मेरी मित्र ! चिर संगिनी !
शाश्वत जीवन साथी
लेखन में जो शक्ति,नहीं होती वाचन में।
प्रेम,व्यथा,पीड़ा का होता दर्शन इसमें ।।
जब कोई नहीं दिखाई देता
जिसे किसी से कह भी नहीं पाती
कोई सुनने वाला भी नहीं होता -
उसे यह सुन लेती है ,समझ लेती है और -
चुपके से मेरी उँगलियों के बिस्तरे पर बिराजमान हो ,
मेरी व्यथा को अपने शब्द- मुक्ताओं में पिरो -
मुझे नए उत्साह व रोमांच से भर देती है ,
मेरी सारी बालायें अपने ऊपर लेलेती है
अथाह ताकत है इसमें -
शब्द चयन इसका ,भाषा इसकी,अभिव्यक्ति इसकी और -
वीरानगी ,पीड़ा,मनोव्यथा मेरी !
कितनी खूबसूरती से मुझमें नए जीवन का संचार कर देती है -
मेरी ये जीवन संगिनी !
धन्य हूँ कि यह मेरी जीवन संगिनी बनी।
अगर ये न होती तो मैं अकेली ,बहुत अकेली होती।
इसलिए "बोर" जैसा शब्द मेरे शब्द-कोष में नहीं है।
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