वक्त की करवट
क्योंकि अब दादी दादी नहीं होतीं,नानी नानी नहीं होतीं
केवल एक वृद्धा,असमर्थ,ज़रूरतमंद,महिला होती है
हाँ घर में एक महत्वपूर्ण,प्रतिष्ठित स्थान अवश्य है
जो केवल " गिफ्ट एक्सचेंज " के लिए निर्धारित रह गया है
वक्त के अचानक करवट लेने से -
एक बात अच्छी हुई है, इनके पक्ष में कि
कोई अब ये नहीं कह सकता कि
नानी-दादी ने बिगाड़ दिए
क्योंकि नाती-पोते न प्यार करने को मिलते हैं न
गलत बात पर डाँटने को मिलते हैं।
क्योंकि ये सारे काम माता-पिता ही करते हैं
वे ही सारे संबन्धों के पर्याय हैं
संबंधों का बोझ ढोना आसान नहीं
हर सम्बन्ध का अपना महत्व होता है जो अब महत्व विहीन है।
परिणाम प्रत्यक्ष है
संबंधों के प्रति बच्चों की अज्ञानता, कुसंस्कार, उनका मानसिक विकास,
सामाजिक विकास, उनका खालीपन उन्हें कहाँ लेजा रहा है !!
ये है विचारणीय पक्ष ! !
नियंत्रण नियंत्रण नियंत्रण !!
टीवी,मोबाइल,बाहर आना-जाना सब जगह पहरा
अति कठोरता !!इससे उनमें अविश्वास पैदा होरहा है।
ये सब बच्चों को असामान्य,हिंसक बनाने का ही कार्य कर रहे हैं।
चिन्तनीय विषय है !!
कारण कुछ भी माना जा सकता है,जो बहाना मात्र हैं।
चूक बहुत बड़ी होरही है --
पता नहीं किसके भले के लिए ??
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