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Thursday, 25 September 2014

शिकार हूँ या शिकारी

पशोपेश की स्थिति !
मैं शिकार या शिकारी?
क्या कभी देखा है ऐसा ?
कुछ मिनटों का चलचित्र -
घूमता है आखों के सामने।
सामने शिकार -
न झपटना ,
न कोई "अटैक "
भयातुर !
एकटक देखना -
छू-छूकर देखना -
संदि ग्ध निगाहें -
सपना है या सच ?
विश्वास और अविश्वास का मानसिक द्वंद्व -
रुक-रूककर पूँछ का हिलना -
जीभ से राल का टपकने जैसा दृश्य -
और अचानक -ये क्या?
ये तो सच है !
सपना नहीं ,मेरा शिकार   है-
किस बात  की देरी !
और बेचारा क़ुग्रह ,कुसमय का शिकार -
बन गया शिकारी का शिकार।
होगई विजय की विजय

     (  ये कविता मैंने उनदिनों में लिखी थी जब दिल्ली जू में एक लड़का गिर गया  था और कुछ मिनट तक
 शेर और उसके बीच मानसिक अन्तर्द्वन्द मचा रहा था )    

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Monday, 28 July 2014

बच्चों का बचपन मत छीनो ---

जानती हूँ यह प्रतिस्पर्धा का दौर है हर माता-पिता अपने लाड़ले को आगे आगे और सबसे आगे की चाह में उसे दौड़ाये जारहे हैं  इस संदर्भ में मैँ क्या सोचती हूँ देखें इन पंक्तियों में ----

बच्चों का बचपन मत छीनो ,
बच्चों का शैशव मत छीनो ,
उनकी  ये मासूम     अवस्था ,
नहीं  लौट कर   आएगी ---,
               यौवन की अल्हड़ता रस्ता रोक खड़ी होजायेगी।

बचपन की चंचलता से   भरपूर अनूठी   बातें --,
नटखट आँखों की भाषा कब कैसे तुम्हें लुभाएगी ,
लुकाछिपी का  खेल और तुतलाती बातें ------,
ओठों की मुस्कान कहो कब कैसे तुम्हें रिझाएगी।

बच्चों का बचपन रहने दो,
उसको शैशव में पलने दो ,
अम्मा की कोमल बाँहों का ,
झूला उसे बनाने   दो----
              उसे सहजता में जीनेदो ,उसे सहजता में जीनेदो।


                                  --------

           

                   
                   


                       

