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Tuesday, 8 February 2022

मानसिक तनाव 

क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टाः,रुष्टा तुष्टा क्षणे क्षणे 

अव्यवस्थित चित्तानां प्रसादोsपि भयंकरः। 

( अर्थात क्षण क्षण में रुष्ट और तुष्ट होने वालों की प्रसन्नता भी खतरनाक होती है। )

यहाँ एक ऐसे ही पात्र के व्यक्तित्व का वर्णन हैकिया गया है। 

   ज़ोर ज़ोर से चीखने की आवाज़ सुनकर सब दौड़े,जाके देखा तो सब हक़-बके रह गए। कमरे में रखा सब सामान तोड़-फोड़ दिया,सारी वस्तुओं को तितर-बितर कर दिया।रो रही थी चिल्ला रही थी,समझ में नहीं आया ये सब क्यों किया।२५-२६ वर्ष की आयु,शिक्षित,नौकरी पेशा,अचानक ये हरकत ! पूछने पर कहा - पता नहीं,मुझे नहीं पता और दिखा-दिखाकर कहा - देखो ये भी तोड़ दिया,ये फाइलें भी फाड़ दीं,अलवारी के कपड़े भी सब बाहर फेंक दिए और फिर रोना चिल्लाना शुरू ! 

          किसी के कुछ समझ नहीं आया इसे क्या हुआ थोड़ी देर में सब नार्मल उसने क्या किया उसे भी कुछ नहीं पता।नित्य-प्रति के कार्य किये और फिर जाकर अपने शयन-कक्ष की बत्ती बुझा दरवाज़ा बंद कर लिया। 

         ये सारा काण्ड लगभग ४-५ घंटे चला शाम का समय था सब बस्तुएँ यथावत व्यवस्थित कर दीं। पर समस्या जटिल थी,आखिर ऐसा क्यों किया ? दिमाग में चल क्या रहा है,विचार विमर्श करते सभी अपने अपने कक्ष में चले गए। लगा कोई सपना देखा होगा। 

       लेकिन ये क्या २-३ दिन बाद फिर वही सब कुछ रोना-चिल्लाना सारा सामान अस्त-व्यस्त कर दिया।और कुछ देर बाद पूर्ववत सामान्य स्थिति। अब लगा समस्या जटिल ही नहीं विकट है। उसके ऑफिस जाने के बाद वातावरण गंभीर हो गया और किसी मनःचिकित्सक से परामर्श लेना तय हुआ।मनः चिकिस्तक के पास जाकर माता-पिता ने पूरा वृत्तान्त सुनाया। डॉ ने अनेक प्रश्न किये किन्तु एक प्रश्न के उत्तर पर डॉ अटक गया। जानकारी में जो डॉ को जो ज्ञात हुआ वो इस प्रकार है ------बताया गया --

    तीन वर्ष पहले उसका तलाक हुआ था। विवाह आपसी रज़ामंदी से हुआ था,कोई समस्या नहीं थी।लड़का जिसका नाम सुनील था,सुन्दर था,हँसमुख था,पढ़ा-लिखा,समझदार अच्छी कम्पनी में ऊँचे पद पर आसीन था यानि उसमें कोई कमी नहीं थी। रीना उसकी पत्नी भी पढ़ी लिखी समझदार एक कम्पनी में अच्छे वेतन पर काम करती थी।विवाहोपरांत सब कुछ ठीक चल रहा था.किन्तु समाज में पति का  सम्मान  और प्रतिष्ठा  रीना को चुभने लगी।गुरूर और अहंकार रीना पर हावी होने लगा।मन में विद्वेष और ईर्ष्या घर करने लगी। पहले चुप-चुप रहने लगी फिर किसी न किसी बहाने से झगड़ा करने लगी।बात-बात पर व्यर्थ ही सुनील का अपमान और तिरस्कार भी करती।सुनील नहीं समझ पा रहा  था कि वो ऐसा क्यों कर रही है, वो उसे बहुत प्यार करता था उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करता।रीना के माता-पिता भी उसे समझाते लेकिन उसके दिमाग का फितूर कम नहीं हुआ अन्ततः बात तलाक पर ही जाकर रुकी। 

    अब रीना माता-पिता के पास थी,कार्य रत थी,संतुष्ट व खुश दिखाई देती थी पर अब उसकी ये समस्या शुरू हो गयी है।डॉ ने सारी बात बड़े ध्यान से सुनी,एक एक बिंदु पर विमर्श किया,समाधान के लिए डॉ ने  कुछ समय माँगा।इसके बाद लगभग छः महीने तक किसी ने किसी से कोई संपर्क नहीं किया। डॉ ने बहुत सोच-विचार कर सुनील से सम्पर्क किया और ज्ञात हुआ वो आज भी रीना को बहुत प्यार करता है।सुनील से बात करके डॉक्टर  को कुछ सकारात्मक संकेत दिखाई दिए। कुछ उम्मीद की किरण जगी। डॉ की सलाह पर सुनील ने रीना की ही कम्पनी ज्वाइन करली बस यही था रीना की बीमारी का इलाज। आयु की अपरिपक्वता की बीमारी को परिपक्वता की  समझदारी ने दूर किया। 

    रोज़ ही दोनों का मिलना,एक दूसरे की ओर पुनः आकर्षित होना,मूक हाव-भावों के  सम्प्रेषण ने दोनों को एक दूसरे के निकट ला दिया। ये क्रम छह महीने चला होगा और तब दोनों ने अपनी समझदारी से बिना किसी को घर में बताये तलाक-मुक्त होने की सभी औपचारिकताएँ पूरी कीं।और कोर्ट के सब पेपर लेकर सबसे पहले आभार सहित गिफ्ट लेकर डॉ के पास पहुँचे कुछ देर बैठ कर,डॉ के साथ ही माता-पिता के पास घर पहुँचे और एक मीठी मुस्कान के साथ कोर्ट के पेपर प्रस्तुत किये।ये मुस्कान अपने आप में मूक भाषा में बहुत कुछ  कह रही थी।और इस प्रकार बिखरे हुए दाम्पत्य-जीवन की पुनः एक नयी शरुवात हुई ।हर्ष-पूर्वक माता-पिता ने शुभ कामनाओं के साथ विदा कर भगवान को धन्यवाद दिया। 

     देखते रहे माता-पिता बेटी दामाद को एक साथ उनके नए आशियाने की ओर जाते हुए  ------

        अल्पायु और युवावस्था का आवेश कभी-कभी जीवन में इस प्रकार के मानसिक तनाव को जन्म दे देता है।पर हमेशा परिणाम सुखद ही होगा या दुःखद ही होगा ये आवश्यक नहीं। 


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