जीवन का एक मर्मस्पर्शी प्रसंग
जिन्दगी स्मूदली चल रही थी,
कर्त्तव्य भी ईश्वरीय - कृपा से पूरे हो चुके थे ,
बच्चों की सहायिका के रूप में जिंदगी खुशहाल थी कि
जीवन में एक अवाँछनीय बदलाव आया।
अपने फौजी बेटे के साथ जाना हुआ
तब तक मैं " मिसेज तिवारी "और "मैम" ही थी
सब आराम ,सब सुख, एक नयी जिन्दगी नया अनुभव
नए अन्दाज़ के साथ -
कभी डाइनिंग -इन -
कभी डाइनिंग- आउट-
कभी - " टी "तो -
कभी बड़ा खाना और
कभी विशेष कार्य- क्रम में जाना-आना।
एकबार पहाड़ों के बीच घाटियों में घूमते हुए जारहे थे
वह पल यादगार बन गया -
अचानक पीछे से एक आवाज़ आई -
"गुड-ईवनिंग "मिसेज तिवारी ",गुड-ईवनिंग"मैम -
चौंकी ,मुड़कर प्रत्युत्तर दूँ तबतक एक और आवाज़ सुनाई दी -
नमस्ते माताजी !
बहुत जल्दी ही सब कुछ समझते देर नहीं लगी -
उत्तर दिया -खुश रहो बेटा !
अभिभूत होगयी ,ओठों पर मुस्कान -
इतना बड़ा सम्मान ,गौरवान्वित होगयी
इतने सारे फौजियों की माताजी !
इसके लिए तो कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ी
इस "सम्बोधन "ने तो गद्गद ही कर दिया -और
एक "मधुर-सत्य "से परिचित करा दिया।
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