Visitors

22,119

Thursday, 5 February 2015

खट्टी -मीठी -यादें

खट्टी-मीठी यादें 

समय गुज़र  जाता  है     ,बातें    रह जाती  हैं।
समय व्यतीत करने का साधन बन जातीं   हैं।
जो  बातें पहले कड़वी लगती थीं ,
कैसी अजीब बात है ,अब वही मीठी लगतीं हैं। अबतो सब कुछ मीठा-मीठा याद आता है वह लड़ाई-झगड़ा
अब हास्य बन याद आता है। झगड़ा तो मज़ाक ही था।झगड़ा तो प्यार ही था। झगड़ा तो अधिकार ही था --
एक दूसरे पर। साथ रहने की कहानी कुछ और थी पर अलग रहने की और भी विचित्र। खैर ----

                                              **

- मैच में जब भारत जीतता तो कहते ,ये hokey  by dance ,criket by chance वाली  बात है। और मुस्करा देते।सुबह उठते ही टी वी .खोलने को कहते ,बोलते देखो राजे ,रात ही रात में मैच का क्या हुआ।

                                               ** 

-चुनाव के समय इतना एक्साइटमेंट कि बोलते टी वी  बंद मत करना पता नहीं कौन ऊपर नींचे होजाये। असल में टी वी  के बहुत शौकीन थे।

                                               **

कभी- कभी गर्मी में आकर कहते अब बस अपने हाथ की गरम-गरम आधा कप चाय पिलादो।

                                              **

कभी आकर कहते मैं पूरे घर में देख आया और तू यहां बैठी है ,ऐसे मत किया कर मैं कमज़ोर दिल का आदमी हूँ ,डर जाता हूँ। एक ही तो मेरी राजे है।

                                             **

मुश्किल ही कभी घर से बाहर निकलते और घुसते ही कहते बेकार है कहीं आना-जाना जो मज़ा अपने घर में है ,कहीं नहीं। अपनी राजे के हाथ का प्यारा-प्यारा
 खाना खाओ। बेकार है  यहां जाओ वहां जाओ।

                                            **

 कभी कहते अगर मेरी शादी तुमसे नहीं होती तो मैं तो भूखा मर जाता। 

                                             **
 
ऑफिस से लौटकर अक्सर कहते ,जैसे ही छुट्टी होती है लोग भागते हैं बस पकड़ने के लिए ,मैं उनसे कहता हूँ भाई घर जाकर चिल-पों ही ही सुननी है न ,आधा घंटे  बाद सुन लेना। इस तरह बातें करके लोगों को हँसाते जिसे लोग आज याद करते हैं।

                                                      **

एक बार गुस्से में आपा तो खोते ही थे ,बोले -मैं मर जाऊँ तो रोना मत और मैंने भी बोल दिया ,बिलकुल नहीं रोऊँगी बहुत रुला लिया अबतक। अब सोचती हूँ क्या बचकानेपन की बातें होतीं थी।

                                               **

बहुधा कहते ये मकान फिफ्टी पर्सेंट मेरा है।अब कहाँ गए ख़ुद और कहाँ  गया वह फिफ्टी पर्सेंट मकान ,न  मैं उसमें न आप। क्या था यह सब ,बकबास के अलावा।

                                                   **
     
जब कभी पानी बिजली की समस्या से मैँ दुःखी होती तो कहते देखो राजे अगर ये प्रॉब्लम सबकी है तो मैं बुरा नहीं मानता पर अगर केवल तुम्हारी है तो मैं अपनी ग़लती मान लूँगा।


                                                ** 

ख़ुद बेकार में कभी-कभी गुस्सा होते और मैं चुप होजाती तो कहते बस होगई गुस्सा, तुझे पता नहीं मेरे दिल को खोल कर देख राजे ही राजे लिखा है। मैं तो बेफ़्कूफ हूँ पता नहीं क्या-क्या बोल देता हूँ। माँफ भी कर दिया कर। और होगई बात खतम ---

                                                   **
                                                    .


     

No comments:

Post a Comment