Visitors

22,118

Tuesday, 27 October 2015

शिकायतें ( हास्य-व्यंग्य- एक छोटी सी सीख )


शिकायतें ( हास्य-व्यंग्य -एक छोटी  सीख )
   

   बहुत दिनों से यह चार वर्णीय " शिकायत " शब्द "भेजे" की परिक्रमा लगा रहा था। सोचा आखिर इस बहुआयामी शब्द के पोटले में है क्या !और मैंने अपनी मेज़ पर रखे हुए लेखनी के बक्से से लेखनी को निकाल कर उसीका प्रश्रय लिया। असल में इस शब्द का प्रयोग एक नहीं अनेक अर्थों में होता  रहा है। आप कभी दो व्यक्तियों का सम्वाद सुनें तो पायेंगे कि या तो वे किसी की टीका -टिप्पणी कर रहे होंगे ,या कभी किसी के उपहारों को लेकर कि वह ऐसा लाये वह वैसा लाये। और कभी किसी को प्रत्यक्ष ही कहेंगे अरे, ये सब करने की क्या ज़रुरत थी। यानि कोई करे तो क्या करे ,यहाँ तो शिकायतों का पहाड़ तैयार है।

          इसी प्रकार की शिकायतें प्रायः लोग करते ही रहते हैं ;बच्चे हैं कि पढ़ते ही नहीं हैं ,फोन पर ही लगे रहते हैं। बीवी की शिकायत कि उस पर ध्यान नहीं देता उसका पति ,घरवाली से शिकायत कि कभी समय पर तैयार नहीं होती हमेशा देर कर देती है। मतलब  कि ये "अदना" सा शब्द अपने अंदर कितना खजाना सँजोये हुए है।

                     सोचकर डब्बे से कलम निकाली ही थी कि दरवाज़े की घंटी बज गयी. अबे,अब कौन शिकायत लेकर आगया लेखनी को विराम देने। देखकर सन्तोष हुआ अपना पुराना मित्र है हँसी-ख़ुशी समय बीतेगा।पर हेलो-हाइ तो दूर खोल दिया अपना पिटारा। अरे बन्धू, तुम तो भूल ही गए, न आना न जाना न फोन, क्या करते रहते हो, कहाँ हो इतने व्यस्त ?सोचा, मौका दे तब तो बोलूँ। खैर सुनते-सुनाते दो घंटे बरबाद करके चला गया। और दिमाग तो ऐसा होगया कि कलम तो पूर्ण विराम के मूड में होगयी।

           मन किया किसी से फोन करके थोड़ा रिलैक्स फील करलूँ। और नम्बर दबा दिया, पर भैया, ये तोऔर भी बड़ी मुसीबत मोल लेली।  आवाज़ आई ओ भैया, कैसे याद आगयी इस गरीब की। मिलना-जुलना ही बन्द कर दिया तूने तो ,क्या बात है सब -ठीक -ठाक तो है किसी हैल्प की ज़रुरत हो तो बता। कोई गलती हो गयी हो तो हटा उन काले बादलों को। मिलते हैं गप-शप करते हैं ,अच्छा ऐसा कर कल आजा भाभीजी को लेकर। चल रखता हूँ देर भी बहुत होगयी है।हद होगयी, दिमाग झन-झना उठा,फोन मैंने किया और याद भी मैंने ही किया और शिकायत भी मुझीसे। कौनसे काले -पीले बादल। लगा जैसे किसी बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। पर फोन-वार्ता से तो राहत मिल गई।इतना सुकून तो मिला।

