एक माँ का अहसास
माधवी लता सी
वसन्त वाटिका में
उछलती -कूदती इठलाती उस -
मासूम ,अबोध बाला को
अपनी माँ के दुलार से लिपटे हुए
यौवन की देहलीज़ पर कदम रखते हुए
देखा है उसने !
अपनी माँ के दुलार से लिपटे हुए
यौवन की देहलीज़ पर कदम रखते हुए
देखा है उसने !
प्रतीक्षारत ,मानो देख रही थी
उसमें अपने ही यौवन को पलते हुए -
कि अचानक वह बाला ठिठकी
वसंत वाटिका में मानों बहार सी आगई
नहीं पता उस अज्ञात यौवना को "ये क्या है ?
" क्यों होता है ?"
" क्या अर्थ होता है ?"पूछ बैठी अपनी " माँ "से -
माँ ने गले लगाया ,नेत्र सजल हुए ,मुस्कराई -
समझाया उसे -
" बेटा ,ये होता है
ये होता है "मातृत्व का प्रतीक।"
ये होता है " माँ बनने का अहसास। "
और वह अल्हड़ बाला उड़ चली एक फूल बनने की चाह में -
उस वृद्धा के शरीर में सिहरन दौड़ गयी और
जर्जरित काया में होने लगा
कभी भी न समाप्त होने वाले अपने ही -------अहसास ! ! !
------
कि अचानक वह बाला ठिठकी
वसंत वाटिका में मानों बहार सी आगई
नहीं पता उस अज्ञात यौवना को "ये क्या है ?
" क्यों होता है ?"
" क्या अर्थ होता है ?"पूछ बैठी अपनी " माँ "से -
माँ ने गले लगाया ,नेत्र सजल हुए ,मुस्कराई -
समझाया उसे -
" बेटा ,ये होता है
ये होता है "मातृत्व का प्रतीक।"
ये होता है " माँ बनने का अहसास। "
और वह अल्हड़ बाला उड़ चली एक फूल बनने की चाह में -
उस वृद्धा के शरीर में सिहरन दौड़ गयी और
जर्जरित काया में होने लगा
कभी भी न समाप्त होने वाले अपने ही -------अहसास ! ! !
------
No comments:
Post a Comment