Friday, 4 April 2014

फरवरी २०१४। -----जब हम दोनों साथ थे ---

                     संस्मरण 

  -----------इनकी इच्छा थी कि वह अपनी आत्म-कथा लिखें ,उनकी इस इच्छा को अपने साथ जोड़ कर संक्षेप में पूरा करने की कोशिश कर रही हूँ। इनके पिताजी ने तीन विवाह किये थे।सबसे पहली पत्नी का निःसन्तान ही निधन होगया था,दूसरी पत्नी से इनका जन्म हुआ ,किन्तु इन्हें चार वर्ष का छोड़कर वह भी भगवान् को प्यारी होगयीं और उसके बाद इनके पिताजी ने तीसरा विवाह किया। उसके कुछ समय बाद उनसे तलाक होगया। 
   अब बाऊजी और ये साथ-साथ रहते थे। वह समय इनके जीवन का अच्छा समय था ,तलाक का कारण इन्हें नहीं पता था ,समय ठीक-ठाक गुज़र रहा था कि अचानक इनकी ज़िंदगी में एक मोड़  आया इनके बाऊजी ने एक और शादी करने का फैसला  किया यानि कि  चौथी !! विवाह की तैयारियाँ होगईं ,जिस दिन शादी थी,इन्हें सिनेमा देखने के लिए भेज दिया गया। विवाह होगया और इनके खुशाल जीवन में एक अनचाहे तूफ़ान ने दस्तक देदी। चार-छै वर्ष में तीन बहिनें-एक भाई का आगमन होगया। अब घर इनके लिए पराया होगया।घर में रहना मुश्किल होगया।
    कई बार घर से भागे पर हर बार बाउजी का कोई न कोई मित्र समझा-बुझाकर इन्हें घर लेआता। अब पढ़ाई के लिए इन्हें अलीगढ़ इनके चाचाजी के घर भेजा गया जहाँ इन्होंने ड्राफ्ट्समेनशिप का कोर्स किया।कोर्स करने के बाद नौकरी के लिए हापुड़ अपने दूसरे चाचाजी के पास जाना पड़ा। नौकरी के लिए दफ्तर मेरठ में था। हापुड़ से जाना कठिन होरहा था ,सोचा वहाँ छोटे चाचाजी के यहाँ रहकर दफ्तर जॉइन कर लेगें इसलिए मेरठ चले गए। लेकिन वहाँ मिली उपेक्षा और अपमान के बीच रहना और भी मुश्किल हुआ तो पुनः हापुड़ से ही आना-जाना रखा। काफ़ी दूर पैदल चलकर ट्रेन पकड़ना आदि खाने-पीने की समस्याओं के साथ समय बीतता रहा। 
   एक दिन बाउजी ने किसी के द्वारा एक पत्र भिजवाया,जिसके ज़रिये इन्हें ऋषिकेशमें एंटीबायोटिक्स-प्लान्ट ,आइ डी पी एल में स्थाई जॉब मिला ,सरकारी आवास भी मिला। लम्बे समय के बाद ज़िंदगी में सुकून और शांति मिली,५-६ वर्ष नौकरी करने के बाद इनका विवाह का योग बना मेरी माँ को किसी ने इनका परिचय दिया ,नानाजी ने पत्राचार कर विवाह की रश्म पूरी की। तब ये २९ वर्ष के थे। वर्ष १९७३ जुलाई ८ को हम परिणय-सूत्र में बँध गए। विवाह हापुड़ में हुआ। पूरा सहयोग आ० चाचाजी और चाचीजी ने बहुत प्यार से किया। बाकी दोनों चाचाजी और उनके परिवार के सभी लोग भी विवाह में सम्मिलित हुए लेकिन बाउजी के परिवार से कोई नहीं था। हापुड़ में इनका संरक्षण हुआ ,विवाह भी हुआ। इसलिए मेरा भी हापुड़ के प्रति लगाव और अपनापन का भाव है। उनके प्रति आभारी भी हूँ।
    इस तरह संक्षेप में इनका जीवन उपेक्षापूर्ण अधिक रहा। माता-पिता के प्रेम से रहित ये स्वयं बहुत असुरक्षित अनुभव करते थे जिसका परिणाम मैंने हमारी पारिवारिक ज़िंदगी में महसूस किया

व्यक्तित्व अपना परिवार ----
                 इनके व्यक्तित्व में हास्य-विनोद भरपूर था। शायरी और जोक्स के शौकीन थे। पर ग्रहस्थी केवल इन शौकों से नहीं चलती। ज़िंदगी में कदम-कदम पर मिली उपेक्षा ने इन्हें शुष्क व कठोर बना दिया था जिसका सामना मैं शुरू से ही करती रही। इनकी ज़िंदगी में विवाह से पहले के नौकरी के ५-६ वर्ष का समय शायद इनकी ज़िंदगी का खुशहाल समय था।
    किन्तु विवाह के बाद इन्हें अपने परिवार में अपने माता-पिता के परिवार की छाया दिखाई देने लगी जहाँ हर समय इनको लेकर तनाव,खींचतान व झगड़ा हुआ करता था। इनकी सौतेली माँ के  साथ बाउजी का कठोर व्यवहार और फिर एक और शादी फिर उनसे तलाक और फिर एक और शादी। और फिर इनके साथ हुए दुर्व्यवहार और अनेक अविस्मरणीय घटनाओं ने इन्हे कठोर ही नहीं शंकालु भी बना दिया था।चौथी शादी के बाद माँ के दुर्व्यवहार ने घर में हर रोज़ कलह और क्लेश का माहौल बना दिया था। हर रोज़ बाउजी से शिकायतें  और फिर इनके साथ होने वाले अनाचार-दुराचार ने   इन्हे हर स्त्री में वही सौतेली माँ का रूप और घर को नीरसता का आवास मानने को बाध्य कर दिया था। फलतः इन्हे अपने परिवार में वही सब दिखाई देता। शंका ,अविश्वास मन में इस तरह घर कर चुका था कि जीवन के आखिरी समय तक भी समाप्त नहीं कर पायी। 
     पर इन सबके बीच हम दोनों की ज़िंदगी एक दूसरे के लिए त्याग और समर्पण से भर-पूर थी।  दोनों ही एक दूसरे को देख कर जीवन व्यतीत कर रहे थे। इनके जाने के बाद सोचा क्यों धोखा देकर चले गए ? लेकिन फिर सोचा,ये कहते थे कि

      "राजे,तुम मेरे बिना रह सकती हो पर मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।"
                  शायद यही सच था।

                                                             -----------------------




                                                                         





                         