         इतनी परेशानी में तो बीवी ही याद आती है तो लगादी बड़े प्यार से आवाज़ "-मैडमजी, ज़रा मिलेगी एक कप गरम-गरम चाय।" इसबार तो और महान गलती होगयी।आवाज़ आई,केवल एक छुट्टी मिलती है।( सोचा कोई बात नहीं बीवी है आगया होगा गुस्सा किसी बात पर ,चाय तो पिला ही देगी। ) लेकिन नहीं,सुनिए आगे भी। खुद ही बनालो। हर छुट्टी ऐसे ही निकल जाती है। न बाजार न शॉपिंग,न घूमना - घुमाना ,मुझे नहीं करना आज कुछ। ठीक है ,ठीक है। और कर भी क्या सकता हूँ.ठीक ही तो कह रही है।मेल करता हूँ बॉस को,कल की लीव लेता हूँ।बीवी खुश हो जाएगी।

           तुरन्त बॉस का जवाब !अरे काहेकी छुट्टी,अभी पिछले हफ्ते ही तो ली थी, काम नहीं करना है तो कल आकर रिज़ायन करदो। होगयी छुट्टी,कमाल होगया,कोई मज़ाक है क्या ! एक छुट्टी पर रिज़ायन। कलम फेंका एक तरफ। सोचा,रात भी होगयी है,सो तो सकता हूँ चैन से।

          तकिये पर सर रखा,सोने के लिए आँखों का नर्तन चल ही रहा था कि बज गयी फोन की घण्टी,बहिन का फोन-भैया ! कल राखी थी आप आये नहीं,भूखी-प्यासी शाम तक राह देखती रही और आप हैं कि न आपाने का फोन भी नहीं किया,कम से कम फोन तो कर देते। सास-ससुर,आपके बहनोई सब ही उलाहना देते रहे और फोन पर ही उसकी सुबुकियाँ शुरू। खैर,किसी तरह मनाया,गलती मानी तो उसे शांति मिली,और सबसे भी क्षमा-याचना करली। और अन्त में लेखनी को उठाया और टेबल पर रखे कलम के बक्से में ज्यों का त्यों सजाकर रख दिया।

                  तो भैया, ये शिकायतों का पुलिंदा तो जिंदगी में बढ़ता ही रहता है। ध्यान इस बात का रहे कि शिकायतों का पोटला,पुलिंदा,खज़ाना कितना भी भारी क्यों न होजाये,पर संबंधों में दरार न आने पाये।
                  सुनते रहिये,सुनते रहिये,क्योंकि जहाँ आपने अपना मुँह खोला,लेखनी नहीं बन्धुओ आपकी जिन्दगी रुक जाएगी।

                                                             -----------------






                                                         




       

Friday, 2 October 2015

---------वो ओ ओ ओ माँ है ----


वो ओ ओ ओ माँ है -----

पहचानें इनमें से आपकी माँ कौनसी हैं और उनके प्रति श्रद्धान्वित होकर आशीर्वाद ग्रहण करें,इस योग्य बनें कि उनकी पहचान आपसे हो --

-     जो उनका पेट भर कर उन्हें महसूस भी नहीं होने देती कि पिछले कितने दिनों से उसका पेट खाली है ,वो माँ है।
-     जो सब कुछ सहकर मुस्कराती रहती है ,महसूस भी नहीं होने देती कि आज उसके साथ क्या बीती ,वो माँ
      है।
-     जो चुपके -चुपके रोती है और उन्हें अहसास भी नहीं होने देती कि उसकी आँखों के आँसू सूख चुके हैं ,वो माँ है।

-     जो उनसे अलग रह सकती है ,सर्व-समर्थ है किन्तु उन्हीं के साथ रहकर उनके सुख-दुःख का हिस्सा बनना
      चाहती है ,वो माँ है।
-     जो सारी कही-अनकही बातें सहन करती है क्योंकि वो उनके दोषों में भी गुण देख लेती है ,वो माँ है।
-     जो इस अलगाव के साथ ज़िम्मेदारी निभाती है कि पता भी नहीं लगने देती कि वह उनसे कितना प्यार करती है, वो माँ है।
-     जो दिन-भर जाने कैसे-कैसे काम करके दो जून की रोटी जुटाती है ,पता भी नहीं लगने देती कि वह क्या काम करती है ,वो          माँ है।
-    जो कभी-कभी अपमान की पीड़ा को सहने में असमर्थ अपने ही घर को छोड़ भी देती है ,वो माँ है।

