मेरी बिट्टू
ज़िन्दगी की शाम होती है आलीशान ,
ना कोई काम न कोई धाम,
खाने और सोने का काम,
मैं बुड्ढी होना चाहती हूँ।
तरह से शब्दों में पिरो कर आनन्द के काबिल बनाया है।
आज वो चौदह वर्ष की हैं अब कहती हैं , नहीं मैं बुड्ढी नहीं होना चाहती।
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ज़िन्दगी की शाम होती है आलीशान ,
ना कोई काम न कोई धाम,
खाने और सोने का काम,
मैं बुड्ढी होना चाहती हूँ।
तरह से शब्दों में पिरो कर आनन्द के काबिल बनाया है।
आज वो चौदह वर्ष की हैं अब कहती हैं , नहीं मैं बुड्ढी नहीं होना चाहती।
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जब मेरी बिट्टू लगभग ढाई-तीन साल की होगी ,मेरे साथ एक मैगज़ीन के पेज पलट रही थी ,कि
अचानक एक पेज , जिस पर एक मॉडल का चित्र , जिसमें वह पाश्चात्य वेश-भूषा के वस्त्र
पहने हुए थी , देखते ही बोली -" देखो दादी, कैसे टूटे फूटे कपड़े पहने हुई है।" सुन कर हंसी आयी।
आज जब वो टीन एज में हैं , मैं याद दिलाती हूँ तो हँसती हुई कहती है , " मुझे तो टूटे-फूटे कपड़े अच्छे लगते हैं।"
मुझे भी हँसी आगयी , सोचा ये है बदले हुए वातावरण या समाज का प्रभाव। समाज के साथ चलना ज़रूरी और
मुझे भी हँसी आगयी , सोचा ये है बदले हुए वातावरण या समाज का प्रभाव। समाज के साथ चलना ज़रूरी और
ठीक भी है। उसने तो ठीक ही कहा।
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