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Tuesday, 15 June 2021

कथा : ध्रुव

ध्रुव  :  एक पौराणिक कथा       

      राजा मनु और सतरूपा के दो पुत्र थे,प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं,सुरुचि और सुनीति।सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र नाम ध्रुव था। एक बार ध्रुव खेल कर आये तो वो पिता की गोदी में बैठने की कोशिश करने  लगे लेकिन तभी उनकी विमाता सुरुचि ने उन्हें डाँटा और कहा "इस गोदी में तुझे बैठने का अधिकार नहीं है,अगर तुझे इस गोदी में बैठना है तो जाकर भजन कर,और मेरा पुत्र बन तब तुझे इस गोदी में बैठने का अधिकार मिलेगा।"ध्रुव रोते हुए अपने माता के पास आये,और सारी व्यथा सुनाई। सुनीति ने ध्रुव को समझाया और कहा - बेटा,उन्होंने ठीक ही तो कहा है तुम्हें जो वस्तु चाहिए भगवान से माँगो वही  तुम पर कृपा करेंगे,तुम्हें प्रेम से बुलाएँगे,गोदी में बिठायेंगे और तुम्हारी प्रिय वस्तु भी तुम्हें प्रदान करेंगे। अब तुम वन में जाकर नारायण का भजन करो।  

       माँ की आज्ञा पाकर ध्रुव वन में भगवान की खोज के लिए निकल पड़े।रास्ते में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन वे घबराये नहीं आगे बढ़ते ही रहे। जब वे वन के रास्ते में भटक रहे थे तभी उन्हें नारद जी मिले,ऋषि नारदजी ने देखा पाँच साल का बच्चा यहाँ क्या कर रहा है,जानने के लिए ध्रुव के पास आये और पूछा-बच्चे ! तुम यहाँ घने जंगल में क्यों घूम रहे हो ? ध्रुव ने कहा - मैं यहाँ नारायण की खोज पर निकला हूँ ,क्या आप मुझे उनका पता बतायेंगे। ऋषि नारद जी बोले - बेटा ये कार्य तो बहुत कठिन है , बड़े बड़े ऋषि-मुनि भी नहीं कर पाए , तुम अभी बहुत छोटे हो,नहीं कर पाओगे,अभी तुम घर जाओ,अगर माँ ने कुछ कह दिया तो उनकी बात का बुरा नहीं मानते। एकबार फिर से विचार करलो। ध्रुव-बोले ,महाराज आप मेरा सहयोग कर सकें तो करिये वार्ना मुझे सलाह मत दीजिये। मैं ये रास्ता नहीं छोड़ने वाला हूँ। ध्रुव का दृढ़ संकल्प सुन कर,ऋषि बहुत प्रभावित हुए। और उन्हें बिना ही दीक्षा माँगे अपना शिष्य बना लिया। 

         नारद जी ने कहा - पुत्र मैं तुम्हें एक मन्त्र देता हूँ,वृन्दावन जाकर इस मन्त्र का जप करो.और मन से श्री भगवान की सेवा करना,मंत्र है "ॐ नमो वासुदेवाय " ध्रुव  जी वृन्दावन में मधुवन जाकर भगवान की साधना करने लगे। तपस्या में अनेक बाधाएँ  आयीं पर ध्रुव को कोई न  डिगा पायी।इंद्र देव ने भी बहुत तरह से उनकी तपस्या को रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि उन्हें लगता था कि ध्रुव उनका सिंहासन प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रहे हैं, लेकिन ध्रुव अचल अटल जप करते रहे। अन्न-जल भी छोड़ दिया ,आँधी-तूफ़ान किसी से बिना घबराये तप करते रहे।

