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Sunday, 3 September 2017

एक हास्य परिकल्पना ---


   एक हास्य परिकल्पना ---

मन तो विचारशील होता है वह सदैव विचारों के ताने-बाने में ही उलझा रहता है। व्याकरण भी
इसी बात की पुष्टि करता है कि दिमाग़ कभी खाली नहीं रहता --इसी विचार शृंखला में दिमाग में
एक विचार कौंधा -दिल के कोने से आवाज़ आयी -

बच्चो,अब मिलेंगे अगले जन्म में
अच्छे बनके
अपने पापा से भी कहना वो भी
को-ओपरेटिव मूड में मिलें
कोई टोका-पीटी नहीं चलेगी
सब अच्छे-अच्छे काम करेंगे
एक दूसरे का सम्मान करेंगे ,प्यार से रहेंगे
कोई छोटा नहीं होगा,कोई बड़ा नहीं होगा। तभी -

एक दूसरे  विचार ने दस्तक दी -
क्यों भई !
ये भी कोई जीना है
न तू-तू न मैं-मैं,   ना , ना ऐसे नहीं बात बनती
इस जन्म में बड़े ने बड़प्पन दिखाया ,
उस जन्म  में मैं दिखाऊँगा।
इस बार मम्मी के आगे बोलने की हिम्मत नहीं हुई
अगले जनम में  बोलेंगे और अपनी मन-मर्जी चलाएँगे।
इस जन्म में हर समय पापा की ही तू ती बोली
उस जन्म में २१वीं सदी के बच्चे बनेंगे
सामने कोई डर-वर नहीं होगा,डट कर सामना करेंगे।

तभी एक विस्फोटक आवाज़ ने पुनः ध्यान भंग किया
ऐसा कुछ नहीं होगा
सभी शान्त होकर अपने मन की बात रखेंगे
एक दूसरे को सुनेंगे और समझेंगे और
कोई बड़े घर की, बड़े बनने की तमन्ना नहीं रखेगा
सब्र से जीएँगे और
एक छोटे से घर में एक दूसरे का चेहरा देखते हुए
रात्रि नमस्कार कर सोएँगे
सुबह प्रणाम करते हुए उठेंगे।
ऐसा होगा हमारा अगला जन्म  !!

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