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Monday 21 August 2017

उद्धरण


      संकलित

" यदि हर कोई आपसे खुश है, तो निश्चित है,आपने जीवन में बहुत समझौते किये हैं और यदि आप सबसे खुश हैं
   तो निश्चित है,आपने लोगों की बहुत सी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ किया है। "    

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कहते हैं बोलने से पहले १०० बार सोचो क्योंकि हर शब्द और वाक्य के अनेक अर्थ हो सकते हैं , जब बोलना हो तो सोचिये कि सुनने वाला क्या वही अर्थ समझेगा जो आप कहना चाहते हैं यदि नहीं तो अपने वाक्य या शब्द के विन्यास को बदल कर सोचिये कि अर्थ आपके अनुसार हो।द्वि अर्थी शब्दों के प्रयोग से बचिए इस प्रकार आप ग़लतफ़हमी का शिकार होने से बच सकते है। 

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" जब आप अपने मन की बात अपने मन में नहीं रख सकते तो कैसे विश्वास कर सकते हैं कि वो आपके मन की बात को 
अपने मन में रख सकता है।" 


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किसी को उसीकी की भाषा में जबाव देने से पहले सोचो कि " मैं , मैं हूँ।" और वो , वो। आपकी भाषा बदल जाएगी। 

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जैसे साहित्य समाज का दर्पण है ,वैसे ही आपका " चेहरा आपके विचारों का दर्पण होता है।"  
 


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मैं  स्वयं कभी ऊँचे ओहदे पर नहीं देखती पर जो मिलता है उसे सर्वोच्च ओहदे का सम्मान समझती हूँ।    



Monday 3 April 2017

बेटियाँ उपेक्षा के लिए नहीं !!


बेटियाँ उपेक्षा के लिए नहीं !!

मुसीबत आती है तो अपने भी पराये होजाते हैं ,
औरों की तो कहें क्या !
एक माँ ज़रूर साथ खड़ी होती है,
पर वो भी लाचार,
सुनती रहती है इस बेरहम समाज की ऊल-ज़ुलूल बातें !
दकियानूसी परम्पराओं में जकड़े रहना,
और बकबास रूढ़ियों को स्वीकारना ,
यही तो है आज के विकासशील समाज की सोच !
घुट रही थी वो अन्दर ही अन्दर !
सोच रही थी कैसे सबका मुँह बन्द करूँ?
कैसे इन दानवों से ख़ुद की रक्षा    करूँ?
पर वक्त बदलता है,वो साथ नहीं छोड़ता -
आवाज़ दी ,ज़ोर से कान में चिल्लाया-उठ
अचानक उसे कुछ चेतना हुई ,हिम्मत आयी ,
उठी ,फोन किया  ,बुलाया उसे और
सबके सामने लाकर उसे खड़ा कर दिया।
बोली -"ये है मेरा जीवन-साथी"-
कहना है किसी को कुछ?
है कोई शिकायत ,कोई शंका ?
सुनकर चोंके सब !
हक़-बके से हत -बुद्धि प्रायः !
और तब -(नीरवता को भंगकरते हुए)
सामने आयी माँ-बोली -
 कुछ पूछने की ज़रुरत नहीं  -
औरकोई कुछ नहीं बोलेगा -
दोनों के सर पर हाथ रखा,आशीष दिया
आवश्यक शुभ-शकुन दे -
विदाई उत्सव संपन्न किया।

 मित्रो,क्यों दबाई जाती है एक शिक्षित,सुयोग्य युवती की आवाज़-
    उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें।उन्हें  दिशा  दिखाएँ।
    वक्त से लड़ने में उनकी ताक़त बनें,उत्साहित करें।


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Friday 27 January 2017

मुलाक़ात ----!


 दिव्य मुलाक़ात !!

अपने नाश्ते को लेकर
अपने घर के लॉन में जाकर बैठ गया।
सामने गेट के बाहर नज़र पड़ी,
वह देख रही थी ललचाई आँखों से -
हाथ में लगे टोस्ट को देखा, जाकर उसे देआया।
वह मुस्काई,उसकी आँखों में प्यार और आशीष दिखाई दिया।
और फिर -
हाथ में लगे जूस को भी उसे दे दिया,
वो फिर हँसी,वह भी खुश हुआ,
उसकी मासूमियत से शिशु प्रभावित हुआ !!
बेंच पर जाकर कुछ देर बैठा रहा,
सन्तुष्ट ! प्रसन्न ! अगले ही पल -
दौड़ा घर की ओर,लेकिन -
फिर मुड़ा, जाकर उसे गले लगाया।
घर पहुँचा,बोला - "माँ आज मैं भगवान से मिला -"
पीछे से आवाज़ आयी-
और "आज मैंने भगवान के साथ नाश्ता किया !!"

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Monday 12 December 2016

शाश्वत जीवन साथी (फॉर ऐवर लाइफ पार्टनर )


मेरी मित्र ! चिर संगिनी !

