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Friday 16 October 2020

अभ्यास

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ा कमल खरगोश गमला घास कबूतर कमला विमला कुशल 

चरखा छतरी  ( ऊपर के लिए कर्सर को लेफ्ट और बैकस्पेस क्लिक करें) 

जलेबी झंडा आप        (पूरा नीचे लेन के लिए लेफ्ट में कर्सर और फिर एंटर )

अस टट्टू ठठेरा डलिया ढक्कन 

तलवार  थाली दवात धनुष

 
पतंग फल बकरी भ

कर्सर कमल खरगो

आप कहाँ haiab 

 

 



आम 


Wednesday 14 October 2020

रक्त सम्बन्ध !


रक्त सम्बन्ध !

सुना है खून का रिश्ता सबसे बड़ा,फिर अचानक -
आपस में कटुता, भय, संकोच, लज्जा क्यों -
और कोई आत्मीय न  मिलने पर -
आत्महत्या ! यदि अपने ही घर में कुछ कहने से पहले 
इतना सोचना पड़े कि क्या करूँ 
तो ये कैसा रिश्ता और 
कहने पर भी -
उत्तर और अधिक तनावपूर्ण हो,तो -----!
इसलिए लगा कुछ बदलाव चाहिये 
नया दौर है,
समाधान ढूँढना होगा, तब समझ आया -
समाधान है,एक सच्चा मित्र !

हाँ, यही है वो सम्बन्ध -
उसमें उक्त कोई दोष नहीं होता -
केवल ईमानदारी,निर्मल जल जैसी पारदर्शिता,
कोई छल-कपट,दुराव-छिपाव या -
कृत्रिमता नहीं होती -
एक अच्छा मार्ग दर्शक भी ,
आत्महत्या जैसी कायरता से तो बचा पायेगा !! 

फिर क्यों नहीं हर सम्बन्ध में मैत्री-भाव स्थापित करें ??
माता हो,पिता हो,बहिन हो,भाई हो,
या फिर कुछ और -
जो आदर प्रेम विश्वास पारिवारिक रिश्तों में होता है,
वो तो मित्र में भी कुछ अन्य खूबियों के साथ होता है ,
मित्र से कोई डर,संकोच,नहीं होता।
केवल अपनापन ही अपनापन !
खुले दिल से, मन से,अपनी बात रखें ,

प्रयासरत रहकर रिश्तों में - 
मित्रता का ही भाव स्वीकार करें , 
मुश्किल है लेकिन असम्भव बिलकुल नहीं !!

                       ****

 
  
  



Saturday 26 September 2020

अविस्मरणीय मधुर पल - पापा के साथ बिताये मधुर पल

अविस्मरणीय मधुर पल - पापा के साथ बिताये मधुर पल 

     

सौभाग्यशाली हूँ ,
मुझे जिन्दगी में वे पाँच वर्ष  मिले जब मैं पापा के साथ थी। मानस पटलपर अंकित कुछ यादें ऐसी हैं जो कभी धूमिल नहीं हो सकतीं। वे दृश्य जिन्हें आज मेरी लेखिनी लिखने को आतुर है ---एक शाम पापा मुझे घुमाने शहर लेगये -----

दृश्य - १

लिखते समय भी एक एक पल मेरी आँखों के सामने है। हुआ यों,एक दिन मेरे पापा बोले , राजे चलो , कहीं घुमाके लाते हैं ,कहाँ चलोगी ? मेरे बाल-मन ने कहा-दूर क्षितिज की ओर जहाँ अस्त होते हुए सूर्य की लालिमा है ,जहाँ धरती-आसमान मिलरहे हैं। और पापा ने उसी दिशा में अपनी साइकिल चलादी , पर जैसे ही साईकिल आगे बढ़ी , साइड के बड़े गेट से भैंसों का झुण्ड साइकिल के सामने , बचने के लिए पापा ने साइकिल को घुमाया तो मेरा पैर साइकिल के पहिये में आगया , मेरा पैर लहू-लुहान। एड़ी बुरी तरह कट गयी। एक हाथ से साइकिल दूसरे हाथ से मुझे सँभाला। घर लाकर बुआ को आवाज़ लगायी ,घुटने तक पैर की पट्टी की। आज भी एड़ी पर निशान है जो कभी भूलने नहीं देता। और मुझे भाग्यशाली होने का एहसास करता है।