   तब एक दिन ध्रुव को महसूस हुआ कि उनके अन्दर भगवान जी आगये हैं वो अचानक चीख उठे-गुरुदेव गुरुदेव ! आप कहाँ है ! तभी नारद जी प्रकट हुए बोले पुत्र क्या हुआ, ध्रुव बोले-गुरु जी, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वासुदेव मेरे अंदर हैं,नारद जी बोले-तो फिर तुम्हारी साधना पूरी हुई ,भगवान् के दर्शन तो होगये, अब घर जाओ। ध्रुव बोले - नहीं ,मुझे तो उनको अपने सामने देखना है,मैं तब-तक घर नहीं जाऊँगा जब-तक मुझे मेरे प्रश्नों के जबाव भगवान् से नहींमिल जाते।नारद जी ने कहा - पुत्र ये तो बहुत कठिन है। इसके लिए तो और भी कठिन  तपस्या करनी होगी। ध्रुव बोले - मैं सब करूँगा भगवान् से मिलने के लिए मैं सब करूँगा,आप बताइये तो सही। नारद जी  ने कहा इसके लिए तुम्हे सांस रोकनी होगी ध्रुब बोले-वो कैसे !नारद जी ने कहा-ॐ बोल कर लम्बी सांस खींचनी होगी। ध्रुव बोले- मैं करूँगा,और ध्रुव ने अपनी वो तपस्या शुरू करदी। उनकी तपस्या शुरू करते ही प्रकृति के चर-अचर,जीब जंतु,पशु पक्षी सभी स्थिर होगये सबकी जान मुश्किल में।

       सभी देवता भागे-भागे ब्रह्मा जी के पास रक्षा के लिए पहुँचे सारी  व्यथा सुनाई, ब्रह्मा  जी बोले- ये काम तो वासुदेव का है वहीँ चलते हैं और जाकर भगवान् को सारी परेशानी बताई,अब भगवान् को चिंता हुई पहुँचे बालक ध्रुव के पास। तभी ध्रुव को पुनः अपने अंदर श्री वासुदेव महसूस हुए,पुकारने लगे वासुदेव वासुदेव आप कहाँ हैं !वासुदेव बोले - पुत्र मैं यहाँ हूँ ,तुमने पुकारा मैं आगया ,देख कर ध्रुव स्तम्भित हुए, भगवान बोले - पुत्र अब तुम साँस लो ध्रुव के सांस लेते ही सब प्रकृति प्राणियों  में चेतना आगयी जीवन का संचार होगया। भगवान बोले-अब तो तुम्हें मेरे दर्शन होगये, तुम घर जासकते हो। ध्रुव ने कहा - नहीं,अभी मैं घर नहीं जाऊँगा पहले आपको मेरे प्रश्नों का जबाव देना होगा। प्रश्न ? कौनसे प्रश्न , पूछो ,क्या पूछना है.--आप बताइये "मेरी छोटी माँ मुझे अपना पुत्र क्यों नहीं मानतीं ?

बताइये - वो मेरी माँ को दासी क्यों मानती हैं ?

बताइये - उन्होंने मुझे मेरे पिता की गोदी से क्यों उतारा ?

बताइये - मेरे पिता ने ऐसा करने से उन्हें क्यों नहीं रोका ?

भगवांन बोले-अरे अरे अरे इतने सारे प्रश्न !बताओ,तुम्हें सबसे पहले किस प्रश्न का उत्तर चाहिए ? 

ध्रुव ने कहा - उन्होंने मुझे अपनी गोदी से क्यों उतारा ?

भगवान् ने कहा- अच्छा मेरे पास आओ,और पास आओ और भगवान् ने अपनी गोदी में बिठालिया,उनके सर पर प्यार से हाथ फेरा,और पूछा - और किस प्रश्न का उत्तर चाहिए ?

ध्रुव ने कहा - वासुदेव ! अब मुझे कुछ नहीं चाहिए,अब मुझे सब मिलगया। 

भगवान् ने कहा- तो अब घर जाओ। 

ध्रुव ने कहा - अब मुझे घर नहीं जाना।

भगवान् ने समझाया - पुत्र अभी तुम्हें माता-पिता की सेवा करनी है। समाज की सेवा करनी है। फिर संसार की सेवा करनी है। और उसके बाद वो ऊपर देखो आकाश में मैं तुम्हें वहाँ पर पहुँचाऊँगा जहाँ इतनी छोटी उम्र में कोई नहीं पहुँचा। अब चलें घर।तभी नारद प्रकट हुए और बोले- मैं ध्रुव को घर छोड़के आता हूँ। भगवान् बोले- नहीं महर्षि-हम भी चलेंगे ध्रुव को छोड़ने। उसका बाद ध्रुव ने पहले भगवान् के आदेश का पालन किया।और उसके बाद भगवान ने ध्रुव को अपने परम धाम पहुँचाया।  

 इस प्रकार ध्रुव ने अपने संकल्प से भगवान् को प्राप्त किया। और भगवद्धाम पहुँचे।  

 

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