      शाश्वत जीवन साथी 

 लेखन में जो शक्ति,नहीं होती वाचन में।
       प्रेम,व्यथा,पीड़ा का  होता दर्शन इसमें ।।

जब कोई नहीं दिखाई देता
जिसे किसी से कह भी नहीं पाती
कोई सुनने वाला भी नहीं होता -
उसे यह सुन लेती है ,समझ लेती है और -
चुपके से मेरी उँगलियों के बिस्तरे पर बिराजमान हो ,
मेरी व्यथा को अपने शब्द- मुक्ताओं में पिरो -
मुझे नए उत्साह व रोमांच से भर देती है ,
मेरी सारी  बालायें अपने ऊपर लेलेती है
अथाह ताकत है इसमें -
शब्द चयन इसका ,भाषा इसकी,अभिव्यक्ति इसकी और -
वीरानगी ,पीड़ा,मनोव्यथा मेरी !
कितनी खूबसूरती से मुझमें नए जीवन का संचार कर देती है -
मेरी ये जीवन संगिनी !
धन्य हूँ कि यह मेरी जीवन संगिनी बनी।
अगर ये न होती तो मैं अकेली ,बहुत अकेली होती।
इसलिए "बोर" जैसा शब्द मेरे शब्द-कोष में नहीं है।

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Monday 5 December 2016

जीवन की साधना


जीवन की साधना

बड़े गम्भीर स्वर में " दादी,आज मेरा एग्जाम है, विश करो।"

  रौब से,अधिकार से ,प्यार से कभी क्रोध से लबालव प्यारा सा " दादी " शब्द जब कानों में रस घोलता है तो      लगता है मानो जीवन की साधना सफल होगयी।
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Tuesday 20 September 2016

मरणासन्न व्यक्ति की व्यथित मुस्कराहट



मरणासन्न व्यक्ति और उसकी मुस्कराहट में छिपा दर्द !!

वह व्यथित है,मरणासन्न है,
परिवार में मातम छाया हुआ है,

प्रस्तुत है एक परिदृश्य;
पास में डॉक्टर है,निराश है,हताश है,वह कुछ कर नहीं पा रहा।
एक पत्रकार खड़ा है,नंबर १ खबरी बनना है।समाचार-पत्र में मृत्यु का सही समय सबसे पहले प्रकाशित करबाना है।
एक चित्रकार भी खड़ा है,मृत व्यक्ति का स्केच बनाने के लिए।
परिवार अवसन्न है,भविष्य की योजना में मग्न।
  यानि घटना एक ;
मनःस्थितियाँ चार !!
सबकी सोच अलग; चारों मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न विचार !
हर कोई अपने स्वार्थ में संलग्न !
ग्राह्य है ,रिश्तों के मायने बदल गए हैं।
मतलब साफ़ है-
" आज के परिवेश में रिश्ता अपने आप से जोड़ें ; जीवन के आखिरी पड़ाव पर जीवन का अर्थ स्पष्टतः दिखाई देता है,मरणासन्न व्यक्ति की मुस्कराहट का यही अर्थ है। "
  हम सब भी तो मरणासन्न हैं,देखें अपने चारों ओर भी यही दृश्य है !!!

ये विवरण (ओशो की कहानी )मैंने समाचार-पत्र में पढ़ा था,मर्म-स्पर्शी था तो कलम हाथ में आगयी। शब्द और अभिव्यक्ति मेरी निजी है।      

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Sunday 4 September 2016

सदाबहार शिक्षक


सदाबहार शिक्षक  ( शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ )

एक अध्यापक गहन चिन्तन में -
अपने विचारों को खाली पन्नों पर उकेरने के लिये तत्पर -
घण्टी बजती है,अध्यापक द्रुत गति से जाता है  ;
दरवाज़ा खोलता है -
दोनों ही एक दूसरे को देख दंग रहजाते हैं -
आगन्तुक के चेहरे पर झुर्रियाँ,उदासी,थकान और -
शिक्षक,बहुत उत्साहित,सचेत,जागरूक,खिला हुआ चेहरा -
निराशा,हताशा,उदासी,थकान से कोसों दूर -
पास बैठे छात्र देख रहे थे,ज्ञात हुआ,दोनों मित्र हैं।
सम-वयस्क हैं, दोनों ही लगभग साठ पार कर चुके हैं ,कार्य-रत हैं फिर !! क्योंकि -

"अध्यापक सदैव छोटे और युवा छात्रों से घिरा रहता है -
इसलिए वो युवा ही रहता है ,
हमेशा अपने छात्रों को कुछ नया-नया देने की तैयारी में रहता है -
विविध प्रकार का साहित्य पढ़ता है -
उस सामग्री को नया रंग देकर रुचिकर बनाकर छात्रों को सन्तुष्ट करता है -
उच्च स्तर की उनसे हँसी-मज़ाक करता है -
उन्हें "लाइट-मूड" में रखता है और नैतिकता की बातें करता है
इससे बचे समय में अपने अनुभव पन्नों पर उतारता है।
स्वयं को  एक आदर्श रूप में प्रस्तुत करता है।"

फिर आयु की किसी भी पर्त का उस पर प्रभाव कब और कैसे हो !!
वो सदा "सदाबहार" रहता है।

( सभी छात्रों और शिक्षकों को " शिक्षक दिवस " की हार्दिक शुभ कामनाएँ क्योंकि छात्रों से -
ही शिक्षक का अस्तित्व है। )

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