दृश्य - २

शाम को भल्ले वाले को लाना,ठण्डाई घोटना , पीना - पिलाना , दूध से भरा ग्लास माँ के रोकने पर भी मेरे हाथ में देदेना,बचे हुए को खुद पीजाना ,ये वो यादें हैं जिन्हें भोगने का मात्र मुझे ही अवसर मिला।

                                                      ***




Friday 17 January 2020

जीवन का सार


               जीवन का सार

जीवन की ये कैसी बाध्यता !
क्या स्वीकार्यता ही जीवन है ?
क्या कृत्रिम भाव-शून्यता ही शेष रह गयी है?
क्या ज़िन्दगी के इस पड़ाव का ये भी आवश्यक पहलू है?
क्या यही ज़िन्दगी का सार है?
सब को आनंद देना ही जीवन है ?
यही सच्चा सुख या जीवन है ?
लगता तो ऐसा ही है !
किसी के कष्टों को दूर करने की कोशिश में ही सुख की " इति " है।
विश्वास नहीं होता,पर सत्य यही है।
जीवन का सार भी यही है।
"अपनी अच्छाइयों को समक्ष रखना दोष है और 
दूसरों की अच्छाइयों को समक्ष रखना ही सही है।"
यही जीवन का सार है।
जीवन की सोच बदल गयी है ,
इसी "बाध्यता" को समझना होगा।
इसकी अनिवार्यता समझनी होगी।
सबको सुखी देखना ही "परम-सुख" है।
असंभव है, पर सम्भाव्य में ही "परम-आनन्द"है।
मुस्कराते हुए स्वयं को भुला देना ही सही है।
क्योंकि यही जीवन का सार है।

                         ******



   




Sunday 6 October 2019

मेरी बिट्टू के साथ की मधुर यादें

       मेरी बिट्टू 

    ज़िन्दगी की शाम होती है आलीशान ,
    ना कोई  काम न कोई धाम,
    खाने और सोने का काम,
    मैं बुड्ढी होना चाहती हूँ।
तरह से शब्दों में पिरो कर आनन्द के काबिल बनाया है।

आज वो चौदह वर्ष की हैं अब कहती हैं , नहीं मैं बुड्ढी नहीं होना चाहती।

                             ****

   जब मेरी बिट्टू लगभग ढाई-तीन साल की होगी ,मेरे साथ एक मैगज़ीन के पेज पलट रही थी ,कि 
अचानक एक पेज , जिस पर एक मॉडल का चित्र , जिसमें वह पाश्चात्य वेश-भूषा के वस्त्र 
पहने हुए थी , देखते ही बोली -" देखो दादी, कैसे टूटे फूटे कपड़े  पहने हुई है।" सुन कर हंसी आयी। 
आज जब वो टीन एज में हैं , मैं याद दिलाती हूँ तो हँसती हुई कहती है , " मुझे तो टूटे-फूटे कपड़े अच्छे लगते हैं।"
मुझे भी हँसी आगयी  , सोचा ये है बदले हुए वातावरण या समाज का प्रभाव। समाज के साथ चलना ज़रूरी और 
ठीक भी है। उसने तो ठीक ही कहा। 