-    जो उन्हें इस योग्य बनाती है ,कि भविष्य में पढाई-लिखाई ,नौकरी के लिए अलग होना पड़े तो बिना किसी दुख व परेशानी के         दूर जा सकें, वो माँ है।

-   जो अपनी बड़ी से बड़ी परेशानी उनके साथ शेयर न कर कभी उनकी उलझन नहीं बढाती ,वो माँ है।

                       माँ तूने और कितने रूप अपने अंक में छुपा रखे हैं ,उन्हें भी बतादे माँ उन्हें भी ----

                                                        धन्य है तू ,धन्य है तेरा जीवन !!

                                                         --------------


      

Wednesday, 8 July 2015

मोक्ष --- एक अनोखी कल्पना ( हास्य )


एक अनोखी कल्पना  ( हास्य )

-- कभी - कभी व्यक्ति यथार्थ के चिन्तन में इतना खोजाता है कि वहाँ से निकलने को छटपटाने लगता है कि कैसे यहाँ से छुटकारा पाऊँ। ऐसी ही स्थिति  से जब एकबार मैं गुज़री तो मेरे शरारती मस्तिष्क ने सोचा आखिर इस चौरासी लाख योनियों से कैसे छुटकारा पाया जाय और तब एक अद्भुत कल्पना ने जन्म लिया  ----

सब  जानते हैं -
मोक्ष बड़ी मुश्किल है
जी करता है -
एलियन  बनकर लोगों की कल्पना में -
जीवन्त प्राणी बनूँ या -
एनीमेशन या कार्टून फिल्म का चरित्र बनूँ -
कभी चूहा ,कभी बिल्ला या खरगोश ,बन्दर ,मगर
जिन्हे सुख-दुःख का कोई ऐहसास नहीं
फिल्म ख़तम जीवन ख़तम
और इस तरह --
चौरासी लाख योनियों के
झंझट से मुक्ति पाकर मोक्ष पाजाऊँ !!
                                             ------------

Sunday, 28 June 2015

- एक माँ का अहसास

 एक माँ का अहसास
            
 
माधवी लता सी 
वसन्त वाटिका में 
उछलती -कूदती इठलाती उस - 
मासूम ,अबोध बाला  को 
अपनी माँ के दुलार से लिपटे हुए
यौवन की देहलीज़ पर कदम रखते हुए
देखा है उसने !
प्रतीक्षारत ,मानो देख रही थी  
उसमें अपने ही यौवन को पलते हुए -

कि अचानक वह बाला ठिठकी 
वसंत वाटिका में मानों बहार सी आगई 
नहीं पता उस अज्ञात यौवना को "ये क्या है ?
क्यों होता है ?"
" क्या अर्थ होता है ?"पूछ बैठी अपनी " माँ "से -
माँ ने गले लगाया ,नेत्र सजल हुए ,मुस्कराई -
समझाया उसे -
" बेटा ,ये होता है
   ये होता है "मातृत्व का प्रतीक।"
   ये होता है " माँ बनने का अहसास। "
   और वह अल्हड़ बाला उड़ चली एक फूल बनने की चाह में -

उस वृद्धा के शरीर में सिहरन दौड़ गयी और
जर्जरित काया में होने लगा
कभी भी न समाप्त होने वाले अपने ही -------अहसास ! ! !

