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Wednesday, 17 December 2014

रिटायरमेंट के बाद २००४


रिटायरमेंट के बाद -----२००४ में

चलूँ अब घर की ओर चलूँ,

विद्यालय की बाग़ - डोर को छोड़ ,

करूँ आराम,चलूँ

जीवन के इस सांध्यकाल को खुल कर जीऊँ ,

ना कोई झंझट ना कोई बंधन

चाहे कहीं जाना , चाहे कभी आना

दौड़ - भाग की बहुत,करूँ आराम -

चलूँ अब ,

सीखा बहुत , सिखाया बहुत ,

बच्चों में जी लगाया बहुत ,

मम्मी - पापा खूब सुना ,

अब है इच्छा कुछ और ,

सुनूँ मैं दादी- नानी ,

चलूँ अब ,

खूब परिश्रम किया ,सफलता पाई ,

जीवन के झंझावातों को भूल और निश्चिन्त ,

चलूँ कुछ पूजा - पाठ करूँ,

चलूँ अब घर की ओर चलूँ ,

दादी-नानी सुनने की भी चाह होगई पूरी

जीवन की अब कोई इच्छा  नहीं  अधूरी। 

                 

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