-कहाँ चले ??
ख़जाने से कुछ कमाई के लिए पैसा लेने, राजा बोला -
गुरु ने अट्टहास किया,बोले -
अरे राज्य मेरा,कोष मेरा,उसमें अब तुम्हारा कुछ नहीं।
राजा परेशान ;
गुरु बोले - क्या हुआ,तुम्हें नौकरी चाहिए ,मेरी करो ,
मुझे भी राज्य चलाने के लिए अनुभवी सेवक चाहिए।
राजा तैयार।
गुरु ने कहा ; तो जाओ, राज-कार्य सँभालो,हर महीने
तुम्हें तुम्हारा वेतन मिल जायेगा।
राजा ख़ुशी-ख़ुशी राज कार्य में व्यस्त होगया।
कुछ समय बीतने पर एक दिन,गुरु पहुँचे राजा के पास -
बोले - कहो अब कैसा लग रहा है ?
राजा बोला- बहुत अच्छा ! दिन-भर काम करता हूँ -
परिवार के साथ समय व्यतीत करता हूँ और
निश्चिन्त रात को चैन की नींद सोता हूँ।
गुरु बोले-कुछ आया समझ ?
"सेवक बन कर्म करो,स्वामी बनोगे तो समस्याएँ -
आएँगी,कर्म करो और ईश्वर को समर्पित करो।"
कैसा रहा समाधान !
राजा हँसा और बोला - धन्यवाद !!
( पठित नीति-परक कहानी की भाषा और अभिवक्ति मेरी निजी है।)
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