रिटायरमेंट के बाद -----२००४ में
चलूँ अब घर की ओर चलूँ,
विद्यालय की बाग़ - डोर को छोड़ ,
करूँ आराम,चलूँ
जीवन के इस सांध्यकाल को खुल कर जीऊँ ,
ना कोई झंझट ना कोई बंधन
चाहे कहीं जाना , चाहे कभी आना
दौड़ - भाग की बहुत,करूँ आराम -
चलूँ अब ,
सीखा बहुत , सिखाया बहुत ,
बच्चों में जी लगाया बहुत ,
मम्मी - पापा खूब सुना ,
अब है इच्छा कुछ और ,
सुनूँ मैं दादी- नानी ,
चलूँ अब ,
खूब परिश्रम किया ,सफलता पाई ,
जीवन के झंझावातों को भूल और निश्चिन्त ,
चलूँ कुछ पूजा - पाठ करूँ,
चलूँ अब घर की ओर चलूँ ,
दादी-नानी सुनने की भी चाह होगई पूरी
जीवन की अब कोई इच्छा नहीं अधूरी।
No comments:
Post a Comment