सात दशकों से उलझी औत्सुक्य भरी अनबूझ पहेली को यकायक एक मनहूस खबर ने एक ही झटके में सुलझा दिया।
दिसम्बर 16.12.2020 उसके दिवंगत होने से तसवीर एकदम दर्पण की तरह साफ़ होगयी। लगा जैसे समुद्र की गहराई को चीर कर सारे रहस्य उजागर होगये हों। सब कुछ चल-चित्र की भाँति स्पष्ट होगया।उम्र के सात दशक तक इस पहेली ने मन को उलझाए रखा था;अनेकों प्रश्न, क्या सत्य,क्या असत्य। उलझनों के जाल में फँसा मन उम्र के दशकों पार करता रहा और देखता रहा अपने बिखरते हुए परिवार को ; पर अब सब कुछ साफ़ !! कोई प्रश्न नहीं,कोई जिज्ञासा नहीं,कोई पहेली नहीं ! सुन्दर चेहरे में छुपी विद्रूपता अचानक स्पष्टतः गोचर होगयी।
लगा ये संपत्ति,दौलत इंसान को इतना गिरा देती है कि वो भूल जाता है कि वो कितना जघन्य पाप करने जारहा है।इस दौलत का नशा माँ को भी इतना स्तर हीन कार्य करने पर विवश कर देता है कि वो भी ये भूल जाती है कि वो इन्सान है, भगवान नहीं है। विश्वास न होने पर भी करना पड़ा अब ! सुना था पापा को उनकी सौतेली माँ ने कुछ खिला दिया था जिसका उनके मनो-मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने काम पर भी जाना बंद कर दिया था। माँ ने बताया था मेरी छोटी बहिन को भी अफ़ीम खिलवा कर सुलवा देतीं थीं।
ये सब कही सुनी बातें थीं। पर माँ को तो दादी ने ही कहा था कि तीन-तीन लड़कियों का बोझ हम कैसे संभालेंगे। जब ये बात नानाजी ने सुनी तो उन्होंने माँ सहित हम सबको अपने पास ही बुला लिया।(कुछ समय बीतने पर माँ ने भाई को जन्म दिया) पर हमारा परिवार बुरी तरह बिखर गया। लेकिन अब लगता है जैसे भगवान की मानो ये भी कोई सुनियोजित योजना थी,क्योंकि नानाजी ने माँ और हम चारों बच्चों को पढ़ा लिखा कर इस योग्य बना दिया कि आज हम पास्ट भूल गए। पापा की दशा और स्थिति पर सब्र किया और कर्मों का भोग्य मान कर नानाजी के दिशा-निर्देश पर आगे बढ़ते गए।
तभी नानाजी ने सख़्त आदेश देकर कहा था कि भाई को दादी के घर कभी नहीं भेजना है जिसको माँ ने दृढ़ता-पूर्वक मजबूती से निभाया भी। लेकिन विधि का विधान ; आगे चल कर निभाना मुश्किल होगया और माँ की इच्छा न होते हुए भी भाई का दादी के घर जाने का क्रम शुरू होगया। अच्छे से संपर्क साधा गया,विवाह आदि अवसरों पर भी नियमतः जाने-आने का क्रम चलता रहा।भाई ने तो यह भी लिख कर दे दिया कि हमें आपकी प्रॉपर्टी से भी कुछ नहीं चाहिए।
और इस सबका परिणाम यह हुआ कि हमारा इकलौता छोटा भाई १६ दिसंबर २०२० को हम सबको छोड़ कर चला गया। यानि कि जब तक नाना जी का आशीर्वाद रहा,भाई का परिवार खूब फला-फूला लेकिन उनका आशीर्वाद का समय पूरा हुआ और लगा भाई का भी समय पूरा होगया। स्तब्ध परिवार बिलखता हुआ रह गया। लेकिन अब सारे प्रश्नों के उत्तर साफ़ होगये,तस्वीर शीशे की तरह बिल्कुल स्पष्ट होगयी।उपरोक्त विवरण की प्रमाणिकता के लिए इतना और काफी है कि भाई के जाने के बाद आज तक उधर से चाचा-बुआ किसी का भी परिवार के लिए एक सान्त्वना सन्देश नहीं मिला। जीवन-चक्र रुक गया। अब कुछ भी न कहने को बचा,न सुनने को बचा,न सोचने को रहा।
मानती हूँ जो होना है जैसे होना होता है वो सब हमारे कर्मों के अनुसार ही होता है ;पर भगवान किस प्रकार किसी को माध्यम बना कर कुछ संकेत अवश्य देते हैं। इस पर भी विचार करना आवश्यक है।संभव है कोई इसे मेरी कपोल-कल्पना समझे पर जो सात दशकों में हुआ वो उल्लेखनीय अवश्य है।
" जय श्री राम "
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