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Sunday, 23 May 2021

एक सपना जो टूट कर पूरा हुआ ----------


         बी.एड करने की उठा-पटक मन में चल रही थी,बनस्थली विद्यापीठ में आवेदन किया था। यही डर था,पता नहीं कॉल आएगी या नहीं ;सपनों में खोई रहती थी। न जाने कहाँ कहाँ मन भागता रहता,उसी काल में ये रचना का जन्म हुआ जो प्रत्यक्ष है --- 

 उछल-कूद के बाद अवस्था वो  आयी ;

 करने  में भी  शर्म  , शर्म अब  शर्मायी।

 

 वाणी होगयी मौन ,नहीं कुछ कह पाती;पर 

 चपल नेत्र की चंचलता ,सब कह जाती। 


अधरों की मुस्कान , निमंत्रण देती है ; 

पर नेत्र मिलन होते ही ,धोखा देती हैं। 


लुका छिपी का खेल ;  चल रहा आँखों में ;

     (उठो-उठो आवाज़ लगायी मम्मी ने )

"अब जाकर  सपने कर पूरे बनस्थली में।" 

       और इस प्रकार स्वप्नान्तर से दूर माँसी-मौसाजी के संरक्षण में मेरा बी.एड. का -

सपना साकार हुआ। 

                          धन्यवाद मांसी-मोँसाजी  


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