                                 ***

Sunday 29 September 2019

ऐसी थी वो ----

                      ऐसी थी वो --------
        

          अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी  है ,सकारात्मक होना।जीवन में जो कुछ मिलता  है,उसे सोचने के दो तरीके हैं नेगेटिव और पोज़िटिव।दोनों ही व्यक्तित्त्व के अंग हैं। अंतर यही है कि पॉज़िटिव सोच आपको संतुष्ट व प्रसन्न रखती है , शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से। ईश्वर ने उसे नकारात्मकता से बचाया है,इसका अर्थ ये नहीं कि वह कभी दुखी नहीं होती लेकिन कुछ ही समय के बाद वह फ्रेश होजाती ,भूल जाती,याद रहता कि उस समय साथ कौन थे। किसने सँभाला, किसने किस तरह सहायता की। कभी कभी तो लगता है मानो उसे किसी  एक देवदूत ने उठा लिया हो और  सारी ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारी लेली अपने ऊपर ।

    जिन परिस्थितियों में समय व्यतीत हुआ वे चाहे कैसी भी रही हों,पढ़ाई से जुड़ी या फिर खाने-पीने से जुड़ी या फिर घर के काम धाम से,कभी भी उपेक्षित महसूस नहीं किया उसने । सब का अहसान ही माना। सबके बीच खेलना-कूदना ,हँसना-बोलना और खुश रहना।वो कहती है  कि मुझे काम का आलस्य न था दूसरी बात वो कहती कि मुझे काम करने का शौक था इसलिए जीना बहुत आसान होगया था।  

यहां तक कि यदा-कदा अपने बचपने में उससे ही कुछ ग़लत व्यवहार हुआ जिसे आज भी याद कर वो दुखी होती है, पर कभी किसीने कुछ नहीं कहा ये भी उसे आज याद है. । आज जिस योग्यता व सम्मान के साथ वो जी रही है तो वो उन कठिनाइयों में व्यतीत किया समय ही इसका मुख्य कारण है।वो समय कष्ट या दुःख का नहीं वरन जीवन  को सुख पूर्वक जीने का मज़बूत आधार मानती है वह । बड़ा सम्बल मानती है उस समय को।परिवार में हर व्यक्ति से बहुत प्यार व सम्मान मिला और वो आज भी प्राप्त है।

    उस समय को व्यतीत करने में सकारात्मकता  लाने वाले परम परमेश्वर,भगवान ही थे जो आज भी हैं। न उसने कभी किसी में  बुरा देखा, न सोचा  भगवान  के बताये रास्ते पर चलती गयी। इसीलिए विगत जीवन की बहुत सारी कड़वी  बातें जब कोई कहता है,सुनाता है उसे तो " ईमानदारी से कहती है कि वे बातें मुझे याद ही नहीं हैं या उन्हें मैं अधिक महत्व ही नहीं देती।" वे परिस्थितियाँ आगामी यानि वर्तमान जीवन का  आधार  बनी और उसे जीने  की कुशलता ,जीने की कला  सिखाई। आज वो स्वयं को  सुखी,अनन्यतम सुखी  मानती है । कहती है कि "मुझ जैसा भाग्यशाली कोई नहीं क्योंकि भगवान की मुझ पर विशेष कृपा रही है मुझे सबसे सीखने को मिला,सबकी अच्छी बातें मुझे याद रहीं और कोशिश भी है,आज भी अनुसरण करने  की।"

                                                            ॐ नमः शिवाय -----

                                                                           ***

                                                 

            

Saturday 18 August 2018

best half प्रकाशित nbt


बेस्ट हाफ ( nbt की माँग पर )

जन्म पत्री नहीं मिली कोई बात नहीं ,
राहु - शनि की दशा आती रही कोई बात नहीं,
लड़ाई-झगड़े होते रहे कोई बात नहीं ,
बात-चीत बंद होगई  कोई बात नहीं,
पर कुछ तो है
जो ३६ साल के बाद भी हम साथ-साथ हैं।
क्योंकि हम बेस्ट-हाफ़ हैं।

 इत्तिफाक से मिले इस -शीर्षक बेस्ट-हाफ के अलावा अन्येतर इतने कम शब्दों में जीवन को सिमेट कर रख देना मुश्किल था।

 धन्यवाद nbt !!

       ( २०१० में प्रकाशित )

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