                                           ------









  

जीवन का मर्मस्पर्शी प्रसंग ( एक हास्य- प्रसंग )


जीवन का एक मर्मस्पर्शी प्रसंग 

जिन्दगी स्मूदली चल रही थी,
कर्त्तव्य भी ईश्वरीय - कृपा से पूरे हो चुके थे ,
बच्चों की सहायिका के रूप में जिंदगी खुशहाल थी कि
जीवन में एक अवाँछनीय बदलाव आया।

अपने फौजी बेटे के साथ जाना हुआ
तब तक मैं  " मिसेज तिवारी "और "मैम" ही थी
सब आराम ,सब सुख, एक नयी जिन्दगी नया अनुभव
नए अन्दाज़ के साथ -
कभी डाइनिंग -इन -
कभी डाइनिंग- आउट-
कभी - " टी  "तो -
कभी बड़ा खाना और
कभी विशेष कार्य- क्रम में जाना-आना।

एकबार पहाड़ों के बीच घाटियों में घूमते हुए जारहे थे
वह पल यादगार बन गया -

अचानक पीछे से एक आवाज़ आई -
"गुड-ईवनिंग "मिसेज तिवारी ",गुड-ईवनिंग"मैम -
चौंकी ,मुड़कर प्रत्युत्तर दूँ तबतक एक और आवाज़ सुनाई दी -
नमस्ते माताजी !
बहुत जल्दी ही सब कुछ समझते देर नहीं लगी -
उत्तर दिया -खुश रहो बेटा !

अभिभूत होगयी ,ओठों पर मुस्कान -
इतना बड़ा सम्मान ,गौरवान्वित होगयी
इतने सारे फौजियों की माताजी !
इसके लिए तो कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ी
इस "सम्बोधन "ने तो गद्गद ही कर दिया -और
एक "मधुर-सत्य "से परिचित करा दिया।

                         --------





Saturday, 27 June 2015

खाली -हाथ

खाली हाथ

विपन्नता यानि -
दुःख ,कष्ट और विषादग्रस्त जीवन ,
छुटकारा पाने का एक सुनहरी मौका !
प्रयत्नरत मानव -
आशावान ,स्वप्नदृष्टा ,उत्साह से भरपूर
भविष्य को प्रकाशमय देखने की  चाह
न कोई चिन्ता ,न परेशानी
सिर्फ और सिर्फ एक लक्ष्य और -
एक दिन सपने साकार हुए और तब
केवल सुख ही सुख !
निराशा का अन्धकार दूर -
चैन की नींद , सन्तोष ही सन्तोष !!

पर मोहग्रस्त  इन्सान को चैन में चैन कहाँ !
पुनः उठा -
एक नयी जागरूकता के साथ
एक नए संकल्प के साथ
एक नए जोश के साथ
अनेक अभाव ,अनेक महत्वाकांक्षाएँ -
और सब कुछ प्राप्त !!

लेकिन न अब कोई सुनहरी स्वप्न
न उत्साह, न आशा ,न आशा की आशा -
थका हुआ ,हताश ,पैरों में लड़खड़ाहट !!
सब दूर ,सब कुछ दूर ,बहुत दूर -
आँखों से ओझल
अब अपना कुछ नहीं !!
 रह गए खाली हाथ !!

