गाथा : एक कर्मठ योगी की
जन्म तो माता की गोद में ही हुआ ;
चार वर्ष के बाद वह छोड़ गयीं ;
पिता के संरक्षण ने पाला ;
बहुत ही प्यार भरा जीवन !
पिता की सरकारी नौकरी से प्राप्त,पर्याप्त था।
कि एक अनपेक्षित मोड़ ने -
जीवन की दिशा-दशा ही बदल दी !
छूट गया सब !
पिता का दूसरा विवाह !!
सौतेली माँ का आगमन !
अनचाहे आगमन और उपेक्षित व्यवहार से
उसका जीवन बिखर गया।
घर पराया होगया।
14 वर्ष की आयु में मानसिक आघात था ,
4-5 बार घर छोड़ा,
पहले एक माँ ने छोड़ा
फिर घर छूटा ,
मिथ्या सम्बधों में भी 3-3 माँओं के आश्रय में
हायर सेकंडरी तक शिक्षा प्राप्त की,
फिर वे भी छूट गयीं।
पिता के सहयोग से सरकारी नौकरी भी मिली ,
और अब एक नयी ज़िम्मेदारी !
परिवार ! विवाह हुआ ,
परिवार की ज़िम्मेदारी,और फिर -
केवल ज़िम्मेदारी का अहसास
मोह रहित जीवन !
कर्म-निर्वाह में रत ,
कहीं भी कोई उपेक्षा ,अवहेलना नहीं,
संतान के अनपेक्षित दुःख !
40 वर्ष का अनवरत कर्तव्य-निर्वाह
किन्तु-
जब संतान के सुख देखने का समय आया;
तो सब कुछ बिना देखे ही योगी ने
इस दुनिया से विदा लेली !
एक कर्तव्यपरायण कर्म-योगी !
निरंतर कर्तव्य-पथ पर सवार
अंतहीन दिशा की ओर बढ़ चला ;
दुखों को भी छोड़ा ,
सुखों को भी छोड़ा
कर्तव्य और अधिकार
सबसे मुँहु मोड़ कर विरक्त-भाव से।
कोई ग़म नहीं;कोई सुख नहीं;कोई दुःख नहीं।
और चला गया अपने मुक्ति-पथ पर !!
(अनु और श्वेता के पिता )
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