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Monday, 26 January 2015

सब्स्टीट्यूशन की देवी ( godess of substitution ) ---एक हास्य रचना---


सब्सीट्यूशन की देवी  ( एक हास्य रचना )

स्कूल में पढ़ाते हुए मुझे " सब्स्टीटूशन " का काम मिला, इस काम को करते हुए मेरा जो अनुभव रहा उसे मैंने अपनी इस रचना में व्यक्त किया है -----

न  मैं किसी की   मित्र थी , न कोई  मेरा  मित्र  था
काम ही कुछ ऐसा था कि कोई खास बना ही न था
संकोची   स्वभाव था  सबके प्रति  मान  था
कम  बोलना  ही अपना कुछ स्वभाव   था

प्रायः इस स्वभाव का मिला परिणाम अच्छा ही
पर अब इस स्वभाव का मिला परिणाम उल्टाही
मिला मुझको जबसे इस सब्स्टीट्यूशन का काम
स्वभाव  पर  लगने  लगे  मेरे    इल्ज़ाम

अक्सर  ही एक  दो  होजाती  हैं  गोल
मुझ पर आजाती  है मुसीबत  बेमोल

कोई   कहता  दो क्यों   लगाये ,कोई कहता  कल मत देना
कोई  कहता " फेवर " होता  है ,कोई  कहता मैं  " रेग्युलर " हूँ "why i should be punished "

इस पर भी कुछ तो कुछ नहीं  कहते  ,जिनकी हूँ मैं बड़ी आभारी
पर    कुछ   तो   मार  जाते   हैं  अपनी       मुस्कान  की  कटारी

फिर  भी मिलता है सहयोग इसी से हूँ  आभारी
तभी      निभा पाती हूँ   इतनी बड़ी  ज़िम्मेदारी।

        धन्यवाद  " सब्स्टीट्यूशन की देवी "

                                --------
   

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