Tuesday, 11 March 2014

नारी उद्बोधन ----------२००४

नारी-उद्बोधन


दुनिया में नारी के प्रति अनाचार को देख कर मन कभी-कभी बहुत आहत होता है,इसीलिये समय पाकर यदा-कदा अपनी भावनाएँ व्यक्त  करती रहती हूँ। आज फिर सामाजिक दोष-पूर्ण परम्पराओं ने मुझे लिखने को प्रेरित किया है ---

त्याग ,तपस्या का पर्याय नारी --
समर्पण और बलिदान की प्रतिमूर्ति नारी --

किन्तु अचानक पति से वियुक्त होने पर -
ज़िन्दगी के हर कदम पर उसके आगे --
प्रश्न!!प्रश्न!!और प्रश्नों की एक लम्बी श्रंखला -
हाँ, यही देखा है मैंने -

पुनः विवाह का प्रश्न,करे या न करे?
नौकरी का प्रश्न,करे या न करे?
श्रृंगार का प्रश्न --
क्या करे, क्या न करे ?
क्या पहने ,क्या न पहने ?
कहाँ जाए ,कहाँ न जाए ?

अरे !ज़िंदगी उसकी ,
और दायित्व ---?
हाँ यही तो  होरहा है समाज में ---
ज़रा कोशिश करें और समझें ---

पुनर्विवाह समाज के दुराचारियों से बचने का साधन है -
"विषय-भोग का नहीं !"
नौकरी जीवन यापन का साधन है -
"किसी पर बोझ न  बनने का "-
और श्रृंगार वो तो पति का प्रतिरूप है
श्रृंगार के हर उपादान में उसे अपने "पति" का रूप  दिखाई देता है। 
सहारा है जीने का। 
फिर क्यों ये प्रश्नों की झड़ी ?

अपनी ज़िंदगी का दायित्व केवल और केवल --
सिर्फ नारी को ही है। -
यह याद रहे सदैव !!!

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Thursday, 27 February 2014

पुत्र-बधु के श्रद्धान्वित विचार

पुत्र वधु के श्रद्धान्वित विचार :

पापाजी ,
आपके प्यार और आशीर्वाद से ही -
मैं तो दिन का कार्य शुरू करती थी -
लेकिन ये क्या?
आपने तो अपनी सेवा का भी अवसर नहीं दिया।
आपके साथ रह कर बहुत कुछ सीखना था पर अब --?
अब मुझे मालूम है ,आप मुझे ऐसा निर्देश देते रहेंगे -
जिसके अनुसार मैं हिम्मत से अपने परिवार की देख-रेख
करती रहूँगी ,आपके आशीर्वाद की चाह लिए -
श्रद्धानत आपकी
पुत्र-बधु 

                              **

Monday, 17 February 2014

दादा के प्रति -------

मेरे प्यारे दादा !

मैं तो स्कूल से आकर -
आपके आने का "वेट"कर रही थी -
पर दादा आप नहीं आये -
दादा अब आपका प्यार मुझे कौन देगा ?
मेरा रिज़ल्ट आया दादा ,मैं कक्षा  ४ में आगई हूँ -
पर आपसे इनाम नहीं मिला -
पूरे साल के गिफ्ट, प्राइज़ कौन देगा ?
हाँ ,अभी तो आपकी तरफ से दादी ने दिए हैं -
पर उनके पास तो पैसे ख़तम भी हो जाएंगे-
फिर कौन देगा मुझे आपकी ओर से ?

मेरी ईलू ,मैं तुम्हारी दादी को बहुत सारे पैसे देकर आया हूँ -
तुम्हारे और आरुष के लिए -
वह पैसे तुम दोनों के गिफ्ट के लिए हैं।

जो कभी ख़तम  नहीं होंगे।
 और तुम खूब खुश रहोगे। 

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श्रद्धांजलि -----पुत्री के उद्गार

पुत्री के उद्गार: अपने पापा के प्रति 

पापा ,आप मेरे कारण दुखी थे
पर पापा उसमें मेरा क्या दोष था ?
आपके दुःख के कारण शादी करने का निश्चय किया -
और की भी !
आपका भी सारा काम मैंने कर -
आपकी परेशानी दूर की।
आपका आशीर्वाद भी मिला -
मैं खुश भी देखी आपने -
आपके आशीर्वाद से घर भी बना
आपने देखा भी "पा "
आपने नाती को भी देखा।
और इसके बाद, 
हमें इतना बड़ा "अभाव" देकर चले गए -
पापा, ये आपने अच्छा नहीं किया -
पर मुझे महसूस ज़रूर हुआ है अनेक बार -
"आप मेरे पास ही हैं"-
और हमें वह सब दे रहे  हैं, 
जो पहले नहीं दिया,पापा!

           आपका आशीर्वाद बना रहे ।
              श्रद्धानत आपकी बेटी।  

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