                  -------



Saturday, 21 March 2015

 पौत्री के जन्म दिवस का समायोजन 


           पौत्री का जन्म दिवस था। वह दस साल की होने जारही थी। मन में बड़ी उमंगें थीं उसके। एक बड़ी पार्टी का आयोजन करने के लिए मचलने लगी। आकर कहने लगी दादी,पार्टी में क्या-क्या मैन्यू रखें। मैंने कहा बेटा,आजकल की पार्टी के बारे में मैं क्या बताऊँ ,तुम्हारे खाने भी तो उलटे-पुल्टे होते हैं मैं तो उनके नाम भी नहीं जानती,तुम अपने मम्मी-पापा से पूछो न ! सुन  कर दौड़ कर गई। मम्मी से पूछा उन्होंने एक-दो सुझाव दिए,फिर पापा से भी पूछा,एक-दो सुझाव उन्होंने भी दे दिये।लेकिन पौत्री को संतुष्टि नहीं हुई।  मुझे बताया दादी मुझे कुछ नहीं ठीक लगा आप ही  बताओ। मैंने उसे कहा बेटा ऐसा कर,तुम्हारे जो बहुत करीबी दोस्त हों उनसे मिलकर डिसाइड करो उनकी बात तुम्हें ज़रूर पसंद आएगी।  मेरी बात उसे एकदम भागई।
    अपने चार-पांच दोस्तों को समय देकर घर बुलाया और उन्हें अपनी समस्या बताई। उनसे विचार-विमर्श किया।सुनकर बच्चे बड़े खुश हुए ,बड़े उत्साहित हुए। पहले वैन्यू निश्चित किया कि जी आई पी मॉल में जन्म दिवस मनायेंगे ,उसके बाद मिलकर मैन्यू डिसाइड किया कि स्नैक्स में अमुक-अमुक चीज़ें होंगी। फिर बड़ा सा केक जिसे ऑर्डर देकर विशेष प्रकार का डिजाइनदार  बनवाया जायेगा। बलून भी रंग बिरंगे होने चाहिए। अब बारी थी कि समय क्या हो ,किसी ने कहा शाम छह बजे तो कोई बोला नहीं-नहीं ठण्ड होजायेगी तो कोई बोला शाम चार बजे ठीक रहेगा ,अचानक एक आवाज़ आई लंच का समय रखते हैं सन्डे है।सब बोले यही ठीक  रहेगा ,मम्मी -पापा को भी कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। वे छोड़ भी जाएंगे और आराम से ले भी जायेंगे।
    तभी एक आवाज़ आई अरे भाई किसी को सॉफ्ट-ड्रिंक की भी याद है ,वह भी  होनी चाहिए। हम तो बच्चे हैं चाय-कॉफी थोड़े ही पीते हैं। सबने सहमति जताई बोले- अच्छी याद  दिलाई पर कौनसी ? एकदम शांति छागई सोचने लगे। और तभी  चारों तरफ से आवाज़ें आने लगी। कोई बोला-लिम्का तो कोई पैप्सी ,कोई स्प्राइट ,कोई थम्सअप ,कोई कोका-कोला कोई माज़ा सब अपनी-अपनी पसंद बोलने लगे। थोड़ी देर तो सोचा कि  बच्चों की पसंद है क्या करें। अचानक दिमाग में आया ऐसा करते हैं ,पर्चियां निकलबाते हैं जिस ड्रिंक के वोट ज्यादा होंगे उसी का ऑर्डर देंगे। ऑर्डर  देने में भी कोई मुश्किल नहीं होगी ,दूकान वाले को भी दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा। सबने सहमति जताई। पर्चियाँ तैयार की गईं और एक प्लेट में डालकर एकबच्चे से उठवाई  गई और उसने वह मुझे दी और बोला लो दादी ,खोलो जो भी ड्रिंक्स का नाम इसमें निकलेगा हम सबको वही मंज़ूर होगा अब आप खोलिए। मैंने एकबार सबकी ओर देखा और फिर पर्ची को खोला ,उसमें नाम  निकला माज़ा । यानि सर्वाधिक बच्चों की पसंद थी माज़ा । सभी खुश।
 दूसरे दिन सारी तैयारियाँ बच्चों ने बड़े उत्साह के साथ कीं। ठीक लंच के समय मन पसंद केक काटा गया। बर्थ डे गीत गाया और निराले अंदाज़ में माज़ा की बॉटल खोलकर पार्टी  का प्रारम्भ हुआ। और गिफ्ट एक्सचेंज के साथ पार्टी का समापन हुआ।आशीर्वाद के साथ बच्चों को उनके अभिभावकों के साथ विदा किया। 
  उसदिन जो पार्टी का आनंद बच्चों ने उठाया हमें भी याद रहेगा।नृत्य-गान सभी ने मन को जीत लिया। 


                                        ******